पिछले पांच वर्षों में म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश का क्रेज़ तेजी से बढ़ा है. एएमएफआई (AMFI) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में म्यूचुअल फंड का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 2.8 गुना बढ़ चुका है. इसकी एक बड़ी वजह निवेशकों के बीच इसके सरल और लचीले निवेश विकल्प के तौर पर बढ़ती जागरूकता है. हालाँकि, म्यूचुअल फंड की प्रक्रिया आसान होने के बावजूद, इसके टैक्सेशन को लेकर कई निवेशकों को उलझन होती है. इसलिए टैक्स के नियम और म्यूचुअल फंड के प्रकार को समझना जरूरी है, ताकि आप अपने निवेश से अधिकतम लाभ उठा सकें, और टैक्स में कोई गलती न हो.
किस फंड पर कितना लगेगा टैक्स ?
आयकर नियमों के अनुसार, म्यूचुअल फंड को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:
इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड (Equity-Oriented Mutual Funds)
इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड वह फंड्स होते हैं, जो अपनी 65% या उससे अधिक राशि भारतीय लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं. इन फंड्स में निवेश करने के लाभ और टैक्स नियम इस प्रकार होते हैं:
- 12 महीने से पहले बेचें तो 15-20% टैक्स.
- 12 महीने के बाद 25 लाख रुपये से अधिक लाभ पर 10-12.5% टैक्स.
स्पेसिफाइड म्यूचुअल फंड (Specified Mutual Funds)
स्पेसिफाइड म्यूचुअल फंड्स वह फंड्स होते हैं, जो अपनी 35% या उससे कम राशि भारतीय लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं. इसमें आमतौर पर डेब्ट फंड (Debt Funds), गोल्ड ईटीएफ (Gold ETFs), और अन्य फंड्स शामिल होते हैं.
इन फंड्स पर शॉर्ट टर्म (Short Term) और लॉन्ग टर्म (long Term) दोनों तरह के टैक्स नियम लागू हो सकते हैं, और इसकी टैक्स की दर आपकी इनकम स्लैब के हिसाब से तय होती है.
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अन्य फंड्स (Hybrid/Balanced Funds)
अन्य फंड्स वह म्यूचुअल फंड्स होते हैं, जिनका इक्विटी अलॉटमेंट 35.01% से 64.99% के बीच होता है, जैसे कि हाइब्रिड फंड्स या बैलेंस्ड फंड्स.
- यदि आप इन फंड्स को 24 महीने से पहले बेचते हैं, तो आपका लाभ शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के तहत स्लैब रेट के अनुसार टैक्सेबल होगा. यानी, यह टैक्स आपकी आय के स्लैब के आधार पर लगेगा.
- अगर आप इन फंड्स को 24 महीने के बाद बेचते हैं, तो आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 12.5% टैक्स लगेगा, यदि आपको 1.25 लाख रुपय से अधिक का लाभ हुआ होगा.
कैसे होती है टैक्स की गणना?
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट फीफो (First In, First Out) मेथड से टैक्स की गणना करता है. इसका मतलब है, कि जब आप म्यूचुअल फंड यूनिट्स बेचते हैं, तो सबसे पहले खरीदी गई यूनिट्स को पहले बेचा गया माना जाता है. इससे यह तय होता है, कि आपका लाभ शॉर्ट टर्म में आएगा या लॉन्ग टर्म में.
आईटीआर फॉर्म कौन-सा भरें?
अगर आपने म्यूचुअल फंड से पूंजीगत लाभ (Capital Gains) कमाया है, लेकिन आपकी कोई बिज़नेस या प्रोफेशनल इनकम नहीं है, तो आपको आईटीआर-2 (ITR-2) फॉर्म भरना चाहिए.
अगर आपकी इनकम में बिज़नेस या प्रोफेशन से आय भी शामिल है, तो आपको आईटीआर-3 (ITR-3) का फॉर्म भरना चाहिए.
समय पर आईटीआर फाइल करना क्यों जरूरी?
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आईटीआर फाइल करने की अंतिम तारीख 31 जुलाई 2025 है. यदि आपने समय पर रिटर्न नहीं फाइल किया, तो आप पूंजीगत घाटा (Capital Loss) अगले वर्षों में सेट ऑफ नहीं कर सकते है. धारा 80 के तहत केवल समय पर दाखिल रिटर्न में दिखाया गया घाटा अगले 8 साल तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है. इसलिए समय पर आईटीआर फाइल करने से आपको टैक्स प्लानिंग में मदद मिलती है, और आप भविष्य में किसी भी तरह की टैक्स संबंधित परेशानी से बच सकते हैं.













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