
आज 21वीं सदी के युवाओं की पहचान अब सिर्फ उनके विचारों या सपनों से नहीं, बल्कि उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल से भी जुड़ गई है. आज का युवा जिस तेजी से डिजिटल दुनिया में सक्रिय हो रहा है, उतनी ही तेजी से उनकी मानसिक एवं भावनात्मक दुनिया भी प्रभावित रही है, फिर वह चाहे ट्विटर हो, ब्ल़ॉग हो, यू ट्यूब हो या इंस्टाग्राम की स्टोरी हो. ऐसे में युवाओं के भविष्य को देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सोशल मीडिया उनके लिए संबल है या संकट? सोशल मीडिया दिवस 2025 के अवसर पर आइये एक नजर डालते हैं, सोशल मीडिया से प्रभावित युवाओं की तेजी से बदलती तस्वीर पर... यह भी पढ़ें : National Doctors Day 2025: 1 जुलाई को ही क्यों मनाया जाता है नेशनल डॉक्टर्स डे? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं सेलिब्रेशन!
सोशल मीडिया: आत्म अभिव्यक्ति और अवसरों का मंच?
सोशल मीडिया ने युवाओं को एक ऐसा मंच दिया है, जहां वे खुलकर अपने विचार, प्रतिभा और संवेदनाएं साझा कर सकते हैं.
* एक गांव की लड़की जो कभी मंच पर नहीं बोल पाती थी, आज रील्स बनाकर लाखों लोगों तक पहुंच रही है.
* स्टार्टअप, फ्रीलांसिंग, ब्रांडिंग जैसे नवीनतम रोजगार के अवसर सोशल मीडिया के कारण ही संभव हो रहे हैं.
* सामाजिक मुद्दों पर युवा नेतृत्व अब ऑनलाइन शुरू होता है और ऑफलाइन आंदोलनों का रूप लेता है।
* संबल के रूप में, यह मंच युवाओं को न सिर्फ आत्म-अभिव्यक्ति, बल्कि सीखने, जोड़ने और नेतृत्व करने की शक्ति भी देता है.
नकारात्मक पहलू: डोपामिन साइकल और मानसिक स्वास्थ्य
वहीं सोशल मीडिया का एक बहुत अंधेरा पक्ष भी है, और वह है डोपामिन साइकल, मसलन
* सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस तरह डिज़ाइन किए गए हैं कि जब भी कोई 'लाइक' या 'फॉलो' आता है, दिमाग में डोपामिन (सुखद अनुभव देने वाला हार्मोन) रिलीज़ होता है, जो धीरे-धीरे डिजिटल पुरस्कार एक लत का रूप ले लेते हैं.
* लगातार स्क्रॉलिंग, नोटिफिकेशन चेक करना, और दूसरों की तुलना में खुद को कमतर आंकना, मानसिक थकावट का कारण बनता है.
* इस विषय में हुए शोध बताते हैं कि अत्यधिक सोशल मीडिया के उपयोग से डिप्रेशन, चिंता (anxiety) और नींद की समस्या आम हो रही हैं.
भय (FOMO) और आत्म-सम्मान पर चोट
* FOMO (Fear of Missing Out) यानी इस बात का हमेशा भय रहता है कि कहीं कुछ मिस न हो जाये.
* युवा जब अपने साथियों की आकर्षक तस्वीरें या वीडियो और सफलताएं देखते हैं, तो उनके मन में असंतोष और हीनता की भावना जन्म लेती है, जो धीरे-धीरे उसके आत्मसम्मान और आत्म-छवि को क्षति पहुंचाती जाती है.
* जिन युवाओं में आत्मविश्वास की कमी होती है, वे सोशल मीडिया पर लाइक या कमेंट्स को अपनी मूल्यांकन की कसौटी मानने लगते हैं. यह एक खतरनाक चक्रव्यूह है, जिसमें उनकी पहचान और मानसिक स्थिरता खो सकती है.
समाधान: संतुलन और सजगता की ज़रूरत
सोशल मीडिया से कटऑफ होना समाधान नहीं है, बल्कि जरूरत है सजग उपयोग की.
डिजिटल डिटॉक्स: समय-समय पर सोशल मीडिया से ब्रेक लेना
रियल कनेक्शन: ऑफलाइन परिवार के साथ समय बिताना
मूल्य आधारित पहचान: केवल डिजिटल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि आत्म मूल्यांकन के आधार पर आत्म-छवि बनाना