Buddha Purnima 2019: जब एक वेश्या बनी गौतम बुद्ध की अनुयायी, जानिए नगरवधु आम्रपाली से भिक्षुणी बनने की यह रोचक कहानी
बुद्ध पूर्णिमा 2019 (Photo Credits: File Image)

Buddha Jayanti 2019: एक कहावत मशहूर है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है. कहने का आशय यह कि संगत का असर हर किसी पर कम या अधिक होता ही है. यह कहावत अक्षरशः चरितार्थ होती है, वैशाली की नगर वधु आम्रपाली पर, जिसकी सुंदरता ही उसका अभिशाप बनी. किसी एक व्यक्ति की पत्नी बनने के बजाय हालात के भंवर में फंसकर वह वैशाली के धनवानों के मनोरंजन का साधन बनकर रह गयी. कभी वैशाली के हित के लिए उसे वेश्या बनना पड़ा था, लेकिन महात्मा बुद्ध के युवा शिष्य पर आशक्त होने के बावजूद जब वह अपना मकसद पूरा करने में सफल नहीं हुई तब वह बुद्ध के संसर्ग में आई और यहीं से वह नगर वधु से भिक्षुणी बन ताउम्र लोगों में यही संदेश देती रही, बुद्धम् शरणम गच्छामि..

आखिर कौन थी आम्रपाली? क्या थी उसकी कहानी? और कैसे वह नगरवधु से भिक्षुक बनी...

वैशाली की सर्वाधिक सुंदरी आम्रपाली

आम्रपाली कब और कहां पैदा हुई, उसके माता-पिता कौन थे, यह कोई नहीं जानता. एक शिशु के रूप में वह एक आम के पेड़ के नीचे मिली थी. इसी वजह से उसका नाम आम्रपाली रख दिया. ज्यों-ज्यों वह बढ़ती गयी, उसकी खूबसूरत काया, हिरण सी आंखें, सुर्ख लाल होंठ.. उसकी सुंदरता की चर्चा पूरे वैशाली में सुर्खियां बनती गयीं. जो भी उसे देखता पलकें झपकाना भूल जाता. सभी यही कहते कि यह तो किसी देश की रानी बनने के लिए पैदा हुई है, लेकिन उसकी यही खूबसूरती अंततः उसके लिए अभिशाप बन गयी.

जैसे-जैसे आम्रपाली बड़ी होती गयी, उसका सौंदर्य निखरता गया. उसके व्यक्तित्व से हर कोई मोहित था, जो भी उसे देखता, अपनी पत्नी बनाना चाहता. आम्रपाली के पालक माता-पिता जानते थे कि आम्रपाली की शादी अगर किसी व्यक्ति से करवा दी जाये, तो बाकी लोग उसके खून के प्यासे बन जाएंगे. इससे वैशाली की शांति भंग हो सकती थी.

आम्रपाली पर जनादेश की काली छाया

अंततः इस समस्या से निजात पाने के लिए एक दिन वैशाली के खुले प्रांगण में आम सभा का आयोजन हुआ. यहां उपस्थित सभी पुरुष बिना शर्त आम्रपाली से विवाह करना चाहते थे. लेकिन यह संभव नहीं था. अंततः जो निर्णय लिया गया, वह आम्रपाली के भविष्य के लिए किसी काली चादर से कम भयावह नहीं थी. एक बेहद रूपवती स्त्री आम्रपाली को सर्वसम्मति से नगरवधु यानी वेश्या घोषित कर दिया गया. अब आम्रपाली वैशाली के हर समृद्ध घराने का मनोरंजन का केंद्र बन गयी. सालों तक वह लोगों की भोग्या बनकर जीवन गुजारती उनका मनोरंजन करती रही. अलबत्ता उसका भौतिक जीवन किसी महारानी से कम नही थी. उसका अपना महल था. अपार धन सम्पदा की मालकिन बन गयी थी. नहीं था कुछ तो सुकून और शांति.

