
शोध दिखाते हैं कि नई भाषाएं सीखने से मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली में बदलाव आता है. कैसे आते हैं ये बदलाव और क्या कई भाषाएं बोलने वालों का दिमाग बाकियों से तेज चलता है?नई भाषा सीखने के कई कारण हो सकते हैं. कोई नौकरी पाने के लिए सीखता है तो कोई प्यार पाने के लिए. तो किसी किसी की सचमुच किसी देश या इलाके की संस्कृति और लोगों में इतनी रुचि होती है कि उसे समझने के लिए वो नई भाषा सीखने चल पड़ते हैं. कई शोधों से पता चला है कि नई भाषा सीखने से इंसान का दिमाग ज्यादा स्वस्थ बनता है.
असल में नई भाषा सीखना अपने मस्तिष्क की ट्रेनिंग करने जैसा है. जिस तरह नियमित एक्सरसाइज करने से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, उसी तरह जब कोई नई भाषा सीखता है तो मस्तिष्क में न्यूरल पाथवे यानी तंत्रिका पथ नए आकार लेने लगते हैं.
कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट का कहना है कि जो लोग कई भाषाएं बोलते हैं, वे एक भाषा बोलने वालों की तुलना में सूचनाओं को अलग तरह से प्रोसेस करते हैं. आगे विस्तार से जानते हैं कि जब भी आप कोई नई भाषा सीखते हैं, तो असल में मस्तिष्क के अंदर क्या हो रहा होता है, और क्या इससे लोग ज्यादा बुद्धिमान बनते हैं.
दिमाग में भाषा से संबंधित इलाके कहां होते हैं?
असल में भाषा दिमाग के कई हिस्सों से जुड़ा विषय है. अमेरिका के सैन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के तंत्रिका विज्ञानी आर्टुरो हर्नांडेज कहते हैं कि किसी भी भाषा को समझने में दो प्रमुख सर्किट शामिल होते हैं - एक ध्वनि को समझने और पैदा करने के लिए, जो भाषा का आधार बनता है, और दूसरा यह चुनने के लिए है कि किस भाषा की ध्वनि का इस्तेमाल किया जाए.
डीडब्ल्यू से बातचीत में हर्नांडेज ने कहा, "जब हम नई भाषाएं सीखते हैं और उनके बीच स्विच करते हैं तो ये दोनों सर्किट नए न्यूरल पथ बनाते हैं. इससे ध्वनियों की मैपिंग होती है और यह तय होता है कि किस भाषा में काम करना है."
हमारे दिमाग में ऑडिटरी कॉर्टेक्स नामके केंद्र होते हैं जो किसी आवाज की अलग अलग ध्वनियों को प्रोसेस करने का काम करते हैं. वहीं जीभ, होंठ और वोकल कॉर्ड जैसे हिस्से मस्तिष्क के विस्तृत मोटर नेटवर्क का हिस्सा होते हैं, जो सारी मांसपेशियों के बीच समन्वय का काम करते हैं.
यह बात सभी भाषाओं पर लागू होती है और कोई भी नई भाषा सीखने के साथ ही मस्तिष्क के "हाई प्रोसेसिंग" केंद्र में बदलाव जरूर आता है. उदाहरण के लिए, फ्रंटल लोब में स्थित 'ब्रोका क्षेत्र' मुख्य रूप से वाक्यविन्यास के लिए जिम्मेदार है. यानी ये हिस्सा हमें उस भाषा के व्याकरण के हिसाब से वाक्य बनाने और वाक्य संरचना को समझने में मदद करता है.
गले से आवाज पैदा करते और बोलते समय सही शब्दों का चुनाव करने में भी ब्रोका क्षेत्र की अहम भूमिका होती है. वहीं, दिमाग के एक अन्य हिस्से 'वर्निक क्षेत्र' का काम किसी भाषा की शब्दावली को समझना और जरूरत पड़ने पर दिमाग से खोज कर सामने लाना है. यही हिस्सा बोले गए शब्दों के मायने समझने और उन्हें आपकी स्मृति में लंबे समय तक बसाने में मदद करता है.
नई भाषा सीखने से दिमाग की संरचना कैसे बदलती है
2024 में कराई गई एक जर्मन स्टडी में सीरियाई शरणार्थियों के मस्तिष्क की गतिविधियों को मापा गया. ऐसा उनके जर्मन भाषा सीखने से पहले, सीखने के दौरान और सीखने के बाद किया गया. इसमें पाया गया कि जैसे-जैसे लोग जर्मन भाषा में अधिक कुशल होते गए, उनके मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में भी परिवर्तन होता गया.
'ब्रेन रीवायरिंग' का मतलब है कि मस्तिष्क की तंत्रिका संरचना में शारीरिक रूप से बदलाव आया. इसी प्रक्रिया को न्यूरोप्लास्टिसिटी कहा जाता है यानी ऐसा तंत्र जो कुछ भी सीखने का आधार है. नई भाषा सीखने वालों के मस्तिष्क को नई भाषाई जानकारी को एनकोड करने, जमा करने और फिर से निकाल कर इस्तेमाल करने की जरूरत होती है.
