डायबिटीज मेलिटस (Diabetes Mellitus) लंबे समय से भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में शामिल रही है, लेकिन Apollo Health of the Nation (HON) 2025 की ताजा रिपोर्ट ने हालात की गंभीरता और साफ कर दी है. देशभर में 4.5 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग में सामने आया कि लगभग हर चार में से एक व्यक्ति पहले से डायबिटीज से पीड़ित है, जबकि हर तीन में से एक प्री-डायबिटिक है. इसका मतलब यह हुआ कि करीब 60 फीसदी वयस्क किसी न किसी स्तर पर ब्लड शुगर असंतुलन के साथ जीवन जी रहे हैं.
उम्र के हिसाब से देखें तो तस्वीर और चिंताजनक हो जाती है. 40 साल से कम उम्र के लोगों में जहां केवल 7 फीसदी डायबिटीज से ग्रस्त पाए गए, वहीं 40 से 55 वर्ष के आयु वर्ग में यह आंकड़ा सीधे 26 फीसदी तक पहुंच गया. 55 साल के बाद यह खतरा और बढ़कर 44 फीसदी तक हो जाता है.
चौंकाने वाली बात यह है कि 40 साल से कम उम्र के लगभग एक-तिहाई लोग पहले से ही प्री-डायबिटिक हैं, जो यह संकेत देता है कि शरीर में मेटाबॉलिक बदलाव बहुत पहले ही शुरू हो जाते हैं, जब बीमारी के कोई लक्षण नजर नहीं आते.
मेनोपॉज के बाद महिलाओं पर ज्यादा असर
Apollo Hospitals के कंसल्टेंट डायबेटोलॉजिस्ट और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. एनके नारायणन के अनुसार, मेनोपॉज के बाद महिलाओं के लिए जोखिम और बढ़ जाता है. एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में गिरावट के साथ शरीर में फैट और शुगर को पचाने की क्षमता कम हो जाती है. इसका असर वजन बढ़ने, इंसुलिन रेजिस्टेंस और कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के रूप में सामने आता है.
धीमा मेटाबॉलिज्म और पेट के आसपास बढ़ती चर्बी, महिलाओं में मेनोपॉज के बाद डायबिटीज का खतरा 14 से 40 फीसदी तक बढ़ा सकती है. यही वजह है कि 40 और 50 की उम्र में महिलाओं के लिए नियमित ब्लड शुगर जांच और वजन नियंत्रण बेहद जरूरी हो जाता है.
प्री-डायबिटीज से टाइप-2 डायबिटीज तक: क्या वापसी संभव है?
राहत की बात यह है कि प्री-डायबिटीज और शुरुआती टाइप-2 डायबिटीज को समय रहते संभाला जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, अब तक का सबसे प्रभावी तरीका वजन घटाना साबित हुआ है. रिसर्च बताती हैं कि अगर ओवरवेट या मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति अपने शुरुआती वजन का करीब 15 फीसदी कम कर ले, तो टाइप-2 डायबिटीज रिमिशन में जा सकती है. यानी ब्लड शुगर सामान्य स्तर पर लौट सकता है, बशर्ते व्यक्ति अपना घटा हुआ वजन बनाए रखे. सही डाइट, एक्टिव लाइफस्टाइल और समय पर जांच से यह संभव हो सकता है.
इलाज नहीं, अब रोकथाम पर जोर जरूरी
अगर भारत को डायबिटीज और प्री-डायबिटीज की बढ़ती लहर को रोकना है, तो सोच में बदलाव जरूरी है. इलाज से ज्यादा फोकस शुरुआती पहचान और रोकथाम पर होना चाहिए. खासकर मोटापा, कम शारीरिक गतिविधि और परिवार में डायबिटीज का इतिहास रखने वाले लोगों की स्क्रीनिंग जल्दी शुरू करनी होगी. विशेषज्ञ मानते हैं कि समय रहते उठाया गया एक छोटा कदम भविष्य में बड़ी बीमारी से बचाव बन सकता है.













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