नगरवधु बनी भिक्षुक

एक बार बुद्ध अपने सैकड़ों शिष्यों के साथ वैशाली पधारे. सभी शिष्य प्रतिदिन भिक्षार्जन के लिए वैशाली की गलियों में घूमते. वैशाली में ही आम्रपाली का भी महल था. वह वैशाली के राजा, राजकुमारों, धनी और शक्तिशाली लोगों का मनोरंजन करती थी. एक दिन उसके द्वार पर एक युवा भिक्षुक आया. आम्रपाली उस पर मोहित हो उठी. उसने अपने परकोटे से कहा आप अंदर आइये और मेरा दान ग्रहण कीजिये. उस भिक्षुक के पीछे और भी कई भिक्षुक थे. उन्हें युवा भिक्षुक से ईर्ष्या हुई. भिक्षा देने के बाद आम्रपाली ने उस युवा भिक्षुक से कहा कि तीन दिन बाद वर्षा ऋतु शुरू होने वाली है. मैं चाहती हूं कि पूरे वर्षाकाल तक आप हमारे महल में रहें.

युवा भिक्षु ने कहा कि इसके लिए मुझे अपने स्वामी बुद्ध जी से अनुमति लेनी होगी. उनकी अनुमति के बाद ही मैं आपके पास रहने आ सकूंगा. युवा भिक्षुक की बात सुनकर अन्य भिक्षुक नाराज हो गये. वे महात्मा बुद्ध के पास पहुंचे और आम्रपाली और युवा भिक्षुक की कहानी को बढ़ा चढ़ाकर बताया. इस पर बुद्ध ने कहा, आप शांत रहो. वह वहां तभी रुकेगा जब मैं उसे इजाजत दूंगा.

थोड़ी देर बाद ही युवा भिक्षुक बुद्ध के पास आया और उनके चरण स्पर्श कर बताया कि किस तरह यहां की नगरवधु चातुर्मास तक मुझे अपने महल में रखना चाहती हैं. आप अनुमति देंगे, तभी मैं वहां जाऊंगा. बुद्ध ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, तुम वहां रह सकते हो. इसके पश्चात युवा भिक्षुक वहां से चला गया. यह भी पढ़ें: वैशाली में महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र को वापस लाने की मांग तेज हुई

बुद्ध की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी भिक्षुकों को बड़ा आघात पहुंचा. उन्होंने आक्रोषिक होते हुए कहा, स्वामी जी उसे आम्रपाली के भवन में जाने से रोकिये, वर्ना अनर्थ हो जायेगा. क्योंकि वह वेश्या है, एक भिक्षुक उसके साथ चार माह तक कैसे रह सकता है?

बुद्ध ने कहा तुम सभी अपनी दिनचर्या का पालन करो. मुझे अपने शिष्य पर पूरा विश्वास है. वह मेरे विश्वास पर खरा उतरेगा, लेकिन अन्य भिक्षुओं को बुद्ध की बात पर भरोसा नहीं हुआ. लेकिन वह ज्यादा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे.

चार माह पश्चात युवा भिक्षु जब वापस लौटा तो पीछे-पीछे आम्रपाली भी थी. आम्रपाली ने बुद्ध से भिक्षुणी संघ में प्रवेश देने की इजाजत मांगते हुए कहा, - मैंने आपके भिक्षु को पाने के लिए हर संभव कोशिश की, मगर मैं हार गयी. उसके आचरण से मैं यह सोचने के लिए विवश हुई कि अगर आम शिष्य का संयम इतना नियंत्रित है तो इनके गुरु जी कैसे होंगे. इसलिए मैं आपके पास आपके संसर्ग में रहने की इजाजत लेने आई हूं. आपके चरणों में ही मेरे लिए मुक्ति का मार्ग है. मैं अपनी समस्त संपत्ति भिक्षु संघ को दान में देती हूं. इसके पश्चात से ही आम्रपाली के महल और उपवनों को चातुर्मास में सभी भिक्षुओं के रहने के लिए उपयोग में लिया जाने लगा. आगे चलकर वह बुद्ध के संघ में सबसे प्रतिष्ठित भिक्षुणियों में से एक बनी.