How GPS Works? कैसे जानता है आपका फ़ोन आपका सही रास्ता? समझिए GPS की जादुई तकनीक

हम सब दिन में कई बार गूगल मैप्स (Google Maps) या ओला-उबर (Ola-Uber) जैसी ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं. एक क्लिक करते ही नक्शे पर एक नीली बिंदी हमारी सही जगह बता देती है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि हज़ारों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में घूम रही सैटेलाइट को कैसे पता चलता है कि आप इस वक्त किस गली में खड़े हैं?

यह कोई जादू नहीं, बल्कि इंसानी दिमाग का बनाया हुआ एक शानदार सिस्टम है जिसे हम जीपीएस (GPS - Global Positioning System) कहते हैं. आइए, आज इस जादुई तकनीक को बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं.

GPS की दुनिया के तीन मुख्य खिलाड़ी

इस पूरे सिस्टम को चलाने के लिए तीन टीमें मिलकर काम करती हैं:

  1. अंतरिक्ष की टीम (सैटेलाइट्स): पृथ्वी के चारों ओर, बहुत ऊँचाई पर लगभग 30 सैटेलाइट्स का एक जाल बिछा हुआ है. ये सैटेलाइट्स लगातार पृथ्वी का चक्कर लगा रही हैं और एक खास सिग्नल भेजती रहती हैं.
  2. ज़मीन की टीम (कंट्रोल स्टेशन): दुनिया भर में कंट्रोल स्टेशन बने हैं जो इन सैटेलाइट्स पर नज़र रखते हैं. ये सुनिश्चित करते हैं कि सैटेलाइट्स सही रास्ते पर रहें और उनकी घड़ियाँ बिल्कुल सही समय बताएं.
  3. आपकी टीम (आपका फ़ोन): आपका स्मार्टफोन या आपकी गाड़ी में लगा जीपीएस डिवाइस, एक रिसीवर है जो अंतरिक्ष से आ रहे इन सिग्नलों को पकड़ता है.

लोकेशन पता करने का मज़ेदार तरीका: दूरी का अंदाज़ा

जीपीएस का सारा खेल 'दूरी' पता लगाने पर टिका है. सैटेलाइट यह नहीं देखती कि आप कहाँ हैं, वह बस यह देखती है कि वह आपसे 'कितनी दूर' है. इसे एक उदाहरण से समझिए.

मान लीजिए आप एक बड़े मैदान में आँखें बंद करके खड़े हैं और आपके तीन दोस्त अलग-अलग कोनों में खड़े हैं.

  • आपका पहला दोस्त चिल्लाता है और आप उसकी आवाज़ सुनते हैं. आवाज़ को आप तक पहुँचने में जितना समय लगा, उससे आप अंदाज़ा लगा लेते हैं कि वह आपसे 10 मीटर दूर है. अब आप उस दोस्त के चारों ओर 10 मीटर के एक काल्पनिक घेरे में कहीं भी हो सकते हैं.
  • अब आपका दूसरा दोस्त चिल्लाता है. उसकी आवाज़ के हिसाब से आप उससे 15 मीटर दूर हैं. अब आप दूसरे दोस्त के चारों ओर 15 मीटर के घेरे में हैं. ज़ाहिर है, आप उसी जगह पर होंगे जहाँ ये दोनों घेरे एक-दूसरे को काटते हैं. अब आपके लिए सिर्फ दो संभावित जगहें बचती हैं.
  • तभी आपका तीसरा दोस्त चिल्लाता है और पता चलता है कि आप उससे 12 मीटर दूर हैं. जैसे ही आप तीसरा घेरा बनाते हैं, वह पहले दो घेरों को सिर्फ एक ही जगह पर काटता है. बधाई हो! यही आपकी सटीक लोकेशन है.

ठीक इसी सिद्धांत पर जीपीएस काम करता है. इसे ट्राइलेटरेशन (Trilateration) कहते हैं.

सैटेलाइट कैसे नापती है दूरी?

सैटेलाइट कोई आवाज़ नहीं भेजती, बल्कि एक रेडियो सिग्नल भेजती है. इस सिग्नल में दो ख़ास जानकारी होती है:

  1. सैटेलाइट किस जगह पर है.
  2. सिग्नल ठीक किस समय पर भेजा गया.

आपका फ़ोन जब इस सिग्नल को पकड़ता है, तो वह देखता है कि सिग्नल को सैटेलाइट से आप तक पहुँचने में कितना समय लगा. चूँकि सिग्नल की रफ़्तार (प्रकाश की गति) हमें पता है, तो फ़ोन बड़ी आसानी से दूरी का हिसाब लगा लेता है.

