Vat Purnima 2025: वट पूर्णिमा पूजा में वट-वृक्ष पर सूत क्यों लपेटते हैं? जानें इस व्रत का महत्व, मंत्र एवं पूजा-विधि इत्यादि!
वट पूर्णिमा 2025 (Photo Credits: File Image)

Vat Purnima 2025: अमावस्या वट सावित्री पूजा (Vat Savitri Puja) के बाद अब भक्तों को पूर्णिमा वट पूजा (Vat Purnima Puja) की प्रतीक्षा है. दोनों ही वट पूजा (Vat Puja) का अपना महत्व है, लेकिन ज्येष्ट वट पूर्णिमा में जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त पृथ्वी पर चांदनी की अमृत वर्षा करता है, तब पूर्णिमा वट पूजा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है. इस वट पूर्णिमा को सावित्री वट पूर्णिमा (Vat Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए व्रत रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की विधि-विधान से पूजा एवं दान-धर्म करती हैं. इस वर्ष 11 जून 2025, बुधवार को वट पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा. आइये जानते हैं, ज्येष्ठ वट पूर्णिमा व्रत का महत्व एवं पूजा विधि इत्यादि. यह भी पढ़ें: Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री का व्रत आज, अंखड सौभाग्य के इस पर्व पर सोलह श्रृंगार करके ऐसे खुद को करें तैयार

व्रत पूजा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त  

ज्येष्ठ पूर्णिमा प्रारंभः 11.35 AM (10 जून 2025, मंगलवार)

ज्येष्ठ पूर्णिमा समाप्तः 01.13 PM (11 जून 2025, बुधवार)

उदया तिथि के अनुसार 11 जून 2025, बुधवार को वट पूर्णिमा का व्रत एवं पूजा सम्पन्न किया जाएगा.

वट पूर्णिमा पर व्रत एवं पूजा के नियम

वट पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान कर नया वस्त्र धारण करें. बरगद के पेड़ के निचले हिस्से को गाय के गोबर से लीपें. जमीन के सूखने के बाद यहां सत्यवान-सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें. इन्हें रोली, सिंदूर, बतासा, भिगोया चना अर्पित करें. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश (भगवान शिव) वास करते हैं. इसलिए पेड़ के चारों ओर सिंदूर छिड़कें. अब पेड़ के तने के चारों ओर सफेद अथवा हल्दी से रंगा सूत लपेटें. वट वृक्ष से अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करें. निम्न मंत्र का जाप करें.

पूजा के दरमियान इस मंत्र का जाप करें

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते| पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ||

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले | तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ||

इसके बाद वट पूर्णिमा व्रत की कथा सुनें. इसके बाद घर जाकर व्रती महिलाएं अपने सास-ससुर के चरण स्पर्श करें. गरीबों को दान दें.

वट सावित्री पूर्णिमा व्रत एवं पूजा का महत्व 

ज्‍येष्‍ठ पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करने से त्रिदेव की एक साथ पूजा होती है. क्योंकि माना जाता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव वास करते हैं. बहुत-सी जगहों पर व्रती महिलाएं भगवान सत्यनारायण की कथा भी सुनती हैं. इस दिन व्रती महिलाएं दीन और असहाय लोगों को अन्न, वस्त्र आदि दान करती हैं. इस दिन दान-धर्म करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है. वट पूर्णिमा आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी सर्वोत्तम दिन माना जाता है.

वट वृक्ष की पूजा में सूत क्यों बांधते हैं?

वट पूर्णिमा पूजा में, वट-वृक्ष की पूजा के साथ-साथ वृक्ष  के चारों ओर सूत लपेटने की पुरानी प्रथा है. इसका संबंध सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा से है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान की प्राण वापस पाने के लिए वट-वृक्ष के नीचे तपस्या की थी. मान्यता है कि वट वृक्ष में भगवान शिव, ब्रह्मा औऱ विष्णु वास करते हैं. वट वृक्ष पर सूत लपेटने से पति-पत्नी के सात जन्मों के अटूट बंधन का प्रतीक माना जाता है. सूत लपेटने से घर में सुख-समृद्धि, शांति और पति पर आने वाले संकटों से सुरक्षा की कामना की जाती है.