Thamma Movie Review: आयुष्मान खुराना-रश्मिका मंदाना की फिल्म 'थामा' आज होगी रिलीज, मूवी ने दिया एंटरटेनमेंट का धमाकेदार डोज
थम्मा (Photo: YouTube)

Thamma Movie Review: मैडॉक फिल्म्स (Maddock Films) एक बार फिर अपने हॉरर-वर्स को विस्तार देते हुए लाया है ‘थामा’ एक ऐसी फिल्म जो पारंपरिक डरावनी कहानियों से हटकर एक नए सिनेमाई अनुभव की पेशकश करती है. निर्देशक आदित्य सरपोतदार (Aditya Sarpotdar) इस बार डर को केवल डराने तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उसमें भावनाएं, ह्यूमर और गहराई का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं जो दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. यह भी पढ़ें: Diwali 2025: Alia Bhatt से सोहा अली खान तक, प्री-दीपावली सेलिब्रेशन में बॉलीवुड सितारों ने जमाया रंग

फिल्म: थामा

डायरेक्टर – आदित्य सरपोतदार

राइटर – निरेन भट्ट, सुरेश मैथ्यू, अरुण फलारा

कास्ट – आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, परेश रावल, सत्यराज, फ़ैज़ल मलिक, गीता अग्रवाल, रचित सिंह

ड्यूरेशन – 149 मिनट

रेटिंग – 3.5/5

कहानी में क्या है खास?

कहानी हमें एक रहस्यमयी जंगल में ले जाती है, जहां पुरानी कहानियां आज भी सांस लेती हैं और सदियों पुराने रक्षक फिर से जाग उठे हैं. नाम थामा भले ही सादा लगे, लेकिन इसके भीतर बुना गया फैंटेसी की दुनिया अपने ही नियमों, श्रापों और नतीजों से भरी है. बाकी सुपरनैचुरल थ्रिलर्स की तरह ये डराने की कोशिश नहीं करती, बल्कि दिल छू लेने वाली इमोशन्स और हल्के-फुल्के ह्यूमर से भरी है. यहां डर से ज़्यादा भरोसा है, और कॉमेडी के बीच भी इंसानियत की वो गर्माहट है जो अपने अपनो को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. फिल्म न तो बेतुकी लगती है, न ही ज़रूरत से ज़्यादा ड्रामे से भरी बल्कि यह बस एक खूबसूरत बैलेंस बनाए रखती है.

परफॉर्मेंस की बात करें तो...

फिल्म का हीरो है एक छोटे शहर का जर्नलिस्ट है, जिसे आयुष्मान खुराना ने बड़ी ही खूबसूरती से निभाया है. जिसकी ज़िंदगी तब पलट जाती है जब एक अनहोनी सी अलौकिक घटना उसके सामने घटती है और वहीं से शुरू होता है ऐसा सिलसिला, जिसकी गहराई वो खुद भी नहीं समझ पाता. शुरुआत में उसका किरदार हल्का-फुल्का, अपनापन लिए हुए लगता है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वही किरदार गंभीरता और भावनाओं से भर जाता है. वहीं, रश्मिका मंदाना यहां सभी का दिल जीतती हैं, उनकी परफॉर्मेंस इमोशनल करने वाली भी है और सच्ची भी. उनमें जोश भी है और नर्मी भी, और सबसे ख़ास बात ये कि उन्होंने हॉरर कॉमेडी की बनावटी चमक-दमक से खुद को दूर रखा है.

सेकंड हाफ आते ही फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है. एक्शन से लेकर किरदारों के ट्रांसफॉर्मेशन तक, हर सीन में ऊर्जा भर देती है. स्पेशल इफेक्ट्स इतने शानदार हैं कि टकराव सिर्फ लड़ाई नहीं लगता, बल्कि इन दोनों के बीच किसी गहरे रिश्ते की ओर इशारा करता है. और तभी मन में सवाल उठता है, ये कनेक्शन आखिर क्या है? जवाब जब मिलता है, तो दिमाग़ सन्न रह जाता है, क्योंकि वो हमारी सोच से कहीं आगे है.