अमेरिका के पेंसिलवेनिया में कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस की विशेषज्ञ जेनिफर विटमेयर बताती हैं, ""संरचना के तौर पर इससे दिमाग के भाषा से जुड़े इलाकों में ग्रे सेल्स बढ़ती हैं, और कामकाज के तौर पर देखें तो इससे दिमाग के अलग अलग हिस्सों के बीच बेहतर संबंध स्थापित होता है."
मस्तिष्क में संरचनात्मक परिवर्तन उसके काम करने के तरीके को भी बदल देते हैं क्योंकि इससे न्यूरॉनंस के संचार का तरीका बदल जाता है. यह तथाकथित - न्यूरल प्लास्टिसिटी - आपको शब्दों को तेजी याद रखने, नई ध्वनियों को बेहतर ढंग से पहचानने और अपने मुंह की मांसपेशियों को नियंत्रित करके उच्चारण को बेहतर बनाने में मदद करती है.
बचपन में नई भाषाएं सीखना आसान क्यों होता है
स्टडीज से पता चलता है कि हम, सभी भाषाओं के लिए मस्तिष्क के समान नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन हमारी मूल भाषा के प्रति हमारा मस्तिष्क अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है. एक अध्ययन में पाया गया कि जब प्रतिभागियों को उनकी मूल भाषा सुनाई गई तो मस्तिष्क के लैंग्वेज नेटवर्क में गतिविधि वाकई कम हो गई. शोधकर्ताओं के अनुसार यह दिखाता है कि आपके द्वारा सीखी गई पहली भाषा मस्तिष्क में न्यूनतम प्रयास से प्रोसेस होती है.
शोध से यह भी पता चलता है कि छोटे बच्चों के लिए नई भाषाएं सीखना बड़ों की तुलना में कहीं अधिक आसान होता है. छोटे बच्चों का मस्तिष्क विकास की अवस्था में होता है और न्यूरल प्लास्टिसिटी और सीखने के लिए कहीं अधिक अनुकूल होता है. वयस्कों से उलट, उन्हें अपनी मूल भाषा से अनुवाद करने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए वे ध्वनियां, व्याकरण और शब्दों को अधिक सहजता से सीख लेते हैं.
हर्नांडेज ने कहा, "बचपन में मस्तिष्क में उतनी कठोरता नहीं होती. वयस्क मस्तिष्क पहले से ही अपनी पहली भाषा के इर्द-गिर्द बन चुका होता है, इसलिए दूसरी भाषा को पहले से स्थापित न्यूरल नेटवर्क पर निर्भर रहना पड़ता है."
क्या भाषाएं सीखने से बनते हैं होशियार?
कुछ शोधों से पता चलता है कि कई भाषाएं बोलने वालों की याददाश्त और समस्याओं का समाधान करने जैसी कॉग्निटिव क्षमताएं बेहतर होती हैं. तो क्या मान लिया जाए कि बहुभाषी लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं?
हर्नांडेज कहते हैं, "अगर कोई एक से ज्यादा भाषाएं बोलता है तो इससे उसकी मौखिक क्षमता बढ़ती है. उसके पास सभी भाषाओं के लिए अधिक शब्द, अधिक विषय और अधिक अवधारणाएं होती हैं." लेकिन ये अभी साफ नहीं है कि बड़ी शब्दावली होने का संबंध बड़े कॉग्निटिव रिजर्व से है या उस इंसान का केवल शब्द भंडार ही बड़ा है. केवल बड़े शब्द भंडार से कोई ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो जाता.
हर्नांडेज कहते हैं कि किसी पॉलीग्लॉट यानी बहुभाषी इंसान की बुद्धिमत्ता को टेस्ट करने के लिए रिसर्चरों को उनसे दूसरे ऐसे काम करवाने होंगे जो भाषा से जुड़े ना हों. अभी तक इसके पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले हैं.
वैज्ञानिक इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि बहुभाषी लोगों में संज्ञानात्मक कौशल में बदलाव भाषा सीखने के कारण आया है, या उनकी शिक्षा या उस वातावरण के कारण आया है जिसमें वे पले-बढ़े हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि संज्ञानात्मक कौशल में इतने सारे कारक शामिल होते हैं कि इसे भाषा सीखने जैसे एक कारक तक सीमित नहीं किया जा सकता.
लेकिन इस बात की परवाह किए बिना कि बेहतर संज्ञानात्मक कौशल का मतलब अधिक बुद्धिमान होना है या नहीं, इतना तो तय है कि नई भाषाएं सीखने से आपके जीवन में नए सांस्कृतिक अनुभवों के द्वार जरूर खुलते हैं.