Buddha Jayanti 2019: भारतीय इतिहास में ऐसा किसी महापुरुष के साथ नहीं हुआ कि जिस तिथि (वैशाख पूर्णिमा) पर उनका जन्म हुआ, उसी तिथि पर उन्हें दिव्य ज्ञान (ईश्वरत्व) प्राप्त हुआ और उसी तिथि पर महाप्रयाण (मृत्यु) भी किया हो. वे महान युगपुरुष थे महात्मा बुद्ध. अपनी मानवतावादी और विज्ञानवादी बौद्ध धर्म दर्शन से राजकुमार सिद्धार्थ (Prince Siddhartha) से ईश्वरत्व को प्राप्त हुए भगवान बुद्ध (Lord Buddha) को दुनिया ने सबसे महान पुरुष माना है. आज बौद्ध धर्म को मानने वाले दुनिया के लगभग 200 करोड़ से अधिक लोग बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) को सादगी और शांति से मनाते हैं.
हिंदू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार थे, इसलिए हिंदुओं के लिए भी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत, चीन, जापान, नेपाल, सिंगापुर, इंडोनेशिया, थाइलैंड, म्यामार, कंबोडिया, पाकिस्तान समेत विश्व के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व पूरी आस्था एवं श्रद्धा से मनाया जाता है. आखिर कौन थे भगवान बुद्ध, और कब व कैसे उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई, आइये जानते हैं.
जन्म एवं पालन पोषण
ईसा से 563 वर्ष पहले लुम्बिनी में शाक्य गण के मुखिया शुद्धोदन की पत्नी महामाया देवी के गर्भ से पुत्र (सिद्धार्थ) का जन्म हुआ था. यह जगह नेपाल के कपिलवस्तु और देवहद नामक नगर के बीच नौतनवा के पास स्थित है. कहा जाता है कि गर्भवती महामाया अपने मायके देवदह जा रही थीं, तभी जंगल में उन्होंने सिद्धार्थ को जन्म दिया था. सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिनों बाद ही महामाया की मृत्यु हो गयी. सिद्धार्थ की सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने उनकी परवरिश की. सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद, उपनिषद, राजकाज और युद्ध विद्या की शिक्षा ग्रहण की. गुरु की हर शिक्षा को उन्होंने पूरी दक्षता एवं प्रवीणता से ग्रहण किया. उस समय मल्ल युद्ध, घुड़दौड़, तीर-धनुष इत्यादि में उनका कोई सानी नहीं था.
यशोधरा से विवाह
राजकुमार सिद्धार्थ में बचपन से जो बात ध्यान देने योग्य थी वह यह कि वे किसी का दुःख नहीं देख पाते थे. घुड़सवारी की रेस करते हुए वह जब अपने घोड़े को हांफते और उसके मुख से झाग निकलते देखते, तो हार जीत की परवाह किये बिना घोड़े को आराम देने के लिए रुक जाते थे. उसे प्यार करते, ताजा घास खिलाते थे. राजसुख और राजवैभव उन्हें कभी रास नहीं आया. वह जब 16 वर्ष के थे, उनका विवाह दंडपाणि शाक्य की बेटी यशोधरा के साथ कर दिया गया.
शाही वंश का होने के कारण राजा शुद्धोदन ने राजकुमार सिद्धार्थ को पत्नी के साथ रहने के लिए ऐसा महल बनवाया था, जहां जब चाहे तीनों ऋतुओं में से किसी एक ऋतु का सुख लिया जा सके. तमाम सुख-सुविधाओं वाला यह महल सिद्धार्थ को कभी पसंद नहीं आया. उनका मन धीरे-धीरे वैराग्य की ओर मुड़ रहा था. इसी शाही महल में सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा ने पुत्र राहुल को जन्म दिया.
एक संन्यासी को सबसे सुखी मनुष्य माना
एक दिन जब वे सैर पर निकले तो रास्ते में उन्हें एक संन्यासी दिखा. उन्होंने महसूस किया कि संन्यासी के चेहरे पर उनकी तुलना में ज्यादा शांति और संतोष है. संन्यासी के मुख से ईश्वर भक्ति की बात उन्हें बहुत अच्छी लगी. उसी समय उन्होंने सभी ऐशो-आराम से भरा महल, पत्नी यशोधरा एवं पुत्र राहुल को त्यागकर तपस्वी बनने का निश्चय कर लिया. एक दिन बिना किसी को बताए वह घर छोड़ जंगलों की तरफ निकल गये. राह में कोई ज्ञानी मिलता तो उससे तप की महत्ता को जानने का प्रयास करते. उसी से आसन और साधना की विद्या सीखी. धीरे-धीरे उन्होंने भोजन भी त्याग दिया. इस वजह से वह काफी कमजोर हो गये. एक दिन एक भजन सुनकर उन्होंने महसूस किया कि अपने शरीर को कष्ट देकर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती.
सिद्धार्थ से बने महात्मा बुद्ध
भ्रमण करते-करते एक दिन वे गया पहुंचे. वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे, तभी उन्हें अपने भीतर एक अनभिज्ञ ज्ञान का बोध हुआ. इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ बैठे थे, उसे बोधिवृक्ष और उस स्थान को बोधिगया माना गया. इसी दिन से उन्हें ‘महात्मा बुद्ध’ कहा जाने लगा. यह भी पढ़ें: Buddha Purnima 2019: जब एक वेश्या बनी गौतम बुद्ध की अनुयायी, जानिए नगरवधु आम्रपाली से भिक्षुणी बनने की यह रोचक कहानी
पाली भाषा में प्रचार-प्रसार
महात्मा बुद्ध ने पाली भाषा में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना शुरु किया. यह भाषा उस समय की आम प्रजा की भाषा होती थी. इसलिए भारी संख्या में लोगों ने इस धर्म को अपनाया. गौतम बुद्ध ने जीवन के सरल मार्ग को अपनाने का ज्ञान दिया. बौद्ध धर्म किसी जाति प्रथा से संबद्ध नहीं था, इसलिए इसे मानने वाले बहुसंख्य लोग थे. चूंकि हिंदू धर्म के लोग गौतम बुद्ध को विष्णु भगवान का अवतार मानते हैं इसलिए उन्हें भगवान की श्रेणी में रखते हुए भगवान बुद्ध कहा गया. इस्लाम में भी बौद्ध धर्म की अपनी ही जगह थी. बौद्ध धर्म ने अहिंसा को अपनाने और सभी मानव जाति एवं पशु-पक्षियों को समान प्रेम का दर्जा देने को कहा गया. बाद में सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोदन एवं पुत्र राहुल के साथ पत्नी यशोधरा ने भी बौद्ध धर्म को अपनाया.
गौतम बुद्ध जब 80 वर्ष के थे तो एक दिन उन्होंने अपने निर्वाण (देहत्याग) की भविष्यवाणी करते हुए समाधि ले ली. उनके पश्चात उनके अनुयायियों ने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया. जिसे भारत से लेकर चीन, जापान, थाइलैंड, कोरिया, मंगोलिया, वर्मा, श्रीलंका जैसे देशों में भारी संख्या में अपनाया गया.