Why Pink Ball Test Match Not Played in England? ऑस्ट्रेलिया की तरह इंग्लैंड में क्यों नहीं होता पिंक बॉल टेस्ट मैच? जानिए इसके पीछे छिपी सबसे बड़ी वजह
पिंक बॉल टेस्ट(Credit: X Formerly Twitter)

Why Pink Ball Test Match Not Played in England? पिंक बॉल टेस्ट क्रिकेट ने पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में नई पहचान बनाई है. डे-नाइट टेस्ट के रूप में खेले जाने वाले इन मुकाबलों को खासतौर पर दर्शकों की सुविधा और रात के समय बेहतर व्यूअरशिप को ध्यान में रखते हुए शुरू किया गया था. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में यह प्रयोग बेहद सफल रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि इंग्लैंड जैसे पारंपरिक क्रिकेट राष्ट्र में अब तक पिंक बॉल टेस्ट मैच नियमित रूप से क्यों नहीं खेले जाते? इसके पीछे कई दिलचस्प कारण हैं, जिनमें प्रमुख भूमिका इंग्लैंड की जलवायु, पारंपरिकता, और मैदान की परिस्थितियां निभाती हैं. गौरतलब है कि इंग्लैंड ने अब तक सिर्फ एक बार पिंक बॉल टेस्ट मैच की मेज़बानी की है. अगस्त 2017 में इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच एडन गार्डन्स में एक डे-नाइट टेस्ट खेला गया था, लेकिन इसके बाद ECB ने इस फॉर्मेट को आगे नहीं बढ़ाया. खिलाड़ियों की शिकायतें और सीमित फैन रिस्पॉन्स इसके प्रमुख कारण बताए गए. कौन हैं युवा क्रिकेटर फरहान अहमद? 17 साल की उम्र में हैट्रिक लेकर नॉटिंघमशायर के लिए कारनामा करने वाले बनें पहले खिलाड़ी

इंग्लैंड में मौसम और रोशनी की चुनौती

इंग्लैंड की क्रिकेट सीज़न गर्मियों में खेली जाती है, लेकिन उस दौरान भी यहां की जलवायु अस्थिर रहती है. बार-बार बादल छा जाना, बारिश की संभावना और जल्दी अंधेरा हो जाना यहां आम बात है. पिंक बॉल टेस्ट मैच खास तौर पर दिन ढलने के बाद रोशनी में खेले जाते हैं, लेकिन इंग्लैंड की प्राकृतिक रोशनी की स्थितियां इसके अनुकूल नहीं मानी जातीं. स्टेडियम में आर्टिफिशियल फ्लडलाइट्स की मदद से खेल जारी रखा जा सकता है, लेकिन इंग्लैंड के पुराने स्टेडियम जैसे लॉर्ड्स, ओवल, ट्रेंट ब्रिज में रोशनी की व्यवस्था ऑस्ट्रेलिया की तरह उन्नत नहीं मानी जाती. इस वजह से खिलाड़ियों की विजिबिलिटी को लेकर भी आशंकाएं बनी रहती हैं.

परंपरा की बड़ी भूमिका

इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने ऐतिहासिक रूप से पारंपरिक रेड बॉल टेस्ट मैचों को ही प्राथमिकता दी है. लॉर्ड्स जैसे ऐतिहासिक मैदान टेस्ट क्रिकेट की गौरवशाली परंपरा के प्रतीक हैं, जहां डे-नाइट मैच कराने का विचार अब तक ECB की योजनाओं में प्राथमिकता नहीं बन पाया है. दर्शकों की संख्या को लेकर भी इंग्लैंड में खास चिंता नहीं होती. यहां टेस्ट मैचों में आमतौर पर अच्छी खासी भीड़ उमड़ती है, जिससे यह तर्क कमजोर पड़ जाता है कि डे-नाइट टेस्ट मैच दर्शकों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे.

पिंक बॉल का स्विंग व्यवहार भी एक वजह

पिंक बॉल की बॉलिंग पर प्रतिक्रिया रेड बॉल से अलग होती है. इंग्लैंड के मौसम में जहां बादल और नमी स्विंग के लिए पहले से मददगार होते हैं, वहां पिंक बॉल अतिरिक्त स्विंग पैदा कर देती है, जिससे बल्लेबाजों को असामान्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इससे खेल का संतुलन टूटने की आशंका रहती है, जिसे ECB और खिलाड़ी दोनों ही नहीं चाहते. ऑस्ट्रेलिया में सूखा मौसम, फ्लडलाइट्स की बेहतर व्यवस्था और प्रयोगों के लिए खुले दृष्टिकोण के कारण पिंक बॉल टेस्ट सफल रहे हैं, लेकिन इंग्लैंड के पारंपरिक और मौसम-निर्भर वातावरण में इसे अपनाने में हिचक दिखाई देती है.

जहां ऑस्ट्रेलिया, भारत, और पाकिस्तान जैसे देश पिंक बॉल टेस्ट को भविष्य की टेस्ट क्रिकेट का हिस्सा मानते हैं, वहीं इंग्लैंड अब भी रेड बॉल के साथ पारंपरिक स्वरूप पर कायम है. मैदान की परिस्थितियां, रोशनी की सीमाएं, और पारंपरा की पकड़. ये सभी कारण मिलकर इंग्लैंड में पिंक बॉल टेस्ट को आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं.