चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट के रक्षा कवच को नुकसान, नहीं कर पा रहा है जरूरी काम
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट के रिएक्टर नंबर चार पर करोड़ों डॉलर से एक कवच बनाया गया. अब पता चला है कि ड्रोन हमले से नुकसान के कारण ये रेडिएशन ब्लॉक नहीं कर पा रहा है. इसे बड़े मरम्मत की जरूरत है.यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट पर बनाया गया रक्षात्मक कवच ड्रोन से क्षतिग्रस्त होने के कारण सुरक्षा मुहैया कराने में कारगर नहीं है. इस शील्ड का मुख्य काम है रेडिएशन को बाहर आने से रोकना और अब यह अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहा है.

'इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी' (आईएईए) ने यह जानकारी दी है. यूक्रेन के मुताबिक, जिस ड्रोन ने चेर्नोबिल की 'प्रोटेक्टिव शील्ड' को नुकसान पहुंचाया, उसे रूस ने दागा था.

ड्रोन हमले की यह घटना फरवरी 2025 में हुई थी. हमले की जानकारी देते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बताया कि एक रूसी ड्रोन ने चेर्नोबिल के क्षतिग्रस्त रिएक्टर पर वार किया. इसकी वजह से वहां आग लगी, जिसे बुझा लिया गया.

घटना के बाद आईएईए ने बताया कि चेर्नोबिल के बाहर और भीतर, रेडिएशन का स्तर सामान्य पाया गया. आईएईए, संयुक्त राष्ट्र का न्यूक्लियर वॉचडॉग है. यह परमाणु क्षेत्र में सहयोग के साथ ही न्यूक्लियर तकनीकों के सुरक्षित और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को भी बढ़ावा देता है.

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अब संबंधित घटना के 10 महीने बाद आईएईए ने एक हालिया जांच के आधार पर बताया है कि शील्ड सुरक्षा मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकता है.

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चेर्नोबिल परिसर, यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब 130 किलोमीटर दूर है. बेलारूस से लगी सीमा से इसकी दूरी लगभग 20 किलोमीटर है. इसका निर्माण सोवियत संघ के दौर में हुआ था, तब यूक्रेन सोवियत का हिस्सा था.

चार न्यूक्लियर रिएक्टरों वाला यह प्लांट सोवियत के 'आरबीएमके रिएक्टर' डिजाइन पर बनाया गया, जिसमें ग्रैफाइट मॉडरेटर होता है. न्यूक्लियर पावर प्लांट में मॉडरेटर वह चीज होती है जो न्यूट्रॉन्स को धीमा कर न्यूक्लियर फिजन से रोकते हैं और उन्हें धीमे थर्मल न्यूट्रॉन्स में बदल देते हैं. और, इस तरह परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए जिस न्यूक्लियर चेन रिएक्शन की जरूरत होती है उसे संभव बनाते हैं.

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चेर्नोबिल के यूनिट एक और दो का निर्माण 1970 और 1977 के बीच हुआ. फिर 1983 में यूनिट तीन और चार का निर्माण पूरा हुआ. तीन साल बाद, 26 अप्रैल 1986 को आधी रात के बाद चेर्नोबिल पावर प्लांट के चौथे रिएक्टर में दो बड़े धमाके हुए.

चार नंबर यूनिट का कोर (भीतरी मुख्य हिस्सा) और छत नष्ट हो गए. विशाल मात्रा में न्यूक्लियर फ्यूल आसपास के वातावरण में फैल गया. इस भीषण हादसे के कारण करीब 10 दिन तक रेडिएशन निकलता रहा. इसे अब तक का सबसे बड़ा परमाणु हादसा माना जाता है.

सरकॉफगस: रेडिएशन लीकेज रोकने का कवच

चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद यूक्रेन, बेलारूस और रूस के प्रभावित इलाकों से लगभग 3,50,000 लोगों को निकालकर दूसरी जगहों पर बसाया गया. अनुमान है कि रेडिएशन के असर के कारण कैंसर से हुई मौतों की संख्या हजारों में है. रिएक्टर के आसपास के एक बड़े इलाके में वन्यजीवन खत्म हो गया.

