उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में सड़क चौड़ा करने के लिए मकानों और दुकानों को गिराया जा रहा है. स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं. विरोध की वजह रोजगार छिनने के अलावा सांस्कृतिक विरासत नष्ट होना भी है.धर्म और अध्यात्म की नगरी कही जाने वाली काशी यानी वाराणसी में तोड़-फोड़ और उसका विरोध एक बार फिर चर्चा में है. ‘गली, गाली और पान' की पहचान वाले शहर वाराणसी की गलियों में जब हथौड़े और बुलडोजर चलने लगे तो स्थानीय लोग विरोध में सड़क पर आ गए.
वाराणसी नगर निगम यानी वीडीए ने वाराणसी की दालमंडी गली को मॉडल सड़क के रूप में विकसित करने का फैसला किया है जिसका शिलान्यास इसी साल अगस्त में प्रधानमंत्री और वाराणसी से सांसद नरेंद्र मोदी ने किया था. राज्य सरकार की तरफ से इसके लिए 215 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं. दालमंडी काशी विश्वनाथ मंदिर से करीब सौ मीटर की दूरी पर है और मंदिर जाने के लिए बने गेट नंबर चार के ठीक सामने है.
इस गली को चौड़ा करने और इसे मॉडल सड़क बनाने के लिए वाराणसी नगर निगम ने 187 मकानों को ढहाने के लिए चिह्नित किया है जिनके मालिकों को करीब 191 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाना है. इनमें से कुछ दुकानदारों ने मुआवजा लेने के बाद ध्वस्तीकरण की मंजूरी लिखित में दी है और सबसे पहले इन्हीं लोगों के मकान और दुकान गिराए जा रहे हैं. लेकिन यहां के ज्यादातर दुकानदार और मकान मालिक इसका विरोध कर रहे हैं.
करीब 650 मीटर लंबी गली में सैकड़ों दुकानें और घर हैं. मुस्लिम बहुल यह इलाका सदियों से वाराणसी के थोक बाजार का एक प्रमुख केंद्र रहा है. खासतौर पर साड़ियों और शादी के परिधानों के लिए प्रसिद्ध है. विरोध की मुख्य वजह यह है कि लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ जाएगा. दुकानदारों का कहना है कि सरकार यहां से विस्थापित तो कर रही है और मुआवजा भी दे रही है लेकिन सदियों पुराना जो व्यापार है, जहां दूर-दूर से ग्राहक आते हैं, वो किसी दूसरी जगह नहीं जा पाएंगे.
क्यों हो रहा है विरोध?
इसके अलावा कई दुकानदार ऐसे हैं जिनकी दुकानें तो काफी पुरानी हैं, कई पीढ़ियों से चली आ रही हैं लेकिन दुकान किराए पर है जिसका मुआवजा दुकान के मालिक को मिलेगा, न कि दुकानदार को. ऐसे दुकानदारों को यह डर भी है कि वो यहां की दुकान खोकर सदियों पुरानी स्थापित साख और पुराने ग्राहकों को भी खो देंगे.
डिजिटल युग में बदलता भक्ति और आस्था का रूप
वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव डॉक्टर वेदप्रकाश मिश्र का कहना है कि जिन दुकानदारों और मकान मालिकों को जो भी शिकायत है, उसे दूर करने की कोशिश की जा रही है और लोगों को अपनी बात रखने का मौका भी दिया जा रहा है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉक्टर मिश्र कहते हैं, "दालमंडी में बिना प्राधिकरण की अनुमति या स्वीकृति के कुल 12 अवैध भवनों पर उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम की सुसंगत धाराओं के अन्तर्गत नोटिस की कार्रवाई के बाद पहले ही ध्वस्तीकरण आदेश पारित किया गया था. ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कराए जाने से पहले सभी पक्षों को अंतिम रूप से सूचित करते हुए सभी अवैध भवनों और दुकानों को खाली करने के लिए मौके पर सभी पक्षों को सूचित किया गया. इसके बाद नोटिस चस्पा कराते हुए तीन दिन तक लाउडस्पीकर से मुनादी भी कराई गई और 14 नवंबर तक का समय दिया गया था. उसके बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जा रही है.
क्या है परियोजना?
