
Muharram customs 2025: मुहर्रम (Muharram) शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम समुदाय के लिए आध्यात्मिक एवं महत्वपूर्ण पर्व है. दुनिया भर के मुसलमान इस पर्व को भक्ति और सच्ची आस्था के साथ मनाते हैं. मुहर्रम इस्लाम धर्म के चार सबसे पवित्र महीनों में एक है. मुहर्रम माह में ताजिया निकालने की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा है, जो इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में जुलूस के रूप में निकाली जाती है. ताजिया वस्तुतः एक मकबरे के आकार का ढांचा होता है, जिसे बांस और कागज से बनाया जाता है, इसे इमाम हुसैन के रौजे (मकबरे) का प्रतीक माना जाता है. मुहर्रम के 10वें दिन, जिसे आशूरा भी कहा जाता है, अंत में इसे दफना दिया जाता है. यह भी पढ़ें: Islamic New Year 2025: कब है इस्लामिक नव वर्ष? जानें कैसे निर्धारित होता है नया साल और कैसे करते हैं सेलिब्रेशन!
ताजिए की परंपरा और उसका सांस्कृतिक पहलू
ताजिया एक प्रतीकात्मक मकबरा (मजार) का स्वरूप होता है, जो मुहर्रम के महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. यह प्रथा मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप, विशेषकर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ज्यादा देखी जाती है. इसमें धार्मिक एवं सांस्कृतिक पक्ष भी जुड़ा होता है.
ताजिया क्या होता है?
ताजिया एक प्रतीकात्मक मीनार या मकबरे जैसी संरचना होती है, जो कर्बला में हुसैन इब्न अली की कब्र का प्रतिनिधित्व करती है. यह बांस, कागज, रंग-बिरंगे कपड़ों, थर्माकोल, लकड़ी, और धातुओं आदि की मदद से बनाया जाता है. ताजिया न केवल शिया मुस्लिम समुदाय बल्कि कई स्थानों पर सुन्नी और गैर-मुस्लिम समुदाय द्वारा भी श्रद्धा और निष्ठा के साथ बनाया और जुलूस में शामिल किया जाता है.
ताजिया कैसे बनता है?
सर्वप्रथम बांस या लकड़ी का एक ढांचा तैयार किया जाता है, जो मकबरे की तरह ऊंचा होता है. इस ढांचे को चमकीले कागज, शीशे, गोटे, कपड़े, और फूलों आदि से सजाया जाता है. कुछ ताजिए बहुत साधारण होते हैं, तो कुछ बेहद भव्य और कलात्मक होते हैं. कई ताजिए पारंपरिक स्थापत्य शैली में बनाए जाते हैं, जिनमें मुग़ल, राजस्थानी या फारसी डिज़ाइन नजर आते हैं. यह भी पढ़ें: Muharram 2025 Wishes: मुहर्रम 1447 के इन शानदार HD Images, WhatsApp Status, GIF Greetings के जरिए करें इस्लामिक नववर्ष का स्वागत
ताजिया का महत्व क्या है?
धार्मिक महत्व: ताजिया, करबला में हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की कुर्बानी की याद दिलाता है, उन्होंने अन्याय और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अपने प्राणों की बलि दी. यह मुसलमानों को बलिदान, न्याय, और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है.
सांस्कृतिक महत्व: ताजिए की परंपरा ने विभिन्न समुदायों को एकजुट किया है. कई जगहों पर मुस्लिम और गैर मुस्लिम मिलकर ताजिया बनाते हैं. और जुलूस निकालते हैं. इसमें लोककला, शिल्प, और परंपरागत संगीत जैसे ‘मरसिया’, ‘नौहा’ और ‘अज़ादारी’ का अहम योगदान होता है. ग्रामीण और शहरी इलाकों में इसे एक सामाजिक आयोजन के रूप में भी देखा जाता है, जहां पूरा समुदाय मिलकर इसका आयोजन करता है.
जुलूस और दफन: मुहर्रम की 10वीं तारीख (यौमे-आशूरा) को ताजिए का जुलूस निकाला जाता है. इस दौरान ‘या हुसैन’ की आवाज के साथ मातम किया जाता है. अंत में ताजिया को किसी विशेष स्थान पर ‘दफन’ किया जाता है.