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस हादसे के कारण यूक्रेन का लगभग 20,000 वर्ग मील का इलाका दूषित हो गया. इतना ही नहीं, रेडियोएक्टिव भाप (प्लूम) समूचे यूरोप में फैल गई. करोड़ों लोग रेडिएशन से प्रभावित हुए.

दुर्घटना के कुछ महीनों दिनों में सोवियत संघ ने रेडियोएक्टिव पदार्थों की लीकेज रोकने के लिए नष्ट हो चुके रिएक्टर नंबर चार के ऊपर एक बड़ा ढांचा बनाया. कंक्रीट और स्टील से बने इस ढांचे को नाम दिया गया, सरकॉफगस. यह एक अस्थायी कवच था, जिसकी आयुसीमा मात्र 30 साल थी.

सोवियत संघ के विघटन के बाद, साल 1997 में चेर्नोबिल की यूनिट संख्या चार को स्थायी तौर पर ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए 'शेल्टर इंप्लिमेंटेशन प्लान' विकसित किया गया. फिर 2010 में एक नए शेल्टर 'न्यू सेफ कन्फाइनमेंट' (एनएससी) का काम शुरू हुआ.

इस नए सरकॉफगस का मकसद रिएक्टर को हर तरफ से सील करके ऐसा ढांचा बनाना था, जो कम-से-कम एक सदी तक काम करे. इसके निर्माण में ध्यान रखा गया कि ना केवल दूषित पदार्थ वातावरण में ना जा पाए, बल्कि चरम मौसमी स्थितियों में भी रिएक्टर सुरक्षित रहे.

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करीब दो दशक एनएससी 2017 में बनकर तैयार हुआ और इसमें 1.75 अरब डॉलर की लागत आई. कद में स्टैचू ऑफ लिबर्टी से भी बड़ा यह सुरक्षा कवच कंक्रीट और स्टील से बना एक विशालकाय शील्ड है.

ड्रोन ने एनएससी को कैसा नुकसान पहुंचाया?

14 फरवरी 2025 की देर रात, करीब दो बजे ड्रोन हमला हुआ. यूएन ने बताया कि भारी विस्फोटकों से लैस ड्रोन ने प्लांट पर वार किया. इसके कारण वहां आग लगी और रिएक्टर संख्या चार के इर्द-गिर्द सुरक्षात्मक ढांचे को नुकसान पहुंचा. यूक्रेन ने इल्जाम लगाया कि यह रूसी ड्रोन था, लेकिन मॉस्को ने प्लांट को निशाने बनाने के आरोपों से इनकार किया.

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आशंका जताई गई कि ड्रोन हमले से हुई क्षति के कारण रेडियोएक्टिव पदार्थ बाहर आ सकता है. साथ ही, बारिश के पानी जैसी चीजें भीतर जा सकती हैं जिससे आगे चलकर जंग लगने का जोखिम है. इस विशालकाय सरकॉफगस के नीचे भारी मात्रा में रेडियोएक्टिव पदार्थ बंद है. ना केवल यूरेनियम, बल्कि 1986 में दुर्घटना के बाद आग को बुझाने की कोशिशों के मद्देनजर सोवियत संघ ने हेलिकॉप्टरों से हजारों टन मात्रा में रेत, लेड और बोरिक एसिड जैसे जो पदार्थ गिराए थे, वो भी भीतर बंद हैं.

इस घटना में शील्ड को हुए नुकसान की समीक्षा के बाद आईएईए के महानिदेशक राफाएल गोसी ने बताया कि मरम्मत का काम किया जा चुका है, लेकिन लंबे समय तक न्यूक्लियर सुरक्षा सुनिश्चित करने और ढांचे को नुकसान से बचाने के लिए विस्तृत मरम्मत कराना बहुत अहम है.

अपने बयान में गोसी ने कहा, "निगरानी दल ने पुष्टि की है कि सुरक्षा के लिए बनाए गए ढांचे ने अपनी प्रमुख सुरक्षा क्षमता खो दी है. इसमें रोकने (कन्फाइनमेंट) की योग्यता भी शामिल है. मगर, यह भी पाया गया कि इसकी नींव या निगरानी व्यवस्थाओं को कोई स्थायी नुकसान नहीं पहुंचा है."