आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी को पापांकुशा एकादशी नाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप एवं देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है, यहां पापांकुशा का शाब्दिक अर्थ है पाप का नाश करनेवाला. इस व्रत को करने से जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति का शांति पूर्वक मार्ग सुनिश्चित होता है. इस वर्ष 3 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा सच्चे मन से की जाए तो उन्हें कई यज्ञों और वर्षों की तपस्या के समान पुण्य प्राप्त होता है. आइये जानते हैं. यह भी पढ़ें : गांधी जयंती के इन हिंदी Wishes, Messages, Greetings, Quotes के जरिए दें प्रियजनों को शुभकामनाएं
पापांकुशा एकादशी 2025 मूल तिथि एवं मुहूर्त
आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 04.26 PM (02 अक्टूबर 2025)
आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 06.49 PM (03 अक्टूबर 2025)
पारण कालः 06.05 (04 अक्टूबर 2025)
उदया तिथि के अनुसार 03 अक्टूबर 2025 को पापांकुशा एकादशी मनाई जाएगी.
पापांकुशा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
पापांकुशा एकादश को भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा होती है. यह पूजा करने वाले जातकों के पुराने पाप नष्ट होते हैं. नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करती है, तथा वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है, आध्यात्मिक पुण्य में वृद्धि होती है. इस दिन भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा करने से पितरों का तर्पण किया जाता है, क्योंकि यह एकादशी पितृ पक्ष के बाद आती है.
पापांकुशा एकादशी व्रत-पूजा के नियम
पापांकुशा एकादशी का व्रत रखनेवालों को इस दिन चावल, उड़द, मसुर एवं चना खाना वर्जित होता है. इसके साथ ही इस दिन जातक को क्रोध, झगड़ा, बुरे विचारों एवं झूठ बोलने से बचना चाहिए. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र् धारण कर व्रत का संकल्प लें. पूजा के मंदिर एवं इसके आसपास के क्षेत्र की सफाई करें. मंदिर के सामने एक चौकी रखकर इस पर पीला या लाल वस्त्र बिछाएं. भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं. नये वस्त्र पहनाएं. चौकी के एक किनारे पर कलश स्थापित करें. धूप दीप प्रज्वलित करें और निम्न मंत्र का 108 जाप करें
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
इसके पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. अब भगवान विष्णु को तुलसी पत्र, पीला पुष्प, पान, सुपारी, अर्पित करें. भोग में भगवान को फल, मिष्ठान अर्पित करें. अब विष्णु जी की आरती उतारें. प्रसाद का वितरण करें. संध्याकाल के पश्चात भजन कीर्तन करें.
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक बहेलिया रहता था, वह स्वभाव से अत्यंत क्रूर था. जीवन भर हिंसा, लूटपाट, मद्यपान आदि कर्मों में व्यतीत किया था. क्रोधन के जीवन के अंतिम समय में यमराज के दूत उसे लेने आए, तो वह भयभीत हो गया. उसे अपने किए सभी बुरे कर्मों का स्मरण हुआ. वह समझ गया कि मृत्यु के बाद नरक के कष्ट भोगने पड़ेंगे. तब वह बचने के लिए दौड़कर महर्षि अंगिरा के आश्रम पहुंचकर उनके चरणों में गिरकर अपने पापों से मुक्ति पाने का उपाय मांगा. क्रोधन की हालत देखकर महर्षि अंगिरा को दया आ गई. उन्होंने क्रोधन को आश्विन शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. महर्षि के अनुसार, क्रोधन ने पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पापांकुशा एकादशी का व्रत किया. उसके व्रत एवं पूजा करने से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और उसे भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई.













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