दालमंडी प्रोजेक्ट करीब 215 करोड़ रुपये का है जिसके तहत 181 भवनों को चिह्नित कर नोटिस दिया गया है. दाल मंडी में लगभग 650 मीटर लंबी सड़क तैयार की जाएगी जिसकी चौड़ाई 60 फीट होगी. इसमें 30 फीट की सड़क होगी और सड़क के दोनों तरफ 15 फीट के फुटपाथ तैयार किए जाएंगे. इसे तैयार करने का मकसद विश्वनाथ मंदिर तक श्रद्धालुओं के पहुंचने का एक अलग रास्ता तैयार करना है ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके और लोग आसानी से दर्शन कर सकें. इसके साथ ही यहां पर टूरिस्ट कॉरिडोर भी विकसित किया जाएगा.
दो दिन पहले वीडीए और प्रशासन की टीम ध्वस्तीकरण के लिए पहुंची थी तो महिलाओं के विरोध के कारण टीम को वापस लौटना पड़ा था. इस दौरान सरकारी काम में बाधा सहित कई धाराओं में चौक थाने में कई लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया.
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दुकानदार नजमी सुल्तान बताते हैं कि प्रशासन के साथ कई स्तर की बैठक हो चुकी है लेकिन प्रशासन शहर से बाहर दुकानदारों को भेजना चाहता है जबकि हम लोग चाहते हैं कि हमें आस-पास ही बसाया जाए. वो कहते हैं, "हम लोगों ने साफ कह दिया है कि हम शहरी सीमा से बाहर नहीं जाएंगे. दालमंडी के पास ही दुकानदारों को बसाया जाना चाहिए. हम लोगों ने अफसरों से यह भी मांग की है कि पहले कहीं बसाया जाए, उसके बाद ही हमारी दुकानें तोड़ी जाएं. बसाने से पहले ध्वस्तीकरण का काम बंद होना चाहिए.”
कई दुकानदारों ने समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मुलाकात की है. अखिलेश यादव ने इसे संकीर्ण सोच और सियासत की साजिश करार दिया है. अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा, "राज्य की बीजेपी सरकार की नीति यही है कि लोगों को डरा-धमकाकर उनका कारोबार खत्म कर दिया जाए. यह एक साजिश है. सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर जनता को गुमराह किया जा रहा है. आखिर किसी की जीविका छीनने का अधिकार सरकार को किसने दिया?”
दालमंडी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
दालमंडी का इलाका न सिर्फ व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है बल्कि संगीत और कला की दृष्टि से भी इसका इतिहास काफी दिलचस्प है. वाराणसी की संस्कृति को गहराई से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह बताते हैं, "ये पूर्वांचल में दाल की सबसे बड़ी मंडी थी जहां विभिन्न किस्म की दालों का थोक में व्यापार होता था. पूर्वांचल के बड़े व्यापारी यहां आते थे और कई दिनों तक रहते थे. उसी दौरान यहां तवायफों के कोठे भी बने और देखते ही देखते यह इलाका घुंघरुओं की आवाज और नृत्य संगीत से झंकृत होने लगा. बनारस के संगीत घरानों को इन कोठों ने एक बड़ा मजबूत आधार भी दिया जहां दादरा, ठुमरी, कजरी, चैती जैसी पकी गायकी निकल आई.”
स्थानीय लोगों के मुताबिक, इन कोठों में नृत्य और गायन की समृद्ध परंपरा का विकास हुआ. उस वक्त के बड़े-बड़े फनकार भी यहां संगत करने को तरसते थे. दरअसल, ये कोठे थे लेकिन वेश्यालय नहीं. यहां संगीत गायन ही नहीं बल्कि शिक्षण भी होता था. यहां तक कि शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान भी अपने कई साक्षात्कारों में इस बात का जिक्र कर चुके हैं.
यही नहीं, इन कोठों में रहने वाली तवायफों का स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम योगदान रहा है. स्थानीय दुकानदार रमेश वर्मा बताते हैं, "हमारा बाबा बताते थे कि कई क्रांतिकारी इन तवायफों के कोठों पर शरण लेते थे. ये तवायफें अपने कोठों की कमाई का पैसा आजादी की लड़ाई में मदद करने के लिए भी देती थीं. इन तवायफों में धनेशरी बाई, राजेश्वरी बाई, गौहर जान जैसे नाम शामिल हैं.”
स्थानीय लोगों के विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है कि बनारस (वाराणसी) की संस्कृति को संरक्षित करने की बजाय सरकार विकास के नाम पर उसका विध्वंस कर रही है.













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