यूं तो साल की सभी एकादशियों का अपना महात्म्य है, लेकिन पापांकुशा एकादशी के व्रत एवं पूजा को अत्यंत मंगलकारी माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की वैदिक विधियों से संयुक्त पूजा होती है. मान्यतानुसार इस व्रत को करने से जीवन में सुख एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है, तथा सारे पाप एवं कष्ट कट जाते हैं. इस एकादशी पर अन्न एवं धन का दान करना श्रेयस्कर माना गया है. इस बार कुछ व्रतों एवं पर्वों की तिथियां इस तरह पड़ रही हैं, कि मूल तिथि को लेकर दुविधा उत्पन्न हो रही है. आइये जानते हैं पापाकुंशा एकादशी व्रत किस दिन रखा जाएगा एवं क्या है इसका महात्म्य, मंत्र एवं पूजा-विधि आदि
पापाकुंशा एकादशी का महात्म्य
पापांकुशा एकादशी को महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक माना जाता है. इस दिन जो व्यक्ति व्रत के साथ भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी की वैदिक विधि से पूजा-अर्चना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सेहत अच्छी रहती है और घर परिवार में मधुरता बनी रहती है, तथा उसके सारे पाप मिट जाते हैं. मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी व्रत का पालन किए बिना, कोई व्यक्ति अपने पापों से मुक्त नहीं हो सकता. पापांकुशा एकादशी व्रत के बारे में विद्वानों का मानना है कि इस व्रत को रखने से 1000 अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें : Aaj Ka Panchang: आज 09 अक्टूबर 2024 का पंचांग! जानें आज राहुकाल, शुभ-अशुभ मुहूर्त एवं सूर्योदय-सूर्यास्त की स्थिति एवं इस दिन के उपाय एवं पर्व के बारे में!
कब मनाएं पापाकुंशा एकादशी 13 या 14 अक्टूबर को?
इस वर्ष शरद नवरात्रि की हर तिथि दुविधापूर्ण रही है, क्योंकि हिंदी तिथि के अनुसार अधिकांश तिथियां दिन 12 बजे के आसपास समाप्त हो गई, इस वजह से सायंकालीन पूजा करने वाले जातकों को तिथि सुनिश्चित करने में दुविधा रही है.
आश्विन एकादशी प्रारंभः 09.08 AM (13 अक्टूबर 2024, रविवार)
आश्विन एकादशी प्रारंभः 06.41 AM (14 अक्टूबर 2024, सोमवार)
उदया तिथि एवं पंचांग को देखते हुए 13 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी मनाई जाएगी, वहीं, वैष्णव समाज के लोग 14 अक्टूबर को यह व्रत रखेंगे.
पापांकुशा एकादशी पूजा विधि
आश्विन एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और सूर्य को जल चढ़ाएं. घर के मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र की पानी से धुलाई करें, एक छोटी चौकी पूजा स्थल के पास यूं रखें कि पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर की ओर हो. चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं. अब श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर धूप-दीप प्रज्वलित करें.
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
भगवान को पीले चंदन का तिलक लगाकर पीले फूलों की माला पहनाएं. पुष्प, तुलसी, रोली, पान, सुपारी अर्पित करें. भोग में खीर, पंजीरी और पंचामृत चढ़ाएं. विष्णु चालीसा का पाठ करें. इसके बाद विष्णु जी एवं देवी लक्ष्मी की आरती उतारें. अंत में प्रसाद वितरित करें. अगले दिन मुहूर्त के अनुसार व्रत का पारण करें.