Dolyatra 2024: कब और क्या है डोल यात्रा? जानें इसका सांस्कृतिक एवं पारंपरिक महत्व तथा अनुष्ठान विधि इत्यादि
Credit-Latestly.Com

Dolyatra 2024: सनातन धर्म के लोकप्रिय पर्वों में एक है डोल यात्रा. मुख्य रूप से यह पर्व ब्रज क्षेत्र के अलावा पश्चिम बंगाल, और ओडिशा, त्रिपुरा, असम में जीवंत होली के साथ मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा के पवित्र-प्रेम की स्मृति में मनाए जाने वाले इस प्राचीनतम पर्व का अपना धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है. इसे विभिन्न स्थानों के अनुसार ‘डोल पूर्णिमा’, ‘डोलो जात्रा’, ‘डोल उत्सव’ एवं ‘देउल’ आदि नामों से भी जाना जाता है. यह पर्व वस्तुतः एकता, सद्भावना, प्रेम का प्रतीक है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष डोल यात्रा का पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा. यहां हम डोल यात्रा की उत्पत्ति, परंपराओं, एवं महत्व आदि के बारे में बात करेंगे. यह भी पढ़े: Haft-Sin Table in Nowruz 2021: 7 ‘S’ क्या हैं? जानें पारसी नव वर्ष के जश्न में शामिल की जाने वाली सात पारंपरिक चीजें और उनका महत्व

डोल यात्रा की तिथि एवं मुहूर्त

डोल यात्रा पूर्णिमा प्रारंभः 09.54 AM (24 मार्च 2024, सोमवार)

डोल यात्रा पूर्णिमा समाप्तः 12.29 PM (25 मार्च 2024, मंगलवार)

डोल यात्रा के अनुष्ठान और परंपराएं

दो दिवसीय डोल यात्रा का पर्व होलिका दहन से शुरू होता है. स्थानीय लोग जलती होलिका के चारों ओर इकट्ठा होते हैं. प्रार्थना करते हुए बुरी आत्माओं से सुरक्षा और आशीर्वाद पाने के लिए लोग नारियल एवं अन्य भोग चढ़ाते हैं. अगले दिन डोल यात्रा का मुख्य उत्सव होता है. इस दिन लोग अबीर-गुलाल एवं पानी वाले रंग एक दूसरे पर फेंकते हैं. बहुत सारे कृष्ण भक्त भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा पर अबीर-गुलाल एवं फूलों की बारिश करते हैं.

डोल यात्रा महोत्सव

इस शुभ अवसर पर ब्रज, बंगाल, ओडिशा और असम में, भगवान श्रीकृष्ण और उनकी प्रिय राधा की मूर्तियों को रंगीन वस्त्रों एवं फूलों से श्रृंगार किया जाता है. राधा-कृष्ण की मूर्तियों को फूल, पत्तियों, जीवंत वस्त्रों और कागजों से सजाकर, एक पालकी में रखकर औपचारिक परेड की जाती है. जुलूस बस्तियों से गुजरते हुए आगे बढ़ती है, दो पुरुष प्रतिमाओं पर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं तथा महिलाएं लोक गीत और भजन इत्यादि गाती हैं. दर्शक एवं भक्तगण राधा-कृष्ण के रथ पर फूलों की वर्षा करते हुए जयकारा लगाते हैं.

डोल यात्रा का सांस्कृतिक महत्व

डोल यात्रा सिर्फ रंगों का पर्व नहीं है, इसका गहरा सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी है. यह जाति, धर्म, पंथ और सामाजिक स्थिति की बाधाओं को तोड़कर लोगों को एक छत के नीचे लाता है. यह पर्व एकता, प्रेम और क्षमा को बढ़ावा देता है. इस अवसर पर लोग अपने पुराने सारे मतभेद भूलकर संयुक्त रूप से खुशियां मनाते हैं. डोल यात्रा वसंत के आगमन का भी प्रतीक है, जो प्रकृति के कायाकल्प एवं बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. पर्व के दौरान उपयोग किये जाने वाले जीवंत रंगों और समाज में मौजूद विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं.