ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी ने बतौर प्रधानमंत्री सरदार पटेल के पक्ष में जहां 14 वोट देकर उन्हें अपना पीएम बनाने की दृढ़ इच्छा जताई थी, वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू मात्र एक वोट पाकर पीएम रेस से बाहर हो चुके थे, लेकिन गांधीजी ने अपने प्रभाव से देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहरलाल नेहरू का चयन किया. सरदार पटेल के खाते में उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का पद आया. इतिहासकारों के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े आंदोलनों से लेकर सत्ता संभालने के बाद तक नेहरू और पटेल के बीच कई मुद्दों मतभेद के स्वर उभरे थे, जो समय-समय पर उजागर हुए. सरदार पटेल की 150वीं जयंती (31 अक्टूबर 2025) के अवसर पर पटेल और नेहरू के बीच ऐसे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करेंगे.
कश्मीर का मुद्दा:
शुरू-शुरू में सरदार पटेल का कश्मीर पर सामान्य और व्यावहारिक रुख था, कहते हैं पटेल ने लॉर्ड माउंटबेटन को सुझाव दिया था कि वे कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने को तैयार हैं, बशर्ते भारत हैदराबाद को लेकर निश्चिंत हो सके, लेकिन अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान के भारत पर आक्रमण से पटेल का रुख कठोर हो गया. अब पटेल कश्मीर मुद्दे को सैन्य कार्रवाई से निपटाना चाहते थे. वह चाहते थे कि पीओके पर भारत का नियंत्रण हो, जबकि नेहरू इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हल करना चाहते थे. पटेल ने इसका विरोध किया. अंततः कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया. इससे भारत को कई नुकसान उठाने पड़े. यह भी पढ़ें : Chhath Puja 2025 Bhojpuri Wishes: छठ पूजा के इन भोजपुरी WhatsApp Messages, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
उत्तर-पूर्व का मुद्दा:
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा) को शेष भारत से अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में देखते थे, जिसे उनके विदेश मंत्रालय के अधीन रखा जाना था. सरदार पटेल ने इसका पुरजोर विरोध किया. उनके अनुसार ऐसा करने से उस क्षेत्र के लोगों के मन में भारत से अलग-थलग करने वाला संदेश जाएगा, जिसका भारत की एकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था. उन्होंने नेहरू की योजना के संभावित दुष्परिणामों के बारे में चेताते हुए कहा था कि यह उत्तर-पूर्व के लोगों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को कमजोर कर सकता है, अलगाववाद को बढ़ावा दे सकता है. पटेल यथार्थवादी सोच रखते थे, जबकि नेहरू आदर्शवादी दृष्टिकोण रखते थे.
अल्पसंख्यक मुद्दे
सरदार पटेल और नेहरू के बीच अल्पसंख्यक मुद्दे पर भी काफी मतभेद थे. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी के संदर्भ में नेहरू का कहना था कि यह जिम्मेदारी कांग्रेस और भारत सरकार की है. नेहरू मुसलमानों की सुरक्षा औऱ जिम्मेदारी भी कांग्रेस और सरकार की मानते थे, जबकि पटेल चाहते थे कि अल्पसंख्यक हो या मुसलमान वह स्वयं अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें. नेहरू आदर्शवादी थे.
दृष्टिकोण में अंतर:
नेहरू और पटेल के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे, यहां तक कि उनके बीच कानून-व्यवस्था को लेकर भी काफी विरोधाभास था. उदाहरणार्थ कुछ घटनाओं में पटेल चाहते थे कि कानून के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए, जबकि नेहरू व्यक्तिगत हस्तक्षेप या तुष्टिकरण की नीति को प्राथमिकता देते थे.
बताया जाता है कि इन मतभेदों के कारण दोनों नेताओं ने महात्मा गांधी को अपना इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उन्हीं दिनों गांधी जी के अकस्मात निधन के बाद परिस्थितिवश दोनों को मिलकर काम करने के लिए मजबूर कर दिया, जिसकी वजह से एक अजीब गठबंधन बना.













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