Why Your Mind Goes Blank? आपका दिमाग अचानक 'ब्लैंक' क्यों हो जाता है? वैज्ञानिकों ने इस रहस्य से उठाया पर्दा

Why Your Mind Goes Blank? क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप कुछ काम कर रहे हों, या बस यूं ही बैठे हों और अचानक आपका दिमाग़ एकदम खाली हो जाता है. आप कुछ सोच नहीं रहे होते. यह याददाश्त का जाना या दिन में सपने देखना नहीं है, बल्कि यह सचमुच एक ऐसा पल है जब आपके दिमाग़ में कोई विचार नहीं चल रहा होता.

वैज्ञानिकों ने इसे एक नाम दिया है - 'माइंड ब्लैंकिंग' (Mind Blanking). इसे एक ऐसी अवस्था माना जाता है जब हम जागे तो होते हैं, लेकिन हमारे दिमाग़ में सोच-विचार की प्रक्रिया कुछ पलों के लिए रुक जाती है.

पहले वैज्ञानिक मानते थे कि हमारा जागता हुआ दिमाग़ हमेशा कुछ न कुछ सोचता ही रहता है. लेकिन हाल की रिसर्च बताती है कि ऐसा नहीं है. माइंड ब्लैंकिंग को अब एक अलग मानसिक अवस्था के रूप में पहचाना गया है.

फ्रांस के एक न्यूरोसाइंटिस्ट थॉमस एंड्रिलन बताते हैं, "यह दिमाग़ में एक छोटे से झटके जैसा है, और अचानक वहां कुछ भी नहीं होता."

अक्सर लोगों को इसका एहसास तब तक नहीं होता जब तक कोई उनसे पूछ न ले कि "तुम अभी क्या सोच रहे थे?". रिसर्च से पता चलता है कि लोग अपने जागने के समय का लगभग 5% से 20% हिस्सा इसी 'माइंड ब्लैंक' अवस्था में बिता सकते हैं.

'माइंड ब्लैंकिंग' की जांच कैसे हुई?

वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को समझने के लिए एक स्टडी की. उन्होंने कुछ लोगों के सिर पर इलेक्ट्रोड वाली एक कैप लगाई, जिसे EEG (इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी) कहते हैं. इससे दिमाग़ की गतिविधियों को मापा जाता है.

इन लोगों को स्क्रीन पर तेजी से चमकते हुए नंबर देखने का काम दिया गया. उन्हें हर नंबर दिखने पर एक बटन दबाना था, सिवाय नंबर 3 के. यह एक ऐसा काम है जिसमें ध्यान और फुर्ती दोनों की जरूरत होती है.

रिसर्च में पाया गया कि जब लोगों का दिमाग़ 'ब्लैंक' होता था, तो वे बटन दबाने में थोड़ी देर कर देते थे. वहीं, जब उनका मन भटक (Mind Wandering) रहा होता था, तो वे ज़्यादा तेजी से प्रतिक्रिया देते थे.

EEG डेटा से पता चला कि जब दिमाग़ 'ब्लैंक' होता है, तो दिमागी तरंगें धीमी पड़ जाती हैं. यह ठीक वैसा ही पैटर्न है जैसा गहरी नींद में देखा जाता है.

दिमाग़ के अंदर क्या होता है?

EEG यह तो बता सकता है कि दिमाग़ धीमा हो गया है, लेकिन यह नहीं बता सकता कि दिमाग़ के कौन से हिस्से इसमें शामिल हैं. इसके लिए वैज्ञानिकों ने fMRI (फंक्शनल एमआरआई) स्कैन का इस्तेमाल किया, जो दिमाग़ के अंदर की ज़्यादा साफ तस्वीर देता है.

fMRI स्कैन के नतीजे हैरान करने वाले थे. जब लोगों ने बताया कि उनका दिमाग़ 'ब्लैंक' हो गया था, तो उनके दिमाग़ में एक तरह की 'हाइपरसिंक्रोनाइज़ेशन' (Hypersynchronization) देखी गई. इसका मतलब है कि दिमाग़ के अलग-अलग हिस्से एक साथ, एक ही लय में काम करने लगते हैं, ठीक वैसे ही जैसे गहरी नींद के दौरान होता है. आम तौर पर जब हम जागे होते हैं, तो दिमाग़ के हिस्से आपस में बात तो करते हैं, लेकिन इस तरह एक लय में नहीं होते.

तो इसका मतलब क्या है?

वैज्ञानिकों का मानना है कि 'माइंड ब्लैंकिंग' दिमाग़ के लिए एक 'मिनी-रीसेट' की तरह हो सकता है. जैसे गहरी नींद हमारे दिमाग़ के लिए ज़रूरी है - यह दिन भर की थकान और जमा हुए व्यर्थ पदार्थों को साफ करती है, ऊर्जा बचाती है और सिस्टम को रीसेट करती है.

ठीक उसी तरह, 'माइंड ब्लैंकिंग' जागते समय दिमाग़ को एक छोटा सा ब्रेक या आराम देने का तरीका हो सकता है. यह दिमाग़ के लिए "थोड़ा भाप निकालने" या "सिर को ठंडा करने" जैसा है. शुरुआती स्टडी में यह भी सामने आया है कि जो लोग नींद पूरी नहीं कर पाते, वे ज़्यादा 'माइंड ब्लैंक' का अनुभव करते हैं.

तो अगली बार जब आपका दिमाग़ खाली हो जाए, तो चिंता न करें. यह शायद आपके दिमाग़ का खुद को तरोताज़ा करने का एक तरीका है.