ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार देवउठनी एकादशी का व्रत (Dev Uthani Ekadashi Vrat ) एवं पूजा करने वाले जातकों को व्रत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए, क्योंकि देव उठनी एकादशी की कथा भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने की कहानी बताती है, जो भक्तों की भावनाओं और व्रत के महत्व को दर्शाती है. यह कथा सुनने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. मान्यता है कि यह कथा सुनने से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सुख, समृद्धि औऱ शांति प्रदान करते हैं. यह कथा सुनने से मन में सही ज्ञान और शुद्धता आती है, जिससे व्रत और पूजा का वास्तविक लाभ मिलता है. बता दें कि इस वर्ष 2 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
देवउठनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित एक कथा के अनुसार एक राज्य में एकादशी के दिन मनुष्य ही नहीं बल्कि सभी प्राणी (पशु-पक्षी) अन्न का सेवन नहीं करते थे. एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने का निर्णय लेते हुए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया, और मार्ग के किनारे बैठ गए. जब राजा उधर से गुजर रहे थे, तो उन्होंने मार्ग किनारे बैठी स्त्री को तो उन्होंने उसका कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि वह असहाय है. राजा उसके सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध होकर बोले, तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो. यह भी पढ़ें : Akshaya Navami 2025 Quotes: ‘आंवले का वृक्ष महज वृक्ष नहीं, संपूर्ण संजीवनी है,’ अक्षय नवमी पर भेजें ये प्रेरक कोट्स एवं शुभकामनाएं!
सुंदर स्त्री ने राजा के समक्ष शर्त रखी कि वह तभी इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगी, जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा. राजा उसी के द्वारा बनाये भोजन का सेवन करेगा. राजा ने उसकी शर्त मान ली. अगले दिन एकादशी के अवसर पर, सुंदर स्त्री ने बाजार में आम दिनों की तरह अनाज बेचने का आदेश दिया. यही नहीं उसने राजा को भी मांसाहारी भोजन करने के लिए विवश करने का प्रयास किया, लेकिन राजा ने स्पष्ट किया कि आज एकादशी व्रत के कारण वह केवल फलाहार ग्रहण करता है. रानी ने शर्त की याद दिलाते हुए हुए राजा को चेतावनी दी कि यदि उसने तामसिक भोजन नहीं खाया, तो वह बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर देगी.
दुविधा में फंसे राजा ने बड़ी रानी से सुझाव मांगा. बड़ी रानी ने राजा को धर्म के मार्ग पर चलने की सलाह दी, और अपने पुत्र का बलिदान देने के लिए सहमत हो गई. राजा बहुत दुखी और निराश हुए, उन्होंने अपनी सुंदर पत्नी शर्त के अनुसार बड़े राजकुमार का बलिदान देने के लिए तैयार हो गए. श्रीहरि ने राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखकर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की, और अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर राजा को दर्शन दिया. श्रीहरि ने राजा को बताया कि वह उसकी परीक्षा ले रहे थे, जिसमें वह सफल रहे, और राजा से एक वरदान मांगने को कहा. राजा ने तथास्तु कहा, और मृत्यु के पश्चात उसे बैकुंठ लोक में स्थान मिला.













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