
Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2025: सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव(Guru Arjan Dev) निस्वार्थ बलिदान, अदम्य साहस और आध्यात्मिक समृद्धी के प्रतीक थे, उन्होंने साल 1606 में सिख धर्म में शहादत की अवधारणा को आगे बढ़ाया था. इतिहास के पन्ने उनकी आध्यात्मिक शक्ति एवं भक्ति की कहानियों से भरे पड़े हैं, जिसने सिख धर्म के लिए एक नई दशा-दिशा स्थापित की. आइये जानते हैं गुरु अर्जन देव के बारे में कि किस तरह उन्होंने मुगल अभिनेता जहांगीर की प्रताड़नाओं से हार नहीं मानी, और 30 मई 1606 को खुशी-खुशी शहादत दे दी. जानें पूरी गाथा. यह भी पढ़ें: Guru Gobind Singh Jayanti 2025: गुरु गोविंद सिंह ने 'ग्रंथ साहिब' की रचना क्यों की थी? जानें उनके जीवन के कुछ ऐसे ही प्रसंग!
कौन हैं गुरु अर्जन देव
गुरु अर्जन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को तरनतारन, (पंजाब) के गोइंदवाल साहिब में हुआ था. उनके पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु थे और मां का नाम बीबी भानी था, जो एक गृहिणी थी. इनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था, जो आगे चलकर सिखों के छठे बने. बता दें कि गुरु अर्जन देव जी ने साल 1604 में अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखी थी. यह गुरुद्वारा आज सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है.
क्या है अर्जन देव की शहादत गाथा?
प्राप्त तथ्यों के अनुसार मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के पश्चात जहांगीर ने राजगद्दी संभाली. इसी दौरान शहजादा खुसरो ने पोते जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी, वह अर्जन देव की शरण में चले गए. जहांगीर को यह बात पसंद नहीं आई. उसने गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार कर उन्हें भयानक यातनाएं दी गयी. उन्हें गर्म तवे पर बैठाया गया, गर्म रेत और तेल डाला गया. पांच दिनों तक निरंतर यातनाओं के बाद वे मूर्छित हो गए. जहांगीर ने क्रूरता की हदें पार करते हुए, उन्हें मूर्छित अवस्था में रावी नदी में बहाने का आदेश दिया. 30 मई, 1606 को उनकी मृत्यु हो गई. गुरु अर्जन देव की शहादत सिख समुदाय के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनीं. उनकी शहादत को याद करते हुए सिख समुदाय हर साल ‘छबील दिवस’ मनाता है, जिसके अंतर्गत लोग एक दूसरे को ठंडा-मीठा पेय पिलाकर उन्हें सुखद अनुभव कराते हैं.
गुरु अर्जुन देव दिवस कैसे मनाया जाता है?
गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस के अवसर पर सिख समुदाय द्वारा विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इस दिन गुरु जी की शोभायात्रा निकाली जाती है. इसमें शामिल लोग भजन गाते हैं और नृत्य करते हैं. इस दिन सिख समुदाय श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं, सिख समुदाय प्रार्थना करते हैं. अंत में गुरुद्वारे में लंगर खिलाए जाते हैं. इस पुनीत अवसर पर हर साल, सिख तीर्थयात्रियों का एक जत्था लाहौर में गुरुद्वारा देहरा साहिब जाता है.