भारत के लिए एक बहुत बड़ी और गर्व की बात है. भगवान बुद्ध के अवशेषों से जुड़े सैकड़ों बेशकीमती रत्न पूरे 127 साल बाद अपने घर, यानी भारत वापस आ गए हैं. इस खजाने को 'पिपराहवा जेम्स' (Piprahwa Gems) के नाम से जाना जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक वापसी पर खुशी जताते हुए एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, "हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए एक खुशी का दिन. यह हर भारतीय को गौरवान्वित करेगा."
कैसे रुके थे रत्न, और कैसे हुई वापसी?
दिलचस्प बात यह है कि इन रत्नों की नीलामी इसी साल हॉन्ग कॉन्ग में होने वाली थी. नीलामी करने वाली मशहूर कंपनी सोदबी (Sotheby's) इन्हें बेचने वाली थी. जैसे ही भारत सरकार को इसका पता चला, उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी. भारत सरकार की मांग थी कि ये रत्न भारत की धरोहर हैं और इन्हें तुरंत लौटाया जाना चाहिए.
It may be recalled that the Piprahwa relics were discovered in 1898 but were taken away from India during the colonial period. When they appeared in an international auction earlier this year, we worked to ensure they returned home. I appreciate all those who have been involved…
— Narendra Modi (@narendramodi) July 30, 2025
सरकार के दबाव के बाद नीलामी रोक दी गई. इसके बाद, सोदबी ने भारत के जाने-माने उद्योग समूह गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप के साथ मिलकर एक रास्ता निकाला. गोदरेज ग्रुप ने इन रत्नों को खरीद लिया ताकि ये स्थायी रूप से भारत वापस आ सकें. अब इन रत्नों को भारत में एक म्यूजियम में आम लोगों के देखने के लिए रखा जाएगा. सोदबी ने भी इस वापसी पर खुशी जताई है.
क्या है इन रत्नों का इतिहास?
इन रत्नों का इतिहास मौर्य साम्राज्य (लगभग 240-200 ईसा पूर्व) से जुड़ा है. इन्हें 1898 में उत्तरी भारत के पिपराहवा (उत्तर प्रदेश) में एक पुराने स्तूप की खुदाई के दौरान खोजा गया था.
यह खुदाई एक अंग्रेज एस्टेट मैनेजर, विलियम क्लैक्सटन पेपे ने की थी. खुदाई में उन्हें ये रत्न और कुछ हड्डियां मिली थीं, जिन्हें भगवान बुद्ध के अवशेष माना जाता है. उस समय, ब्रिटिश सरकार ने पेपे को 300 से ज़्यादा रत्न अपने पास रखने की इजाज़त दे दी थी. तब से यह अनमोल संग्रह उनके परिवार के पास ही था, जो अब 127 साल बाद भारत लौटा है.
भारत के संस्कृति मंत्रालय ने इसे सरकार और निजी क्षेत्र (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) की एक बेहतरीन मिसाल बताया है. यह पहल प्रधानमंत्री मोदी के उस मिशन का भी हिस्सा है, जिसके तहत दुनिया भर से भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को वापस देश में लाया जा रहा है.













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