
Snan Purnima 2025: सनातन धर्म में ज्येष्ठ मास पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) का विशेष महत्व बताया गया है, गौरतलब है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath), भगवान बलभद्र (Bhagwan Balabhadra) और देवी सुभद्रा (Devi Subhadra) के साथ सुदर्शन चक्र का शुभ स्नान अनुष्ठान किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतिनिधित्व करने के लिए भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र एवं देवी सुभद्रा पालकी में सवार होकर मंदिर से निकलते हैं. उन्हें पवित्र जल से स्नान कराया जाता है. स्नान के पश्चात उन्हें हाथी बाशा पहनाया जाता है. इस वर्ष जगन्नाथ पुरी में यह पर्व 11 जून 2025 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं इस दिव्य स्नान के बारे में कुछ रोचक बातें... यह भी पढ़ें: Vat Purnima 2025: वट पूर्णिमा पूजा में वट-वृक्ष पर सूत क्यों लपेटते हैं? जानें इस व्रत का महत्व, मंत्र एवं पूजा-विधि इत्यादि!
स्नान पूर्णिमा 2025: तिथि और समय
ज्येष्ठ मास पूर्णिमा प्रारंभ: 11.36 AM, (10 जून 2025, मंगलवार)
ज्येष्ठ मास पूर्णिमा समाप्त: 01.13 PM, (11 जून 2025, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार 11 जून 2025 को स्नान पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा.
स्नान पूर्णिमा का महत्व
उड़ीसा स्थित जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को 108 कलशों के जल से शुद्ध जल से स्नान के बाद देवता अनासरा नामक एकांत स्थल पर जाकर विश्राम करते हैं. इसके बाद वे रथयात्रा की तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं, जो 14 दिनों के बाद यानी आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया (27 जून 2025) के दिन शुरू होगी. कुछ लोग इस पर्व को भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं.
स्नान पूर्णिमा अनुष्ठान के नियम
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी की प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी मंदिर से एक जुलूस के रूप में बाहर निकाला जाता है, जिसे ‘पहांडी’ कहा जाता है. यह जुलूस भगवान के नारे, ढोल, घंटियों एवं मंत्रोच्चार के साथ आगे बढ़ता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु देवताओं को स्नान वेदी पर ले जाते हैं, जिसे ‘स्नान बेदी’ कहते हैं. इस पवित्र अनुष्ठान में भगवान को स्नान कराने के लिए सुगंधित और हर्बल पानी के 108 घड़ों का उपयोग किया जाता है.
स्नान के बाद उन्हें ‘सदा बेशा’ पहनाया जाता है. दोपहर में उन्हें ‘हाथी बेशा’ पहनाया जाता है, जो वस्तुतः भगवान गणेश का प्रतीक है. अपराह्न काल के बाद प्रसाद के रूप में एक विशेष भोजन तैयार किया जाता है. शाम के समय 'सहना मेला' के दौरान, जनता को देवताओं के दर्शन कराया जाता है. इसके बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है.