बर्लिन के पैर्गामॉन म्यूजियम में क्या है इतना खास?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

बर्लिन का मशहूर पैर्गामॉन म्यूजियम बड़े पैमाने पर मरम्मत के लिए इस समय बंद है. लेकिन म्यूजियम का एक हिस्सा 2027 में खुलने को तैयार है. ऐसे में, अंदर मौजूद कुछ अनमोल कलाकृतियों की झलक देखिए.जर्मन राजधानी बर्लिन का पैर्गामॉन म्यूजियम, यूनेस्को के म्यूजियम आइलैंड का हिस्सा है. यह म्यूजियम बर्लिन की सबसे मशहूर जगहों में से एक है. लेकिन फिलहाल इसे देखना मुश्किल है. क्योंकि अक्टूबर 2023 से यह पूरा म्यूजियम मरम्मत के लिए बंद है. 4 दिसंबर को प्रेस के लिए एक प्रीव्यू इवेंट रखा गया था. जिस दौरान म्यूजियम में चल रहे मरम्मत के काम की झलक दिखाई गई. कार्यक्रम में जर्मन सरकार के संस्कृति और मीडिया कमिश्नर, वोल्फ्राम वाइमर ने कहा, "यह मानवता के लिए खजाना है.” उन्होंने आगे कहा, "यह एक बड़ी सनसनी होगी. आने वाले सालों में हम यहां सिर्फ लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों दर्शकों के आने की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि इस जगह को पूरी दुनिया के महत्व अनुसार बनाया गया है.”

इसके कई हिस्से तो अगले 14 से 20 साल यानी 2037 से 2043 तक बंद ही रहेंगे. हालांकि, कुछ बड़ी और मशहूर कलाकृतियां पूरा म्यूजियम तैयार होने से लगभग दस साल पहले ही दर्शकों के लिए खुल जाएंगी. म्यूजियम का उत्तरी हिस्सा 2027 की शुरुआत में खुलने को तैयार है. जिसके साथ ही पैर्गामॉन आल्टर हॉल भी खुलेगा. यह वही हॉल है, जिसमें प्राचीन ग्रीक मंदिर का मशहूर प्रवेशद्वार रखा हुआ है. यह हॉल 2014 से दर्शकों के लिए बंद है.

पुरानी इमारतों को सुरक्षित करना

पैर्गामॉन म्यूजियम का निर्माण जर्मन सम्राट विल्हेल्म द्वितीय के आदेश पर किया गया था. 1910 से 1930 के बीच इसे अल्फ्रेड मेसेल की योजनाओं के अनुसार बनाया गया था. अब जो मरम्मत और नया निर्माण हो रहा है, वह भी उसी मूल डिजाइन को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. चूंकि यह म्यूजियम राष्ट्रीय धरोहर में शामिल है, इसलिए मरम्मत के दौरान इसकी मूल वास्तुकला, पुराने निर्माण तरीकों और कई हिस्सों जैसे खिड़कियों को उसके मूल रूप में ही सहेजा जा रहा है.

1930 में खुलने के कुछ साल बाद ही म्यूजियम को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारी नुकसान हुआ था. हवाई हमलों और तोपों की मार से इसका एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था. युद्ध खत्म होने के बाद, म्यूजियम जिस इलाके में था, वह पूर्वी जर्मनी का हिस्सा बन गया. उस समय वहां इमारत की ठीक तरह से मरम्मत करने के लिए पैसे नहीं थे. फिलहाल जो मरम्मत चल रही है, उसमें युद्ध के कुछ निशान वैसे ही रखे जाएंगे, यह निशान शहर के इतिहास की याद दिलाएंगे. साथ ही, जो हिस्से समय के साथ खराब हो गए हैं, उन्हें ठीक किया जा रहा है.

इस म्यूजियम में रोशनी, तापमान नियंत्रण और सुरक्षा से जुड़े सभी सिस्टम आधुनिक बनाए जा रहे हैं ताकि हजारों साल पुराने प्रदर्शनों को सुरक्षित रखा जा सके. इसके अलावा, पूरा म्यूजियम दिव्यांग लोगों के लिए पूरी तरह सुलभ बनाया जा रहा है.

कमजोर नींव, बढ़ता खर्च

म्यूजियम बर्लिन से होकर बहने वाली श्प्रे नदी के पास, ढीली और रेतीली जमीन पर बना हुआ है. इसलिए इसकी नींव को मजबूत करना बहुत जरूरी था. जिसके लिए 700 से ज्यादा मजबूत स्टील की छड़ें, जिन्हें माइक्रो पाइल कहा जाता है, जमीन में गहराई से लगाई गई है. इसके चलते काम के दौरान एक मुश्किल का सामना भी करना पड़ा. जब माइक्रो पाइल लगाने के लिए 10 से 30 मीटर गहराई तक ड्रिल किया गया, तब पुराने निर्माण समय के दो पंप स्टेशन मिले. यह स्टेशन भूजल निकालने के लिए बनाए गए थे, लेकिन इन्हें कभी पूरी तरह हटाया नहीं गया था. इन्हें केवल ढक दिया गया था और इसका कोई रिकॉर्ड भी नहीं था. जिस वजह से मरम्मत के काम का खर्च भी बढ़ गया.

मरम्मत के पहले चरण का बजट अब लगभग 50 करोड़ यूरो तक पहुंच चुका है, जो कि शुरुआती अनुमान से दोगुना है. अब पूरे प्रोजेक्ट की लागत लगभग 1.5 अरब यूरो तक पहुंचने की उम्मीद है.

2027 में क्या-क्या देखने को मिलेगा?

2027 में सबसे बड़ा आकर्षण होगा, पैर्गामॉन आल्टर. जिसे 1870 के दशक में कार्ल हुमान ने प्राचीन शहर पैर्गामॉन (जो आज के तुर्की में है) से निकाला था. इस आल्टर के लिए म्यूजियम में एक अलग, भव्य हॉल बनाया गया है.

म्यूजियम की मूल इमारत को दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के इस आल्टर के चारों ओर खास तरीके से बनाया गया था. इसके चारों तरफ एक सुंदर नक्काशीदार पट्टी है, जिसमें दानवों और ओलंपियन देवताओं की लड़ाई दिखाई गई है. कई पुरानी सूचियों में तो इस आल्टर को प्राचीन दुनिया के सात आश्चर्यों में भी शामिल किया गया है. अब यह स्थान पहले से भी ज्यादा शानदार दिखता है. छत में मौजूद कांच की पूरी संरचना बदल दी गई है, जिससे कमरे में खूब रोशनी आती है. साथ ही, हॉल के ऊपर एक नई सुरक्षा छत भी लगाई गई है, जो कांच की बनी है.

मरम्मत के दौरान आल्टर को बाहर निकालना बहुत कठिन होता, इसलिए इसके सभी हिस्सों को कमरे के अंदर ही रखा गया. उन्हें सुरक्षित रखने के लिए एक खास तरह के कवर बनाए गए थे. वोल्फ्राम वाइमर के अनुसार, "यह बहुत असामान्य है कि किसी इमारत का निर्माण और मरम्मत उसी की पुरानी कलाकृतियों के बीच किया जाए.”

हालांकि, कुछ दूसरी बड़ी और महत्वपूर्ण कलाकृतियों को नए हिस्सों में शिफ्ट किया गया था. जिसमें सबसे खास था, मशता फसाड, जो कि इस्लामी कला का एक अनमोल नगीना है. यह उम्मयद काल में खलीफा अल-वालिद द्वितीय (743–744 ई.) के समय का है. 1840 में इसे अम्मान के पास से निकाला गया था, जो आज जॉर्डन की राजधानी है. 33 मीटर लंबी इस महल की दीवार को 1903 में ओटोमन सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय ने जर्मन सम्राट विल्हेल्म द्वितीय को उपहार में दिया था.

अलेप्पो रूम, जो सुंदर तरह से चित्रित लकड़ी के पैनलों से बना एक स्वागत कक्ष था. उसे भी सावधानी से खोलकर दक्षिणी विंग से उत्तरी विंग में ले जाया गया था. इसके पैनलों की पेंटिंग को शानदार तरीके से दोबारा बहाल किया गया है. इन चित्रों में ईसाई और इस्लामी कला का मिश्रण दिखता है. यह कमरा 1912 में अलेप्पो (सीरिया) से खरीदा गया था.

अल्हाम्ब्रा कपोला, जो 14वीं सदी की बारीक नक्काशीदार लकड़ी की गुंबद है, उसे भी अस्थायी रूप से दूसरे स्थान पर ले जाया गया है. मरम्मत के बाद इसे जिस नए कमरे में रखा जाएगा, वहां दर्शकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए खास इंतजाम किए जाएंगे. जैसे कविता सुनाने वाले ऑडियो इंस्टॉलेशन और ऐसी खुशबूएं होंगी, जो देवदार और पॉपलर की लकड़ी से बने इस गुंबद की मूल पहचान हैं. यह गुंबद 1885 में स्पेन के ग्रानादा शहर की ऐतिहासिक किलेबंदी अल्हाम्ब्रा के पुराने महल से खरीदा गया था. इसे पहले एक निजी मकान में लगाया गया था, और लगभग सौ साल बाद इसे पैर्गामॉन म्यूजियम को दान कर दिया गया था.

इस्लामी कला और प्राचीन यूनानी विरासत का अनोखा मेल

पैर्गामॉन म्यूजियम की खासियत यह है कि यहां इस्लामी कला और प्राचीन यूनानी खजाना एक ही जगह पर देखे जा सकते हैं. प्रशियन कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन की डायरेक्टर जनरल मारीओन आकरमन ने प्रेस इवेंट में बताया, "दुनिया में ऐसा और कहीं नहीं दिखता कि एक ही छत के नीचे इतनी अलग-अलग पुरानी सभ्यताओं और की वास्तुकलाएं मौजूद हों.”

उन्होंने आगे कहा कि यह विचार म्यूजियम के शुरू होने के समय ही तय कर लिया गया था क्योंकि इसकी कई प्राचीन वस्तुएं मेसोपोटामिया और पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाकों से मिली थी. यह वही इलाके हैं, जहां बाद में इस्लामी संस्कृति विकसित हुई थी. आकरमन ने कहा, "यह साबित करता है कि कोई भी संस्कृति पूरी तरह अकेले नहीं बनती है. सभ्यताएं हमेशा एक-दूसरे के संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से ही आगे बढ़ती हैं. और यह नजरिया समझना आज के समय में बहुत जरूरी है.”