Shivraj Patil Passes Away: कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र के लातूर में निधन हो गया. 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने आवास 'देवघर' पर अंतिम सांस ली. कुछ दिनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उनका देहांत हो गया. उनके परिवार में बेटे शैलेश पाटिल, बहू अर्चना पाटिल जो भाजपा से जुड़ी हैं, और दो पोतियां शामिल हैं. उनके निधन से लातूर ही नहीं बल्कि पूरे राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर है.
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिवराज पाटिल का निधन
Saddened by the passing of Shri Shivraj Patil Ji. He was an experienced leader, having served as MLA, MP, Union Minister, Speaker of the Maharashtra Assembly as well as the Lok Sabha during his long years in public life. He was passionate about contributing to the welfare of… pic.twitter.com/muabyf7Va8
— Narendra Modi (@narendramodi) December 12, 2025
राजनीति में सादगी और मर्यादा के प्रतीक
शिवराज पाटिल को भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने हमेशा संयमित और गरिमापूर्ण व्यवहार रखा. पार्टी नेताओं के अनुसार वे कभी भी निजी टिप्पणियों में नहीं उलझे और हर मुद्दे पर संतुलित तरीके से बात रखते थे. उनकी भाषा पर पकड़ और शांत स्वभाव उन्हें दूसरों से अलग बनाते थे. चाहे संसद हो या सार्वजनिक मंच, उनका हर वक्तव्य तर्क और तथ्यों पर आधारित होता था.
लंबा और प्रभावशाली राजनीतिक सफर
12 अक्टूबर 1935 को जन्मे शिवराज पाटिल की राजनीतिक शुरुआत लातूर नगर परिषद के प्रमुख के रूप में हुई. इसके बाद वे 70 के दशक में पहली बार विधायक बने और फिर लोकसभा में उन्होंने लातूर सीट से सात बार जीत दर्ज की. 1991 से 1996 तक वे लोकसभा के स्पीकर रहे. यूपीए सरकार के दौरान 2004 से 2008 तक वे केंद्रीय गृह मंत्री भी रहे. बाद में उन्हें पंजाब का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 2010 से 2015 तक वे चंडीगढ़ के प्रशासक भी रहे. अपने करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं और हर भूमिका में दक्षता दिखाई.
ज्ञान, अध्ययन और संविधान की समझ
पाटिल न सिर्फ एक राजनेता थे बल्कि गहन अध्ययन करने वाले व्यक्तित्व भी थे. कई भाषाओं पर उनका शानदार नियंत्रण था और संवैधानिक विषयों पर उनकी पकड़ को लेकर सभी दलों में सम्मान था. पार्टी नेताओं का कहना है कि उनका जाना भारतीय संसदीय परंपरा के लिए एक बड़ी क्षति है.












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