Chitragupt Puja 2025: भगवान चित्रगुप्त अब कागज नहीं क्लाउड पर विराजमान हैं! जानें आज डिजिटल-युग में हमारे कर्म कहां दर्ज हो रहे हैं, जानकर चौंक पड़ेंगे!

  भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में चित्रगुप्त पूजा का एक विशिष्ट स्थान है. यह पर्व मुख्य रूप से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन कायस्थ समुदाय द्वारा मनाया जाता है. इस दिन धर्म के देवता चित्रगुप्त एवं कलम की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं. अगर इस पर्व की परंपरा को हम डिजिटल युग से जोड़ें तो यह प्रश्न उठता है कि क्या अब भी कोई चित्रगुप्त हमारे कर्मों का हिसाब-किताब रखता है? आज (22 अक्टूबर 2025) चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर आइये जानते हैं कि डिजिटल युग नैतिक लेखा-जोखा की प्रासंगिकता क्या है.

चित्रगुप्त: एक परंपराएक प्रतीक

   चित्रगुप्त केवल एक पौराणिक देवता ही नहींबल्कि नैतिकतान्याय और पारदर्शिता के प्रतीक हैं. वह हमें स्मरण कराते हैं कि हमारे कर्म कभी छुपते नहीं, हर किसी के कर्म-क्रिया का कहीं न कहीं लिखा होता हैऔर अंततः हमें उसका फल भी प्राप्त होता है. कुछ दशक पूर्व तक सारे लेखा-जोखा को बही के रूप में होता थाआज बदले युग में वह डेटाडिजिटल ट्रैकिंग और AI एल्गोरिद्म के रूप में हमारे सामने है. यह भी पढ़ें : गोवर्धन पूजा के इन हिंदी Wishes, WhatsApp Messages, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

डिजिटल युग में कर्मों का लेखा-जोखा

आज हम जिस डिजिटल युग में जी रहे हैंउसमें हमारे ऑनलाइन व्यवहार’, ‘सर्च हिस्ट्री’, ‘सोशल मीडिया गतिविधियां’, और ई-कॉमर्स लेन-देन’, सब कुछ दर्ज हो रहा हैक्या आप जानते हैं कि Google, Facebook, या Amazon को आपके बारे में इतना कुछ कैसे पता चलता है? अथवा क्या ‘AI’ और ‘Big Data’ अब नये भगवान चित्रगुप्त नहीं बन चुके हैं? क्योंकि चित्रगुप्त अब कागज पर नहीं क्लाउड पर बैठते हैं.   

नैतिकता और तकनीक: एक नया संघर्ष

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त हमारे कर्म ही दर्ज नहीं करतेबल्कि उनका मूल्यांकन भी करते हैं. ठीक उसी तरह आज का डिजिटल सिस्टम भी हमारी पसंद-नापसंदझूठ-सच और नैतिक-अनैतिक व्यवहार का आकलन करते हैं. उदाहरणार्थ फेक न्यूज़ फैलाना, ऑनलाइन ट्रोलिंग एवं डेटा चोरी. इन तमाम घटना क्रमों में नैतिकता का प्रश्न उठता है. भगवान चित्रगुप्त की पूजा इस बात की याद दिलाती है कि माध्यम भले ही बदल जाए, लेकिन नैतिक जिम्मेदारी कभी समाप्त नहीं होती.

आधुनिक चित्रगुप्त: हम स्वयं हैं!

आज के डिजिटल युग में हर व्यक्ति खुद एक डेटा पॉइंट’ हैलेकिन साथ ही एक डेटा जज’ भी हैहम जो देखते हैंशेयर करते हैंया प्रतिक्रिया देते हैं. वह केवल तकनीक नहींहमारे नैतिक चरित्र का भी प्रतिबिंब है. आज चित्रगुप्त केवल ऊपर नहीं बैठे हैं, वह हमारे अंदर की नैतिक चेतना’ में भी हैं.

इसका सार यही है कि  चित्रगुप्त-पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहींबल्कि आत्मनिरीक्षण का पर्व है. डिजिटल युग मेंजब हमारे प्रत्येक कर्म ऑनलाइन दर्ज हो रहे हैंतब इस परंपरा की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है. यह समय है, जब हमें डिजिटल नैतिकता को उतनी ही गंभीरता से लेने की जरूरत हैजितनी कभी पाप-पुण्य के बही-खातों को दी जाती थी.