Gauri Visarjan 2025 Date: गौरी पूजन (Gauri Pujan) हिंदू महिलाओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो माता गौरी की पूजा को समर्पित है. यह त्योहार मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाया जाता है. यह हर साल गणेश चतुर्थी के चौथे या पांचवें दिन पड़ता है. इसे ज्येष्ठ गौरी पूजा और मंगला गौरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है. यह विवाहित और अविवाहित दोनों प्रकार की महिलाओं द्वारा किया जाता है. विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और कल्याण की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित महिलाएं एक आदर्श पति की कामना करती हैं. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी सीता ने भगवान राम को पाने के लिए गौरी पूजन किया था. गौरी पूजन सामान्यतः सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है. देवी को प्रसन्न करने से घर में खुशियां आती हैं और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. इससे पति-पत्नी के रिश्ते बेहतर होते है. इसके अलावा, इससे विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और मनचाहा और योग्य जीवनसाथी मिलता है. यह भी पढ़ें: Hartalika Teej 2025 Wishes: हरतालिका तीज की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, GIF Greetings के जरिए दें सखी-सहेलियों को शुभकामनाएं
गौरी पूजन तिथि (Gauri Pujan Date)
यह शुभ त्योहार सोमवार, 1 सितंबर, 2025 को पड़ रहा है. गौरी पूजन एक महाराष्ट्रीयन त्योहार है जो ज्यादातर मराठी समुदाय के लोगों के बीच मनाया जाता है.
पूजा मुहूर्त- सुबह 05:59 बजे से शाम 18:43 बजे तक
अवधि - 12 घंटे 43 मिनट
ज्येष्ठा गौरी आवाहन: रविवार, 31 अगस्त 2025
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन: मंगलवार, 2 सितंबर 2025
ज्येष्ठा नक्षत्र प्रारम्भ - 31 अगस्त 2025 को सायं 05:27 बजे
ज्येष्ठा नक्षत्र समाप्त - 01 सितंबर 2025 को शाम 07:55 बजे
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन मंगलवार, 2 सितंबर 2025
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन (Gauri Visarjan) मुहूर्त - सुबह 06:00 बजे से शाम 06:41 बजे तक
अवधि - 12 घंटे 42 मिनट
ज्येष्ठ गौरी आवाहन रविवार, 31 अगस्त 2025
ज्येष्ठ गौरी पूजा सोमवार, 1 सितंबर 2025
गौरी पूजन कथा (Gauri Pujan Katha)
प्राचीन काल में, धर्मपाल नामक एक धनी व्यापारी अपनी पत्नी के साथ आनंद नगर में सुखपूर्वक रहता था. धर्मपाल के जीवन में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसे हमेशा एक बात का दुःख रहता था: उसकी कोई संतान नहीं थी. धर्मपाल नियमित रूप से पूजा-पाठ और दान-पुण्य करता था. कुछ समय बाद, उसकी पूजा और पुण्य कर्मों से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई.
धर्मपाल ने अपने पुत्र के भविष्य के बारे में पूछताछ की और पुरोहितों ने उसे बताया कि उसका पुत्र अल्पायु होगा. यह जानकर धर्मपाल बहुत दुःखी हुआ. हालांकि, उसकी पत्नी ने उसे सांत्वना दी और कहा कि उसे ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए, और प्रभु का आशीर्वाद सब कुछ ठीक कर देगा. जब धर्मपाल का पुत्र युवा हुआ, तो उसने उसका विवाह एक धर्मपरायण कन्या से कर दिया, जो सदैव माता गौरी की पूजा करती थी. विवाह के बाद, कन्या ने माता गौरी की पूजा जारी रखा. कहा जाता है कि माता गौरी ने आशीर्वाद दिया कि उसका पति दीर्घायु और स्वस्थ रहेगा.
इस पर्व के तीन दिनों में, माता गौरी के साथ-साथ गौरी पूजन में भगवान गणेश और भगवान शिव की भी पूजा की जाती है. अविवाहित महिलाएं और विवाहित महिलाएं, सुखी और संतुष्ट वैवाहिक जीवन के लिए माता गौरी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं.













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