प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) का पर्व मनाया जाता है! हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है. कार्तिक विनायक चतुर्थी का व्रत रखने वाले जातकों पर भगवान गणेश की कृपा से सुख एवं सौभाग्य की वर्षा होती है, और जीवन में चल रहे तमाम विघ्नों से मुक्ति मिलती है. विद्वानों के अनुसार कार्तिक विनायक चतुर्थी का संबंध महाभारत से भी बताया जाता है. आइये जानते हैं कार्तिक विनायक चतुर्थी के महत्व, मुहूर्त, इस दिन बन रहे विशेष योगों एवं पूजा विधि आदि के बारे में...
विनायक चतुर्थी मूल तिथि एवं पूजा मुहूर्त
कार्तिक विनायक चतुर्थी प्रारंभः 01.19 AM (25 अक्टूबर 2025, शनिवार)
कार्तिक विनायक चतुर्थी समाप्तः 03.48 AM (26 अक्टूबर 2025, रविवार)
इस वर्ष कार्तिक विनायक चतुर्थी 25 अक्टूबर 2025, को मनाया जाएगा.
पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 10.58 AM से दोपहर 01.12 PM तक
विनायक चतुर्थी पर बनने वाले शुभ योग
इस दिन शोभन एवं रवि योग जैसे कई मंगलकारी योगों का संयोग बन रहा है. इसके अलावा पूरी रात भद्रावास योग रहेगा. इन शुभ एवं मंगलकारी योगों में भगवान गणेश की पूजा अत्यंत शुभदायी साबित हो सकता है.
कार्तिक विनायक चतुर्थी का महाभारत से संबंध!
कार्तिक विनायक चतुर्थी का महाभारत से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, बल्कि यह भगवान गणेश के एक पौराणिक प्रसंग से संबद्ध है. एक प्रसंग के अनुसार एक बार भगवान गणेश ने चंद्रमा के अहंकार को तोड़ने के लिए उन्हें श्रॉप दिया कि कार्तिक चतुर्थी के दिन जो भी व्यक्ति चंद्रमा को देखेगा, उसे कुछ भी कलंक लगेगा. संयोगवश कृष्णजी ने इस रात चंद्रमा देखा, और उन पर स्यमंतक मणि चुराने का झूठा आरोप लगा. इस आरोप से मुक्ति पाने के लिए भगवान कृष्ण ने कार्तिक विनायक चतुर्थी को व्रत रखा औऱ गणेश जी की पूजा की. तब उन पर लगा कलंक मिटा. इसके बाद से ही कार्तिक विनायक चतुर्थी पर व्रत और पूजा की परंपरा जारी है.
कार्तिक विनायक चतुर्थी पूजा विधि!
कार्तिक चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान गणेश का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर के निकट एक चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर इस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. इन पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. और धूप दीप प्रज्वलित गणेश जी का आह्वान मंत्र पढ़ें.
‘ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः,
गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।‘’
गणेश जी को 21 गांठ दूर्वा एवं लाल फूल अर्पित करें, रोली एवं अक्षत का तिलक लगाएं. पान, सुपारी चढ़ाएं. भोग में मोदक अथवा लड्डू चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें, और अंत में गणेश जी की आरती उतारें. इसके बाद व्रत का पारण करें.













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