Muharram Mehndi Design: मुहर्रम पर लगाएं ये अरेबिक और मंडला मेहंदी डिजाइन, देखें पैटर्न
मुहर्रम मेहंदी डिजाइन (Photo: File Image)

Muharram Mehndi Design: नए हिजरी वर्ष की शुरुआत को चिह्नित करने वाला इस्लामी महीना मुहर्रम (Muharram) भारत में 26 जून को आधा चांद दिखने के बाद शुक्रवार, 27 जून को शुरू हुआ. इस्लाम में चार पवित्र महीनों में से एक के रूप में मनाया जाने वाला मुहर्रम, विशेष रूप से शिया मुस्लिम समुदाय के लिए गहरा आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है. इस साल, आशूरा (Ashura), मुहर्रम का 10वां दिन और इसकी सबसे महत्वपूर्ण तारीख - मस्जिद-ए-नखोदा मरकज़ी रूयत-ए-हिलाल समिति की घोषणा के अनुसार, रविवार, 6 जुलाई को होगी. मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर में रमज़ान के बाद दूसरा सबसे पाक महीना माना जाता है. यह इबादत, आत्मनिरीक्षण और स्मरण का समय है. यह भी पढ़ें: Muharram customs 2025: मोहर्रम पर ताजिया क्यों निकाला जाता है? जानें इसकी परंपरा और सांस्कृतिक पहलुओं आदि के बारे में रोचक जानकारी!

शिया मुसलमानों के लिए, यह महीना मुख्य रूप से पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन की शहादत पर शोक मनाने से जुड़ा है, जो 680 ई. में कर्बला की लड़ाई में मारे गए थे. उनके बलिदान को याद करने के लिए, दुनिया भर के शिया समुदाय मजलिस (धार्मिक सभा), शोक जुलूस और कर्बला की त्रासदी को याद करते हुए काव्य पाठ में भाग लेते हैं.

सुन्नी मुसलमान भी आशूरा मनाते हैं, हालांकि एक अलग तरीके से. कई लोग पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए रोजा और अतिरिक्त प्रार्थना कर इस दिन को मनाते हैं. कुछ नए कपड़े पहनते हैं, हाथों में मेहंदी लगाते हैं. अगर मुहर्रम पर आप भी कुछ लेटेस्ट मेहंदी डिजाइन की तलाश में हैं तो हम ले आये हैं कुछ मेहंदी डिजाइन जिन्हें आप तरी कर सकते हैं.

बैक हैंड अरेबिक मेहंदी डिजाइन

 

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फिंगर मेंहदी पैटर्न

 

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अरेबिक मेहंदी पैटर्न

 

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फ्रंट हैंड मेहंदी पैटर्न

 

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मंडला मेहंदी पैटर्न

 

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अरेबिक पैटर्न

 

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मंडला मेहंदी पैटर्न

 

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फ्रंट हैंड मेहंदी डिजाइन

 

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मंडला मेहंदी पैटर्न

 

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यौम-ए-आशूरा का दिन मुसलमानों के लिए मातम का दिन होता है, खासतौर पर शिया मुस्लिमों के लिए. मुहर्रम के शुरुआती 9 दिनों में रोजाना मजलिस की जाती है और फिर इस महीने के दसवें दिन जुलूस निकाला जाता है, जिसमें शिया मुसलमान खुद को चोट पहुंचाते हैं.

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, सन् 61 हिजरी में मुहर्रम की 10 तारीख यानी, यौम-ए-आशूरा के दिन कर्बला में एक जंग हुई. इस जंग में इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने परिवार के साथ अपनी जान कुर्बान कर दी. इमाम हुसैन की ये जंग थी यजीद नाम के एक जालिम बादशाह से, जिसने कर्बला में मासूम बच्चों की जान भी नहीं बख्शी थी.

कर्बला की जुल्म की दास्तान को याद करते हुए मुहर्रम के महीने में दुनिया भर के मुसलमान अलग-अलग तरीकों से अपने गम का इजहार करते हैं और मातम मनाते हैं. आशूरा के दिन शिया मुसलमान खुद को जख्मी कर अपना लहू बहाते हैं, धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं और ताजि़ये भी निकालते हैं. साथ ही, मजलिस कर उस जुल्म की दास्तान का जिक्र करते हैं.