Chitragupta Puja 2020 Date, Subh Muhurat and Significance: हिंदुओं के लिए एक शुभ समय है, कई लोगों के लिए दिवाली (Diwali) के बाद से नए साल की शुरुआत हो जाती है. बीते दिन देशभर में दिवाली मनाई गई, दीपावली पूजा के बाद भक्त चित्रगुप्त की पूजा करते हैं, जिसे 'यम द्वितीय' (Yama Dwitiya) भी कहा जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja) होती है. इस दिन को 'यम द्वितीया' भी कहते हैं, जो भाई दूज के नाम से प्रसिद्ध है. इस साल चित्रगुप्त पूजा 16 नवंबर दिन (सोमवार) को है. मान्यताओं के अनुसार, देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त महाराज मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को नई कलम या लेखनी की पूजा चित्रगुप्त जी के प्रतिरूप के तौर पर होती है. कायस्थ या व्यापारी वर्ग के लिए चित्रगुप्त पूजा दिन से ही नववर्ष का अगाज माना जाता है.
आज हम आपको चित्रगुप्त की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, और पूजा विधी के बारे में बताएंगे. 16 नवंबर की सुबह 07:06 मिनट से 17 नवंबर की सुबह 03:56 बजे तक है. ड्रिक पंचांग के अनुसार, यम द्वितीया अपर्णा मुहूर्त दोपहर 1:20 से शुरू होकर 3:29 बजे तक है. द्वितीया तिथि 15 नवंबर को रात 8:36 बजे से शुरू हो रही है और 16 नवंबर, 2020 को शाम 5:26 बजे तीथि समाप्त हो रही है.
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चित्रगुप्त पूजा मुहूर्त
कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 16 नवंबर को सुबह 07:06 बजे से हो रहा है और 17 नवंबर को तड़के 03:56 बजे तक है. ऐसे में आप चित्रगुप्त पूजा 16 नवंबर को करें. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06:45 से दोपहर 02:37 तक है. विजय मुहूर्त दोपहर 01:53 बजे से दोपहर 02:36 तक है. अभिजित मुहूर्त दिन में 11:44 बजे से दोपहर 12:27 बजे तक है. आप इन मुहूर्त में चित्रगुप्त पूजा कर सकते हैं.
पढ़े जाने वाले मंत्र
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम्! महीतले
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते
चित्रगुप्त! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोस्तुते
चित्रगुप्त जी ऐसे हुए कायस्थ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचानाकार ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी को उत्पन्न किया था. उनकी काया से उत्पन्न होने के कारण चित्रगुप्त जी कायस्थ भी कहे जाते हैं. उनका विवाह यमी से हुआ है, इस वजह से वे यम के बहनोई भी कहे जाते हैं. यम और यमी सूर्य देव की जुड़वा संतान हैं. यमी ही बाद में यमुना के स्वरुप में पृथ्वी पर आ गईं.
चित्रगुप्त पूजा विधि:
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितिया के दिन प्रातःकाल उठकर सूर्योदय से पूर्व स्नान कर नया वस्त्र धारण करें. अब एक पाटले को धोकर उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र कर लें. इस पर लाल रंग का नया वस्त्र बिछाएं. अब इस पर श्रीचित्रगुप्त जी की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. इस तस्वीर के साथ ही श्रीगणेश जी की भी तस्वीर अवश्य रखें. सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें. अब श्री चित्रगुप्त जी की प्रतिमा को पहले पंचामृत से फिर गंगाजल से स्नान करायें. अब इनके मस्तक पर रोली, चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं, अक्षत का छिड़काव करें. तत्पश्चात लाल पुष्प की माला पहनाकर धूप एवं दीप प्रज्जवलित करें. पाटले पर ही एक तरफ भोग के लिए मिष्ठान एवं पुस्तक, कलम, दवात एवं नया बहीखाता रखें. यह पूजा परिवार द्वारा सामूहिक रूप से की जाती है.
अब परिवार के सभी सदस्य भूमि पर बैठकर एक सफेद पेपर और दवात अपने पास रखें. सर्वप्रथम सफेद पेपर पर हल्दी पानी के घोल से भगवान श्री चित्रगुप्त जी के चित्र का रेखांकन करें. इनके मस्तक पर भी रोली का तिलक लगाएं. अब सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः लिख लें. श्रद्धालु चाहें तो अपने अन्य इष्ट देवता एवं देवियों का नाम भी लिख सकते हैं. अब श्रीचित्रगुप्त जी की पूजा-अर्चना करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए श्रीचित्रगुप्त जी से प्रार्थना करें कि पूजा अर्चना में अगर कोई त्रुटि हो गयी है तो छमा करें, और हमारे सारे कष्टों का हरण करें. पढे जाने वाले मंत्र हैं
चित्रगुप्त पूजा के समय इस मंत्र का करें उच्चारण:
इस दिन 'ओम श्री चित्रगुप्ताय नमः' मंत्र का भी जाप करना उत्तम माना जाता है.