पोलैंड की सीमा को मजबूत करने के लिए सैनिक भेजेगा जर्मनी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पोलैंड की पूर्वी सीमा को मजबूत करने में मदद देने के लिए जर्मनी ने अपने सैनिकों का एक जत्था भेजने का ऐलान किया है.जर्मनी ने कहा है कि वह पोलैंड को उसकी पूर्वी सीमा को मजबूत करने में मदद के लिए सैनिकों का एक जत्था भेजेगा. यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब रूस से संभावित खतरे को लेकर यूरोप में चिंताएं बढ़ रही हैं. जर्मनी के रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार देर रात इस निर्णय की जानकारी दी.

पोलैंड यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध में यूक्रेन का मजबूत समर्थक रहा है. उसने मई 2024 में अपनी पूर्वी सीमा को सुदृढ़ करने की योजना की घोषणा की थी. यह सीमा बेलारूस और रूस के कालिनिनग्राद क्षेत्र से लगती है. पोलैंड का कहना है कि मौजूदा भू-राजनीतिक हालात को देखते हुए सीमा सुरक्षा को मजबूत करना आवश्यक है.

बर्लिन में रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पोलैंड में जर्मन सैनिकों की मुख्य भूमिका "इंजीनियरिंग गतिविधियों” तक सीमित रहेगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तैनाती का उद्देश्य केवल तकनीकी और निर्माण से जुड़े कार्यों में सहयोग देना है.

संसद की मंजूरी जरूरी नहीं

प्रवक्ता के अनुसार, इन गतिविधियों में किलेबंदी का निर्माण, खाइयां खोदना, कांटेदार तार बिछाना और टैंक अवरोधक खड़े करना शामिल हो सकता है. उन्होंने कहा, "इस अभियान के तहत जर्मन सैनिकों द्वारा दी जाने वाली सहायता केवल इन्हीं इंजीनियरिंग कार्यों तक सीमित है.”

रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों की सटीक संख्या नहीं बताई, लेकिन यह कहा कि यह संख्या "मध्यम स्तर की दो अंकों वाली” होगी. इन सैनिकों के 2026 की दूसरी तिमाही से लेकर 2027 के अंत तक इस परियोजना में शामिल रहने की संभावना है.

प्रवक्ता ने यह भी कहा कि इस तैनाती के लिए जर्मन संसद की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. उन्होंने बताया कि चूंकि सैनिकों को किसी प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष का खतरा नहीं है, इसलिए यह मिशन संसदीय स्वीकृति के दायरे में नहीं आता.

आमतौर पर जर्मनी में सशस्त्र बलों की विदेश में तैनाती के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इससे छूट दी जाती है. रक्षा मंत्रालय के अनुसार यह मामला उन्हीं अपवादों में आता है.

बदला सुरक्षा परिदृश्य

2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के बाद से पोलैंड ने यूक्रेन का लगातार समर्थन किया है. पोलैंड न केवल कीव को राजनीतिक समर्थन देता रहा है, बल्कि वह पश्चिमी सहयोगियों द्वारा भेजे जाने वाले हथियारों और सैन्य सहायता के लिए एक महत्वपूर्ण रास्ता भी बना है.

पोलैंड ने इसी अवधि में अपनी सेना के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज की है और रक्षा बजट में भी काफी वृद्धि की है. उसका कहना है कि पूर्वी यूरोप में सुरक्षा हालात को देखते हुए यह कदम जरूरी है.

जर्मनी भी यूक्रेन को सबसे ज्यादा सैन्य सहायता देने वाले देशों में शामिल है. अमेरिका के बाद जर्मनी यूक्रेन को सैन्य मदद देने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. जर्मनी ने यूक्रेन को वायु रक्षा प्रणालियों से लेकर बख्तरबंद वाहनों तक बड़ी मात्रा में सैन्य उपकरण भेजे हैं.

यूरोप की सुरक्षा पर बहस

इसी बीच म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के अध्यक्ष वोल्फगांग इशिंगर ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन में युद्ध का अंत यूरोप में शांति सुनिश्चित करने के प्रयासों की केवल शुरुआत होगा, न कि अंत.

डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में इशिंगर ने कहा कि वे लंबे समय से इस युद्ध के जल्दी खत्म होने को लेकर संदेह में रहे हैं, क्योंकि उन्हें रूस की ओर से समझौते की कोई ठोस इच्छा नजर नहीं आई. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि हाल के दिनों में कूटनीतिक गतिविधियों में तेजी आई है.

इशिंगर ने कहा कि वे ना केवल नाटो महासचिव मार्क रुटे की बातों को सुन रहे हैं, बल्कि जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स और अमेरिकी नेताओं के बयानों पर भी ध्यान दे रहे हैं. उनके अनुसार हालिया कूटनीतिक प्रयास शायद युद्ध से जुड़े कुछ अहम सवालों पर समाधान की दिशा में बढ़ेंगे.

इशिंगर ने कहा कि युद्ध और शांति से जुड़े दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल हैं. पहला क्षेत्रीय सवाल, यानी कौन सा क्षेत्र किसके नियंत्रण में होगा. दूसरा और अधिक जटिल सवाल सुरक्षा गारंटी का है. उनके अनुसार कागज पर लिखी गई सुरक्षा गारंटी तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक उसे वास्तविक अर्थ और भरोसे के साथ लागू न किया जाए.

युद्ध के बाद की चुनौतियां

इशिंगर ने कहा कि जब तक यूक्रेन की सेना रूस की सैन्य शक्ति को अपने यहां बांधे रखे हुए है, तब तक यूरोप अपेक्षाकृत सुरक्षित है लेकिन जिस दिन युद्ध समाप्त होगा और हथियार शांत होंगे, उस दिन रूस को अपनी सैन्य शक्ति को फिर से संगठित करने का अवसर मिलेगा.

उन्होंने कहा कि उस समय यूरोप को अपनी रक्षा क्षमता को गंभीरता से मजबूत करना होगा, क्योंकि अब तक यह बोझ यूक्रेन उठा रहा है. इशिंगर ने यह भी कहा कि अमेरिका से आने वाली चुनौती पारंपरिक सैन्य खतरे से अलग हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में यूरोप को अब भी महत्वपूर्ण बताया गया है और नाटो से अमेरिका के बाहर निकलने की कोई ठोस चर्चा नहीं है.

उनके अनुसार अमेरिका से जुड़ी चुनौती अधिक वैचारिक है, जिसमें कुछ राजनीतिक ताकतें यूरोप को अलग-अलग राष्ट्रीय इकाइयों के रूप में देखना चाहती हैं. इशिंगर ने कहा कि यूरोपीय संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अमेरिका को दोबारा यूरोप में युद्ध रोकने के लिए हस्तक्षेप ना करना पड़े, जैसा कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में करना पड़ा था.