परफॉर्मेंस की बात करें तो सभी ने जबरदस्त एक्टिंग की है. परेश रावल ने ह्यूमर और तीखे अंदाज़ में बढ़िया कॉमिक रिलीफ़ दिया है, जबकि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अपने इंटेंस और डार्क प्रेसेंस से फिल्म पर दबदबा बना लिया है. उनके किरदार को जिस तरह से पेश किया गया है उससे यह बड़ा संकेत मिलता है कि शायद अच्छाई और बुराई की भविष्य की जंग में उनका किरदार अहम भूमिका निभाएगा.

इसके बाद सत्यराज की वापसी होती है एल्विस के रूप में, जो एक अजीबोगरीब पैरानॉर्मल एक्सपर्ट हैं जिन्हें ‘हैंड ऑफ गॉड’ कहा जाता है. लेकिन इस बार वो सिर्फ हंसी-मज़ाक के लिए नहीं आए हैं, बल्कि उनकी एंट्री सब कुछ बदल देती है. एक अहम सीन में एल्विस, आलोक के नए रूप बेताल और भेड़िया के बीच गहरे कनेक्शन की तरफ इशारा करते हैं, जो पिछली बार स्त्री 2 में सर कटा से भिड़ते दिखे थे. कहना होगा ये एक सोचा समझा, हल्का लेकिन रोमांचक लिंक है जो मैडॉक यूनिवर्स के फैंस को आने वाले बड़े प्लॉट की झलक देता है.

जिस नूरा फतेही कैमियो की पहले इतनी चर्चा हुई थी, वह सिर्फ ग्लैमर के लिए नहीं, बल्कि कहानी में अहम रोल निभाती है. उनकी मौजूदगी स्त्री से जुड़ी एक भावनात्मक कड़ी जोड़ती है और ये सीक्वेंस पुराने फैंस के लिए एक बड़ा हाई पॉइंट बन जाता है.

अगर हम यूनिवर्स बिल्डिंग की बात करें, तो थम्मा इसमें कमाल कर जाती है. फिल्म में जगह-जगह ऐसे ईस्टर एग्स छिपे हैं जिन्हें देखकर पुराने फैंस मुस्कुरा उठेंगे. कई जाने-पहचाने चेहरों की झलक मिलती है, लेकिन सबसे ज़्यादा ध्यान खींचती है स्त्री के भयानक किरदार ‘सर कटा’ की धमाकेदार वापसी. उसकी एक झलक ही आने वाले खतरे की आहट दे देती है, मानो कुछ बड़ा और भयावह बस कोने में छिपा इंतज़ार कर रहा हो. दरअसल, स्त्री 2 और थामा के बीच का रिश्ता अब खुलकर सामने आ जाता है. फिल्म के अंत तक ये साफ़ हो जाता है कि ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक पूरे यूनिवर्स का विस्तार है और मैडॉक हॉरर-वर्स में अब एक बड़ा क्रॉसओवर का समय करीब है.

रिलीज़ से पहले फिल्म की चर्चा ज़्यादातर आइटम सॉन्ग्स और चमक-दमक वाले विज़ुअल्स तक सीमित थी, लेकिन थामा ने उम्मीदों को पलट दिया है. मैडॉक के स्टाइल के मुताबिक, हर गाना कहानी में अपनी जगह रखता है और कभी किरदार की परतें खोलता है, कभी कहानी को आगे बढ़ाता है, और कभी मिथक में गहराई जोड़ता है.

अंतिम विचार

थामा एक प्रयोगात्मक लेकिन बैलेंस्ड फिल्म है जो हॉरर और इमोशन को साथ लेकर चलती है. यह न तो सिर्फ डराती है और न ही केवल हँसाती है, बल्कि एक मजबूत भावनात्मक कहानी और यूनिवर्स बिल्डिंग के ज़रिए भारतीय हॉरर जॉनर को एक नई दिशा देती है.

ऐसे में इस वीकेंड आप कुछ अलग, हॉरर और मजेदार देखना चाहते हैं तो यह फिल्म एक दम सही चॉइस है.