दूरी = रफ़्तार x समय

चौथे सैटेलाइट का असली जादू

अब आप सोचेंगे कि जब तीन सैटेलाइट से लोकेशन मिल गई, तो हमने शुरुआत में चार की बात क्यों की थी? यहीं पर असली जादू छिपा है.

सैटेलाइट में लगी घड़ियाँ एटॉमिक क्लॉक (Atomic Clocks) होती हैं, जो अरबों रुपये की आती हैं और कभी गलत समय नहीं बतातीं. लेकिन आपके फ़ोन की घड़ी बहुत साधारण होती है और उसमें एक सेकंड के हज़ारवें हिस्से का भी फ़र्क हो सकता है. दूरी नापने के इस खेल में समय का इतना छोटा सा फ़र्क भी आपको आपकी असली जगह से कई किलोमीटर दूर दिखा सकता है.

यहीं पर चौथी सैटेलाइट काम आती है. आपका फ़ोन चौथी सैटेलाइट से मिले सिग्नल का इस्तेमाल करके अपनी घड़ी की गलती को पकड़ता है और उसे ठीक कर लेता है. जैसे ही आपके फ़ोन का समय सैटेलाइट के समय से बिल्कुल मिल जाता है, आपकी लोकेशन एकदम सटीक (एक्यूरेट) हो जाती है.

तो अगली बार जब आप मैप पर अपनी नीली बिंदी को आसानी से आगे बढ़ते हुए देखें, तो याद रखिएगा कि यह कोई जादू नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में तैरती सैटेलाइट्स, ज़मीन पर बैठे वैज्ञानिकों और आपके हाथ में मौजूद एक छोटे से डिवाइस का शानदार टीम वर्क है.

जीपीएस (GPS) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

प्रश्न 1: जीपीएस (GPS) क्या है?

उत्तर: जीपीएस का पूरा नाम 'ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम' है. यह सैटेलाइट्स का एक नेटवर्क है जो पृथ्वी पर किसी भी व्यक्ति या वस्तु की सटीक लोकेशन बताने में मदद करता है.

प्रश्न 2: मेरा फ़ोन मेरी लोकेशन का पता कैसे लगाता है?

उत्तर: आपका फ़ोन कम से कम 4 जीपीएस सैटेलाइट से आने वाले सिग्नल को पकड़ता है. यह पता लगाता है कि सिग्नल को सैटेलाइट से आप तक पहुँचने में कितना समय लगा. इसी समय और दूरी के हिसाब से, 'ट्राइलेटरेशन' नामक तकनीक का उपयोग करके आपकी सटीक लोकेशन की गणना की जाती है.

प्रश्न 3: लोकेशन बताने के लिए कितने सैटेलाइट्स की ज़रूरत होती है?

उत्तर: आपकी 2D लोकेशन (एक समतल नक्शे पर) का पता लगाने के लिए न्यूनतम 3 सैटेलाइट की ज़रूरत होती है. लेकिन सटीक 3D लोकेशन (ऊंचाई सहित) और समय की त्रुटि को ठीक करने के लिए 4 सैटेलाइट की आवश्यकता होती है.

प्रश्न 4: अगर 3 सैटेलाइट से लोकेशन पता चल जाती है, तो चौथे सैटेलाइट का क्या काम है?

उत्तर: चौथा सैटेलाइट सटीकता (Accuracy) के लिए बहुत ज़रूरी है. सैटेलाइट में लगी घड़ियाँ बेहद सटीक होती हैं, पर हमारे फ़ोन की घड़ी में थोड़ा अंतर हो सकता है. समय का यह छोटा सा अंतर भी लोकेशन में बड़ा फ़र्क ला सकता है. चौथा सैटेलाइट आपके फ़ोन की घड़ी को सैटेलाइट की घड़ी के साथ सिंक करके इस गलती को दूर करता है, जिससे आपको एकदम सटीक लोकेशन मिलती है.

प्रश्न 5: क्या जीपीएस इस्तेमाल करने के लिए इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क ज़रूरी है?

उत्तर: नहीं. आपकी लोकेशन का पता लगाने के लिए जीपीएस को सिर्फ सैटेलाइट से आने वाले सिग्नल की ज़रूरत होती है, इसके लिए इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क नहीं चाहिए. हालांकि, गूगल मैप्स जैसे ऐप पर नक्शे को देखने या डाउनलोड करने के लिए इंटरनेट की ज़रूरत पड़ती है.

प्रश्न 6: जीपीएस को कौन कंट्रोल करता है?

उत्तर: जीपीएस सिस्टम को दुनियाभर में बने ज़मीनी कंट्रोल स्टेशनों की एक टीम द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसका स्वामित्व और संचालन संयुक्त राज्य अमेरिका की स्पेस फ़ोर्स करती है. ये स्टेशन सैटेलाइट्स की सेहत, उनकी कक्षा और समय पर नज़र रखते हैं.