Devika Rani Jayanti 2025: एक समय था, जब समाज के भय से महिलाएं भारतीय सिनेमा में काम करना पसंद नहीं करती थीं. कहानी में महिला पात्रों के लिए पुरुष ही किरदार प्ले करते थे, या वेश्याएं आगे आती थीं. ऐसे समय (1933) में एक महिला ने सिनेमा जगत में कदम रखा, और पहली ही फिल्म में चार मिनट का किसिंग सीन देकर दुनिया को भौचक्क कर दिया. वह अभिनेत्री थीं देविका रानी. जिन्होंने स्त्री की न केवल जोरदार भूमिका निभाई, बल्कि 4 मिनट का लंबा किसिंग सीन देकर इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि समाज को भी ठगा सा बनाकर रख दिया. उनका उपयुक्त सीन आज भी एक कीर्तिमान बना हुआ है. देविका रानी न केवल हर तरह के सीन बिंदास फिल्माती थीं, बल्कि उस दौर में भी बोल्ड सीन, बेबाक बयान और बिंदास लाइफ स्टाइल जीती थीं.
यही वजह है कि उन्हें ड्रैगन लेडी, हिंदी सिनेमा की पहली महिला का खिताब भी दिया गया. आज उनकी 117वीं जयंती पर आइये जानें इस लेडी ड्रेगन के बिंदास जीवन शैली के कुछ रोचक पहलुओं पर..
रवींद्रनाथ टैगोर की रिश्तेदार
देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के पास वाल्टेयर में एक बंगाली परिवार में हुआ था. पिता जमींदार एवं कर्नल मन्मथनाथ चौधरी और माँ लीला देवी चौधरी थीं. पिता मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले सर्जन थे. प्रारंभिक पढ़ाई पूरी कर देविका ने रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट लंदन में किया. देविका रानी की नानी, सुकुमारी देवी नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की बहन थीं. कई डिजाइनिंग कोर्स कर उन्होंने 1927 में टेक्सटाइल डिजाइनिंग में जॉब शुरू किया.
हिमांशु राय के साथ विवाह
अध्ययन के दरमियान देविका रानी की मुलाकात हिमांशु राय से हुई. हिमांशु राय ने देविका रानी को ‘लाइट ऑफ एशिया’ नामक पहले प्रोडक्शन के लिए बतौर सेट डिजाइन नियुक्त कर लिया. साल 1929 में दोनों ने विवाह कर लिया. विवाह के पश्चात हिमांशु राय को जर्मनी के प्रख्यात यूएसए स्टूडियो में फिल्म ‘ए थ्रो ऑफ़ डाइस’ के लिए निर्माण के लिए चुन लिया गया, इसके बाद वे सपत्नीक जर्मनी चले गये.
बॉम्बे टॉकीज की स्थापना
साल 1934 में देविका रानी और हिमांशु राय ने बॉम्बे टॉकीज की सह स्थापना की. इस स्टूडियो के जरिये ना केवल अछूत कन्या, किस्मत, शहीद एवं मेला जैसी कई अच्छी फिल्में बनीं, तमाम विदेशी छायाकार एवं तकनीशियन भारत आये, जिन्होंने भारत को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म निर्माण एवं तकनीकों से परिचित कराया. वह बॉम्बे टाकीज ही था, जिसने फिल्म इंडस्ट्री को अशोक कुमार, दिलीप कुमार और मधुबाला जैसे कई सुपर स्टार भी दिये. दिलीप कुमार को दिलीप कुमार बनाने वाली देविका रानी ही थीं. देविका रानी ने ही उन्हें युसुफ खान से दिलीप कुमार का नाम दिया. साल 1933 में हिमांशु राय और देविका रानी फिल्म ‘कर्मा’ से अपने अभिनय करियर की भी शुरुआत की, जो हिंदी और अंग्रेजी दो भाषाओं में बनी थी.
बेबस देविका को बॉम्बे टॉकीज ही नहीं बॉम्बे से भी नाता तोड़ना पड़ा
साल 1940 में हिमांशु राय के निधन के पश्चात वैधव्य की विभीषिका से जूझ रही देविका रानी बॉम्बे टाकीज के संचालन में पूरी ताकत लगा दी, लेकिन चूंकि स्टूडियो का प्रबंधन हिमांशु राय देखते थे, लिहाजा देविका बेबस हो गईं. साल 1943 में शशधर मुखर्जी और अशोक कुमार ने बॉम्बे टॉकीज छोड़कर नया स्टूडियो फिल्मिस्तान बना लिया. अशोक कुमार के इस अघात से देविका रानी पूरी तरह टूट गईं. परिणामस्वरूप देविका रानी ने खुद को बॉम्बे टॉकीज से अलग कर रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव से विवाह कर बैंगलोर में जाकर बस गई.
देविका रानी का निधन
साल 1969 में देविका रानी को देश का पहला दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया. इसके बाद उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. 9 मार्च 1994 को 86 वर्ष की आयु में देविका रानी की बंगलोर में मृत्यु हो गई.













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