केरल इन दिनों एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है. राज्य में अचानक ब्रेन-ईटिंग अमीबा (Brain-Eating Amoeba) यानी नेग्लेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri) से होने वाले प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस (PAM) के मामलों में खतरनाक बढ़ोतरी दर्ज की गई है. वर्ष 2025 में अब तक 69 मामले और 19 मौतें रिपोर्ट की गई हैं, जबकि 2023 तक छह सालों में कुल मिलाकर 10 से भी कम केस सामने आए थे.
क्या है ब्रेन-ईटिंग अमीबा संक्रमण?
ब्रेन-ईटिंग अमीबा या नेग्लेरिया फाउलेरी एक सूक्ष्म जीव है, जो गर्म मीठे पानी और मिट्टी में पाया जाता है. यह दिमाग में सूजन पैदा कर कुछ ही दिनों में मौत का कारण बन सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह संक्रमण आमतौर पर स्वस्थ बच्चों, किशोरों और युवाओं में देखा जाता है.
संक्रमण कैसे होता है?
यह संक्रमण पानी पीने से नहीं होता और न ही यह एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है. खतरा तब होता है जब संक्रमित पानी नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है, जैसे तालाब या झील में तैरते समय, बिना क्लोरीन वाले स्विमिंग पूल में नहाने पर या नाक की सफाई के दौरान असुरक्षित पानी का उपयोग करने पर संक्रमण के बाद अमीबा नाक से दिमाग तक पहुंचकर टिश्यू को नष्ट करता है.
लक्षण जिन्हें नजरअंदाज न करें
लक्षण एक्सपोजर के 1–9 दिनों के भीतर दिख सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- तेज सिरदर्द और बुखार
- मतली और उल्टी
- गर्दन में अकड़न और भ्रम
- संतुलन खोना, दौरे और भ्रमित होना
- गंभीर मामलों में कोमा तक पहुंचना
- सीडीसी के अनुसार, अधिकतर मरीज लक्षण शुरू होने के 1–18 दिनों के भीतर मौत का शिकार हो जाते हैं.
केरल में मामलों की संख्या क्यों बढ़ रही है?
- जलवायु परिवर्तन: तापमान बढ़ने और हीटवेव्स के कारण तालाबों और झीलों का पानी इस अमीबा के लिए और अधिक अनुकूल हो गया है.
- गंदे जल स्रोत: कई तालाबों और कुओं में सीवेज और कचरे के कारण बैक्टीरिया की भरमार है, जो अमीबा को पनपने का अवसर देती है.
क्या है इसका इलाज
इस संक्रमण का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती पहचान और दवाओं का कॉम्बिनेशन मददगार हो सकता है. केरल में डॉक्टर एम्फोटेरिसिन बी, रिफैम्पिन, मिल्टेफोसिन, एज़िथ्रोमाइसिन, फ्लुकोनाज़ोल जैसी दवाओं का उपयोग कर रहे हैं. हाल ही में कुछ मरीजों की जान बचाना डॉक्टरों के लिए उम्मीद की किरण है.
बचाव के आसान उपाय
- तालाब, झील या बिना क्लोरीन वाले पानी में तैरने से बचें.
- तैरते समय नाक क्लिप पहनें या सिर को पानी से ऊपर रखें.
- नाक की सफाई या जल नेति के लिए हमेशा उबला और ठंडा, डिस्टिल्ड या स्टरलाइज़्ड पानी ही इस्तेमाल करें.
- घर के टैंक, कुएं और स्विमिंग पूल की नियमित सफाई और क्लोरीनेशन करें.
- खुले घावों को गंदे पानी या मिट्टी के संपर्क में न लाएं.
जागरूकता से बचाई जा सकती है जान
केरल का 24% मृत्यु दर वैश्विक 97% दर की तुलना में काफी कम है, जो यह दिखाता है कि जागरूकता और त्वरित उपचार से जानें बचाई जा सकती हैं. लेकिन बढ़ते मामले यह चेतावनी देते हैं कि जलवायु परिवर्तन और खराब जल-सफाई प्रणालियां ऐसी दुर्लभ बीमारियों को आम बना सकती हैं. सुरक्षित पानी का उपयोग, सतर्कता और स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइंस का पालन करके ही इस खतरे से बचा जा सकता है.













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