जर्मनी में परमाणु कचरे को कम खतरनाक बनाने की नई तकनीक
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

परमाणु ऊर्जा पर ध्यान लगातार बढ़ रहा है लेकिन उसके कचरे का निवारण सबसे बड़ी समस्या है. जर्मनी के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक विकसित की है जो इस कचरे को काम की चीज बना सकती है.जर्मनी के वैज्ञानिकों ने परमाणु कचरे को कम खतरनाक तत्वों में बदलने का तरीका खोजा है. म्यूनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी और टीयूवी इंस्पेक्शन अथॉरिटी के विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक रेडियोधर्मी कचरे की तीव्रता और सक्रियता की अवधि को काफी हद तक घटा सकती है.

इस प्रक्रिया को "ट्रांसम्यूटेशन" कहते हैं. इसमें पुराने ईंधन रॉड्स के परमाणु नाभिक पर न्यूट्रॉन से हमला किया जाता है, जिससे वे कम खतरनाक तत्वों में बदल जाते हैं.

कचरे से मिलेंगे कीमती तत्व

इस तकनीक की एक और खासियत यह है कि इससे रेडियोधर्मी कचरे में मौजूद कीमती धातुएं भी निकाली जा सकती हैं. इनमें यूरेनियम, रोडियम और रूथेनियम शामिल हैं. इसके अलावा, जीनॉन और क्रिप्टोन जैसे नोबल गैसें भी प्राप्त होती हैं. कुछ तत्व, जैसे सीजियम और स्ट्रोंशियम, चिकित्सा और शोध कार्यों में काम आते हैं.

यह प्रक्रिया बड़ी मात्रा में ऊष्मा भी पैदा करती है, जिसे जिला ताप नेटवर्क (डिस्ट्रिक्ट हीटिंग) में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसका मतलब है कि यह न केवल कचरे को कम करने में मदद करेगा, बल्कि ऊर्जा उत्पादन में भी सहायक होगा.

जर्मनी के लिए यह तकनीक अहम हो सकती है क्योंकि यहां बहस हो रही है कि परमाणु संयंत्रों की वापसी होनी चाहिए या नहीं.

जर्मनी में कहां बनेगा पहला संयंत्र?

विशेषज्ञों का कहना है कि पहला ट्रांसम्यूटेशन प्लांट किसी मौजूदा परमाणु कचरा भंडारण केंद्र में बनाया जा सकता है. इससे पूरे देश में कचरे को इधर-उधर ले जाने की जरूरत नहीं होगी. जर्मनी में इस समय 16 अस्थायी भंडारण केंद्र हैं. इनमें से दो केंद्रीय और 14 विकेंद्रीकृत केंद्र हैं.

इस अध्ययन को फेडरल एजेंसी फॉर ब्रेकथ्रू इनोवेशन ने करवाया था. रिपोर्ट के मुताबिक, पहला संयंत्र 1.5 अरब यूरो (लगभग 1.6 अरब डॉलर) में बनेगा. सालाना संचालन खर्च 11.5 करोड़ यूरो होगा. लेकिन शोधकर्ताओं का दावा है कि यह प्लांट इतनी कमाई करेगा कि यह लागत कई गुना वसूल हो जाएगी.

इस तकनीक से गैर-रीसायकल होने वाले परमाणु कचरे की सक्रियता की अवधि 10 लाख साल से घटकर सिर्फ 800 साल रह जाएगी. यानी, यह तकनीक परमाणु कचरे की सबसे बड़ी समस्या को हल कर सकती है. 1988 तक जर्मनी में कुल 20 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे थे, जो अब बंद किए जा चुके हैं.

वीके/एए (डीपीए)