![Nirbhaya Gangrape Case: निर्भया के दोषी अक्षय की क्यूरेटिव पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, टल सकती है फांसी? Nirbhaya Gangrape Case: निर्भया के दोषी अक्षय की क्यूरेटिव पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, टल सकती है फांसी?](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2020/01/BeFunky-collage-27-380x214.jpg)
नई दिल्ली: निर्भया गैंगरेप और हत्या के चारों दोषियों को फांसी पर चढ़ाने की तारीख का ऐलान हो चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी की तैयारियां पूरी कर ली हैं. इस बीच निर्भया गैंगरेप हत्या के दोषी अक्षय की क्यूरेटिव पिटीशन पर आज सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी. जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस आर भानुमती और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ सुधारात्मक याचिका की सुनवाई करेगी. याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही हैं.
उल्लेखनीय है कि सुधारात्मक याचिका किसी दोषी के पास अदालत में अंतिम कानूनी उपाय है. पटियाला हाउस कोर्ट ने सभी चार दोषियों मुकेश (32), पवन गुप्ता (25), विनय कुमार शर्मा (26) और अक्षय को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दिए जाने का वारंट जारी किया है. दोषी अक्षय कुमार सिंह (31) ने कहा है कि अपराध की बर्बरता के आधार पर शीर्ष न्यायालय द्वारा उसके अनुरूप मौत की सजा के सुनाने से इस न्यायालय की और देश की अन्य फौजदारी अदालतों के फैसलों में असंगतता उजागर हुई हैं.
फांसी से बचने के लिए दोषियों की कोशिश जारी-
2012 Delhi gang-rape case: Supreme Court's five-judge bench, headed by Justice NV Ramana, to hear today the curative petition of one of the convicts, Akshay seeking commutation of his death sentence to life imprisonment. pic.twitter.com/nnxQeigoSW
— ANI (@ANI) January 30, 2020
इन अदालतों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय को देखते हुए सभी समस्याओं के समाधान के रूप में मौत की सजा सुनाई हैं. मामले में दो अन्य दोषियों विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार सिंह द्वारा दायर सुधारात्मक याचिकाएं शीर्ष न्यायालय पहले ही खारिज कर चुकी हैं. चौथे दोषी पवन गुप्ता ने सुधारात्मक याचिका दायर नहीं की है, उसके पास अब भी यह विकल्प है.
याचिका में कहा गया है, "यह खोखला दावा है कि मौत की सजा एक विशेष तरह का प्रतिरोध पैदा करती है जो उम्र कैद की सजा से नहीं हो सकता है और उम्र कैद अपराधी को माफ करने जैसा है... यह प्रतिशोध और प्रतिकार को न्यायोचित ठहराने के सिवा कुछ नहीं है." अक्षय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि बलात्कार एवं हत्या के करीब 17 मामलों में शीर्ष न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा में बदलाव कर उसे हल्का किया है.
इसमें कहा गया है कि इस तरह के एक मामले में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले में मौत की सजा को इस न्यायालय ने एक पुनर्विचार फैसले में घटा कर 20 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया. यह इस आधार पर किया गया कि दोषी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी और उसके सुधार की अब भी गुंजाइश है. अक्षय ने न्यायालय से जानना चाहा है कि यदि याचिकाकर्ता को जीवित छोड़ दिया जाता है और उसे जेल में रहते हुए अपने परिवार के लिए मामूली आय अर्जित करने की इजाजत दी जाती है तो क्या वह अपनी कोठरी के अंदर समाज के लिए क्या खतरा पेश करेगा.
याचिकाकर्ता ने उम्र कैद की सजा काटने वाले ऐसे कई दोषियों को देखा है जो गरीब थे लेकिन गरीबी में जी रहे अपने परिवारों के लिए कम से कम मामूली रकम तो भेज सकें. याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय से पूछा है कि उसकी जिंदगी समाप्त करने के बजाय उसकी उम्रकैद की सजा से क्यों सामूहिक चेतना संतुष्ट नहीं होगी.
जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उसने कहा कि इसने बलात्कार एवं हत्या के अपराधों के लिए मौत की सजा के खिलाफ पैरोकारी की है. अपनी सामाजिक आर्थिक दशा का जिक्र करते हुए अक्षय ने कहा कि यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसपर कोर्ट को सजा सुनाते समय विचार करने की जरूरत थी लेकिन इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया. उसने सुधार की गुंजाइश की संभावना और आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं होने का भी जिक्र किया.
(इनपुट भाषा से)