19-Minute Viral MMS क्रेज सिर्फ एक क्लिप मसला नहीं, यह दिखाती है कि हम ऑनलाइन कौन बन गए हैं? वायरलिटी के युग में प्राइवेसी की कोई वैल्यू नहीं
19-मिनट वायरल MMS (Photo Credit: X)

The 19-Minute Viral MMS: पिछले हफ्ते, इंडिया के सर्च ट्रेंड्स से कुछ परेशान करने वाली बात सामने आई. ‘वायरल MMS 19 मिनट्स इंस्टाग्राम’ (Viral MMS 19 Minutes Instagram) ऑनलाइन सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाले टॉपिक्स में से एक बन गया, जो पॉलिटिक्स, स्पोर्ट्स या सिनेमा की खबरों से भी आगे निकल गया. इस कथित क्लिप के बारे में, जिसके ओरिजिन और ऑथेंटिसिटी के बारे में क्लारिटी नहीं थी, उसने पूरे देश में डिजिटल हंट शुरू कर दिया. टेलीग्राम चैनल्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और फोरम्स पर एक्टिविटीज की भरमार थी, लेकिन असल में यह फैक्ट्स या सच्चाई के बारे में नहीं था, यह क्यूरियोसिटी, वॉयरिज्म और कुछ छूट जाने के डर के बारे में था.

स्कैंडल की तलाश में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लोगों ने सर्च इसलिए नहीं किया, क्योंकि उन्हें परवाह थी, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें परवाह नहीं थी. अटेंशन और ट्रेंड से चलने वाली दुनिया में, स्कैंडल मनोरंजन बन गया है. क्लिप का शिकार रोमांच का हिस्सा बन गई. इस पागलपन को तीन ताकतों ने चलाया.

  • मना किए गए कंटेंट के बारे में जिज्ञासा
  • गुमनामी से मिलने वाला वॉयरिस्टिक मजा
  • FOMO, यानी बातचीत का हिस्सा बनने की जरूरत
  • सोच सीधी थी: अगर सब देख रहे हैं, तो यह ठीक ही होगा.
  • और उस पल में, प्राइवेसी, सहमति और हमदर्दी का कोई मतलब नहीं रह गया.

मीडिया की भूमिका: जागरूकता और शोषण के बीच की लाइन पर चलना

जबकि जिम्मेदार आउटलेट्स ने साफ कंटेंट शेयर करने के बारे में चेतावनी दी और साइबर कानून के उल्लंघन को हाईलाइट किया, दूसरों ने क्लिक के लालच में आकर हार मान ली. कुछ ने सर्च-बेट हेडलाइन, अंदाजे वाले नाम और अस्पष्ट ‘एक्सप्लेनेशन; का सहारा लिया, जिसने अप्रत्यक्ष रूप से उसी ट्रेंड को बढ़ा दिया जिसकी वे बुराई करने का दावा कर रहे थे. प्राइवेसी की रक्षा करने की नैतिक जिम्मेदारी ट्रैफिक की दौड़ में हार गई. जैसा कि एक ऑब्जर्वर ने कहा, ‘मीडिया ने स्कैंडल की रिपोर्ट नहीं की, उसने इसमें हिस्सा लिया.’ यह भी पढ़ें: The 19-Minute Viral MMS: एमएमएस का क्रेज़ नहीं, हमारी डिजिटल भूख समस्या है, नाइनटीन मिनट वायरल वीडियो सर्च लिंक पर क्लिक कर सायबर जाल में फंस रहे लोग

असली कहानी: उल्लंघन के प्रति असंवेदनशील संस्कृति

भारत का डिजिटल कल्चर खतरनाक तरीके से बदल रहा है. प्राइवेट कंटेंट अब पब्लिक एंटरटेनमेंट बन गया है. हैरेसमेंट ग्रुप बिहेवियर जैसा लगता है और गलत जानकारी एक स्पोर्ट बन गई है. AI डीपफेक के बारे में बढ़ती अवेयरनेस भी इसे धीमा नहीं कर पाई है. आज महिलाओं को बिना असली वीडियो के भी हैरेस किया जा सकता है. यह डिजिटल नुकसान का नया चेहरा है जो दिखाई नहीं देता, जिसका पता नहीं लगाया जा सकता और जो बहुत बुरा है.

जब बेइज्जती देखने वालों का खेल बन जाए

19 मिनट का यह पागलपन कोई अकेला स्कैंडल नहीं है, यह एक चेतावनी है. जब तक ऑडियंस स्कैंडल को क्लिक्स से और मीडिया क्लिक को कवरेज से इनाम देगा, यह सिलसिला चलता रहेगा. असली खतरा यह नहीं है कि कोई वीडियो वायरल हो गया, बल्कि यह है कि हमारी सबकी हमदर्दी गायब हो गई. ‘19 मिनट की क्लिप’ सिर्फ एक इंसान का ट्रॉमा नहीं है; यह दिखाता है कि हम किस तरह के समाज बन रहे हैं - एक ऐसा समाज जहां सच से ज्यादा वायलेशन ट्रेंड करता है.

ऑनलाइन इंसानियत वापस पाने के लिए क्या बदलने की जरूरत है:

  • ऑडियंस को वॉयरिज्म को एंटरटेनमेंट मानना ​​बंद करना होगा.
  • मीडिया को किसी की बेइज्जती को हेडलाइन बनाना बंद करना होगा.
  • प्लेटफॉर्म्स को टेकडाउन और AI मॉडरेशन पर तेजी से काम करना होगा.
  • स्कूलों और परिवारों को सिर्फ डिजिटल लिटरेसी ही नहीं, बल्कि डिजिटल एंपैथी भी सिखानी होगी.

स्कैंडल कभी वीडियो नहीं था, यह उस पर हमारा रिएक्शन था. ‘19-मिनट के MMS’ की सर्च से कोई क्लिप सामने नहीं आई. इसने हमारे मूल्यों, इच्छाओं और प्रायोरिटीज को ऐसे समय में सामने लाया है जहां अच्छाई से ज्यादा वायरल होना मायने रखता है. अगर भारत सच में एक हेल्दी इंटरनेट चाहता है, तो इसका सॉल्यूशन सिर्फ टेक्नोलॉजी या रेगुलेशन से नहीं आएगा, यह इस बात से आएगा कि हम कैसे देखना, क्लिक करना, सर्च करना और शेयर करना चुनते हैं.