
Rani Lakshmibai Death Anniversary 2025: सन 1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की वह ज्वाला थी, जिसने पहली बार अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला कर रख दी थी, इस क्रांति की सबसे प्रज्वलित और उन्मुक्त चिंगारी थी रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai), जिन्हें ‘झांसी की रानी’ (Queen of Jhansi) नाम से भी जाना जाता है, झांसी की रानी ने ब्रिटिश हुकूमत को स्पष्ट संदेश दिया था, कुछ भी हो जाए ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ यह केवल शब्द नहीं थे, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की धृष्टता के विरुद्ध एक नारी शक्ति की अदम्य आत्मसम्मान, साहस और स्वराज की रक्षा की प्रतिज्ञा थी. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि (Rani Lakshmibai Punyatithi) (18 जून 2025, बुधवार) पर आइये जानते हैं कब और क्यों उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा और जीवित रहने तक अंग्रेजी हुकूमत झांसी पर कब्जा नहीं कर सकी थी. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmibai Punya-Tithi 2024: साधारण मनु से झांसी की असाधारण महारानी लक्ष्मीबाई बनने की अनुपम कहानी? जानें रानी लक्ष्मीबाई के बारे में दस प्रेरक, रोचक एवं कम ज्ञात तथ्य!
क्यों ललकारा था झांसी रानी ने अंग्रेजों को?
झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष तब आरंभ हुआ, जब उनके पति महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार ने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति के तहत झांसी को हड़पने की कुटिल चाल चली थी. रानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश हुकूमत ने उत्तराधिकारी मानने से इंकार करते हुए झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का आदेश दिया गया. यह न केवल एक राजनीतिक अन्याय था, बल्कि एक स्त्री के आत्मसम्मान पर सीधा प्रहार था. महारानी लक्ष्मीबाई ने इस अन्याय के सामने झुकने से मना करते हुए अंग्रेजों को दो टूक फैसला सुना दिया कि, ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी.’
रणभूमि में एक नारी का दुर्गा स्वरूप
रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा के लिए न केवल राजनीतिक कूटनीति की, बल्कि एक सैन्य रणनीतिकार के रूप में भी खुद को सिद्ध किया. उन्होंने राज्य महिलाओं को स्वयं युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया, एक स्त्री सैनिक दल का गठन किया और अंग्रेजों के विरुद्ध दृढ़ मोर्चा खड़ा किया. उन्होंने अपने छोटे से राज्य की सीमित सेना को संगठित कर, तोपखाने की व्यवस्था की. अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए उन्होंने स्वयं युद्ध की बारीकियां सीखी. अंग्रेजों के संगठित और सशक्त सैन्य बल के बावजूद रानी ने जीवित रहने तक झांसी को अंग्रेजों से सुरक्षित रखा.
एक साहसिक निर्णय: युद्ध और बलिदान
अंग्रेजों ने देखा कि रानी झांसी को आसानी से छोड़ने वाली नहीं है, उन्होंने भारी सैन्य बल के साथ झांसी पर हमला कर दिया. रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र को पीठ पर बांधा और स्वयं तलवार लेकर रणभूमि में उतर पड़ीं. उन्होंने न केवल अपने राज्य की बल्कि भारतीय नारी की अस्मिता की रक्षा के लिए अनवरत युद्ध किया.
उनका यह युद्ध ब्रिटिश हुकूमत को संदेश था, कि नारी केवल सहनशील ही नहीं बल्कि सशक्त होती है. वह यदि ठान ले, तो पराक्रम में पुरुष से कमतर नहीं है. झांसी की रक्षा करते हुए 17 जून 1856 को रानी लक्ष्मीबाई का निधन हो गया. उन्होंने शहादत दी लेकिन उनका बलिदान आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित है.