भारतीय संतों में सूरदास भक्ति काल के सगुण धारा के उपासक और महाकवि थे. उनके काव्य मुख्य रूप से भक्ति और प्रेम विषयक रहे हैं, संत कवि सूरदास की कविताओं में आध्यात्मिकता की गहराई है, जो मुख्यतया भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और प्रेम की महत्ता और वात्सल्य भाव के इर्द-गिर्द हैं. जन्म से दृष्टिहीन होने के बावजूद सूरदास ने भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप का जितना सुंदर वर्णन किया है, वैसा अब तक के तमाम दृष्टि वाले व्यक्ति भी नहीं कर सके हैं. उनके दोहे, चौपाइयां और सखियां इत्यादि भारतीय संस्कृति के गहरे भाव होते हैं. में अपनी विशेष पहचान रखते हैं. सूरदास जी की जयंती (12 मई) के अवसर पर आइये जानते हैं सूरदास जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें...
कब है सूरदास जयंती?
सूरदास जी की जन्म-तिथि के संदर्भ में विभिन्न इतिहासकारों में मतभेद है. इस संदर्भ में उनकी रचनाओं ‘साहित्य लहरी’ और ‘सूरसारावली’ के आधार पर उनका जन्म संवत 1540 विक्रमी (सन 1483) माना जाता था. परंतु बाद के विद्वानों ने इसे अप्रमाणिक सिद्ध करते हुए पुष्टिमार्ग में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास अपने गुरु श्रीमद वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, इस इस आधार पर सूरदास जी का जन्म संवत 1535 वि. (सन 1478) में वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था. इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे प्रमाणित तथ्यों से पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को जाता है. यह भी पढ़ें : National Technology Day 2024: क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय औद्योगिक दिवस? जानें इसका उद्देश्य एवं मनाने का तरीका!
जीवन परिचय
सूरदास के जन्म-स्थल को लेकर भी प्रमाणिकता का अभाव है. एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग स्थित रुनकता गांव में हुआ था, जबकि एक अन्य मत के अनुसार वे सीही नामक गांव के निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्हीं की ‘साहित्य लहरी’ के अनुसार वे चंद्रवंश के थे, पिता का नाम रामदास था. उनके छह भाई थे. वहीं चौरासी वैष्णवन के अनुसार आगरा-मथुरा मार्ग पर वे संन्यासी के रूप में रहते थे, जिसका नाम गोघात बताया जाता है. साल 1576 में पहली बार उनकी मुलाकात महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई. उन्होंने श्रृंगार और शांत रसों का भी बड़ा मार्मिक वर्णन किया है. मान्यता है कि सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें सपने में दर्शन देते हुए वृंदावन जाने को कहा था. इसके बाद वे वृंदावन चले गये.
क्या सूरदास जन्म से अंधे थे?
प्राप्त कथाओं के अनुसार सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे, इसलिए उनके माता-पिता उन्हें अपने पास नहीं रखना चाहते थे, तब छह वर्ष की आयु में सूरदास ने घर-बार छोड़ भगवान कृष्ण की भक्ति में डूब गये. कहा जाता है कि एक बार कृष्ण की भक्ति गान करते हुए वह एक कुंए में गिर गये, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी जान बचाते हुए उनकी नेत्र-ज्योति लौटा दी थी. इस तरह सूरदास ने सबसे पहले अपने आराध्य कृष्ण को ही देखा था. सूरदास की भक्ति से प्रसन्न जब श्रीकृष्ण ने उनसे वरदान मांगने को कहा, तो सूरदास ने कहा, प्रभु आपके दर्शन कर मैंने सब कुछ पा लिया है, आप मुझे पुनः अंधा कर दें, मैं आपके अलावा किसी को देखना नहीं चाहता.
सूरदास जी की प्रमुख कृतियां
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रंथों का उल्लेख किया गया है. इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशम स्कंध टीका, नागलीला, भागवत, गोवर्धन लीला, सुर पचीसी, सूरसागर सार, प्राण प्यारी, आदि ग्रंथ शामिल हैं. इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं, साहित्य लहरी की प्राप्त प्रति में बहुत प्रक्षिप्तांश जुड़े हुए हैं.
साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर सारावली।
श्री कृष्ण जी की बाल-छवि पर लेखनी अनुपम चली।।
मृत्यु का पूर्व अहसास हो गया था सूरदास को
सूरदास की पद-रचना और गान विद्या से मुगल बादशाह अकबर भी प्रभावित था. सूरदास से मिलने वह मथुरा भी आया था. अपने अंतिम दिनों में श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन करते हुए उन्हें अहसास हुआ कि भगवान अब उन्हें अपने साथ ले जाने की इच्छा रख रहे हैं, तो वह श्रीनाथजी स्थित पारसौली के चंद्र सरोवर तट पर लेटकर श्रीनाथ की ध्वजा का ध्यान करते हुए उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.