मुंबई, 21 अप्रैल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को बैंकों को निर्देश दिया कि वे अगले साल एक अप्रैल से इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग की सुविधाओं से युक्त खुदरा और छोटे व्यावसायिक ग्राहकों की जमा पर बफर के रूप में 2.5 प्रतिशत अतिरिक्त नकदी निर्धारित करें ताकि दबाव के समय किसी भी संभावित जोखिम से बचा जा सके।
आरबीआई ने पिछले साल जुलाई में पांच प्रतिशत अतिरिक्त ‘रन-ऑफ फैक्टर’ का प्रस्ताव किया था। इसका मतलब जमाराशि के उस प्रतिशत से है, जिसे बैंक दबाव के समय में वापस लिए जाने की अपेक्षा करता है।
कुछ देशों में यह पाया गया कि वित्तीय दबाव की स्थिति में जमाकर्ताओं ने डिजिटल बैंकिंग का उपयोग करते हुए अपना पैसा तुरंत निकाल लिया। संशोधित रूपरेखा उसी को ध्यान में रखकर लाई गई है।
आरबीआई ने एक परिपत्र में कहा कि एक अप्रैल, 2026 से बैंकों को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं (आईएमबी) वाली खुदरा जमाओं के लिए अतिरिक्त 2.5 प्रतिशत ‘रन-ऑफ फैक्टर’ आवंटित करना होगा।
आरबीआई ने कहा कि यह निर्णय पिछले जुलाई में जारी ‘नकदी मानकों पर बासेल-तीन रूपरेखा - नकदी कवरेज अनुपात (एलसीआर) - उच्च गुणवत्ता वाली नकद परिसंपत्तियों (एचक्यूएलए) पर कटौती की समीक्षा और जमा की कुछ श्रेणियों पर ‘रन-ऑफ दरों' पर दिशानिर्देशों के मसौदे पर विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रिया के बाद लिया गया है।
ताजा दिशानिर्देशों के अनुसार, ‘‘बैंक को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं (आईएमबी) से युक्त खुदरा जमाराशियों के लिए 2.5 प्रतिशत का अतिरिक्त ‘रन-ऑफ फैक्टर’ निर्धारित करना होगा। इसका मतलब है कि आईएमबी सुविधा से युक्त स्थिर खुदरा जमाराशियों के लिए 7.5 प्रतिशत ‘रन-ऑफ फैक्टर’ होगा और आईएमबी से युक्त कम स्थिर जमाराशियों के लिए 12.5 प्रतिशत रन-ऑफ फैक्टर होगा। वर्तमान में यह क्रमश: पांच प्रतिशत और 10 प्रतिशत है।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)













QuickLY