नई दिल्ली, 29 अगस्त : अमेरिका के भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर जाने वाले हैं. वह 31 अगस्त से 1 सितंबर तक वहां होने वाले शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. प्रधानमंत्री मोदी 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद चीन की पहली यात्रा करेंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जुलाई में भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया था. रूस से तेल खरीदने से नाराज अमेरिका ने सजा के तौर पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ भारत पर थोप दिया. अमेरिका का कहना है कि भारत के तेल खरीदने से यूक्रेन के विरुद्ध रूस को वित्त पोषण मिल रहा है और इसलिए भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है.
अब कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिकी टैरिफ के बोझ से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी आर्थिक मुद्दों पर चीन के साथ आपसी सहयोग पर चर्चा कर सकते हैं. सवाल ये है कि 2018 के बाद पीएम मोदी का चीन दौरा भारत को अमेरिकी दबाव से निपटने में मददगार होगा? क्या चीन की नजदीकी से भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्तों में कड़वाहट आ जाएगी. यह भी पढ़ें : PM Modi China Visit: पीएम मोदी के चीन दौरे से अमेरिकी टैरिफ की भरपाई संभव होगी, जानें विदेशी मीडिया की क्या है राय
दरअसल इतने लंबे समय बाद प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरे पर विदेशी मीडिया की पैनी नजर है. विदेशी मीडिया इसे अमेरिका और भारत के बीच जारी टैरिफ वार से जोड़कर देख रहा है, जबकि भारत के लिए पीएम मोदी का यह दौरा बिल्कुल सामान्य है. इसके लिए कार्यक्रम पहले से तय थे. ऐसे में पीएम मोदी के इस दौरे की विदेशी मीडिया की नजर में व्याख्या कैसे की गई है, इस पर नजर डालें तो शायद समझ में आ जाए कि अमेरिका पीएम मोदी के चीन दौरे को लेकर आखिर इतना क्यों चिंतामग्न है.
ब्रिक्स के देशों पर अगर नजर डालें तो भारत, ब्राजील, चीन और रूस अमेरिका के टैरिफ वार की चपेट में हैं. इसके पीछे की वजह स्पष्ट है कि ब्रिक्स के साथ जुड़े देश एक नई करेंसी के साथ अपने व्यापार को आगे बढ़ाने की बात करते रहे हैं, जबकि अभी तक ये देश अपनी-अपनी करेंसी में इस ग्रुप के देशों के साथ व्यापार करते आए हैं. ऐसे में अमेरिका के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह डॉलर की गिरती साख है. वह जानता है कि अगर यूरो और पौंड की तरह एक और अंतरराष्ट्रीय करेंसी बाजार में प्रचलन में आई तो मानक करेंसी के रूप में अब तक जो डॉलर की बची साख है, वह भी समाप्त हो जाएगी.
ऐसे में सीएनएन ने एक्सपर्ट्स के हवाले से लिखा है कि अगर अमेरिका अपने कदम से भारत के बाजार को खो देता है तो यह उसके लिए बुरा साबित होगा. न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक दुनिया की सबसे बड़ी अमेरिकी कंपनियों में से दो-तिहाई का कारोबार भारत में है. भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगने से अमेरिकी आयातकों की चीन की फैक्ट्रियों पर निर्भरता कम करने की रणनीति कमजोर पड़ सकती है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी टैरिफ से भारत के निर्यात पर बुरा असर पड़ सकता है. कपड़ा, हीरे, झींगा उद्योगों में लाखों लोगों की आजीविका खतरे में है. अमेरिकी टैरिफ के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने टैक्स में कटौती का वादा किया है.
एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के कुल 50 प्रतिशत टैरिफ से भारत के 48.2 अरब डॉलर के निर्यात पर असर पड़ेगा. ट्रंप के इस कदम से अमेरिका को निर्यात करना मुश्किल हो जाएगा, जिससे लोगों की नौकरियां जा सकती हैं. भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप ने भारत पर यह टैरिफ इसलिए लगाया है, ताकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध खत्म करने का दबाव बनाया जा सके. ऐसे में अगर पीएम मोदी की चीन यात्रा के दौरान भारत इसकी काट ढूंढ लेता है तो अमेरिका को मजबूत जवाब दिया जा सकता है.













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