नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में तेजी से बढ़ रहे 'डिजिटल गिरफ्तारी' घोटालों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए सोमवार को CBI जांच के आदेश दिए. कोर्ट ने कहा कि यह साइबर फ्रॉड बेहद गंभीर है और इसकी तत्काल जांच जरूरी है. साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि CBI को इस जांच में पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी. चाहे वह बैंक अधिकारियों पर कार्रवाई हो या अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मदद लेना हो.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्य कांत ने कहा कि CBI अब न सिर्फ डिजिटल गिरफ्तारी वाले मामलों की जांच करेगी, बल्कि आगे चलकर फर्जी निवेश योजनाओं और पार्ट-टाइम जॉब के नाम पर चल रहे ऑनलाइन घोटालों को भी अपने दायरे में लाएगी.
कोर्ट ने CBI को यह भी अधिकार दिया कि यदि आवश्यक हो तो वह इंटरपोल जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मदद ले सकती है. इसका मतलब है कि उन साइबर अपराधियों पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा जो भारत के बाहर बैठकर लोगों को ठग रहे हैं.
बैंक अधिकारियों पर भी कार्रवाई का रास्ता साफ
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि CBI बैंकर्स के खिलाफ भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत कार्रवाई कर सकती है. अगर पाया गया कि उन्होंने इन घोटालों के लिए बैंक खाते खुलवाने में लापरवाही या मिलीभगत की.
इसके साथ ही कोर्ट ने RBI से यह सुझाव मांगा कि AI और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कब और कैसे किया जा सकता है, ताकि संदेहास्पद खातों की पहचान करके समय रहते अपराध की राशि को फ्रीज किया जा सके.
सोशल मीडिया कंपनियों को भी मिली बड़ी जिम्मेदारी
CJI ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी आदेश दिया कि वे CBI की जांच में पूर्ण सहयोग करें. यह निर्देश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर ठगी वीडियो कॉल, चैट ऐप्स और अन्य डिजिटल माध्यमों से की जाती है.
क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’?
‘डिजिटल अरेस्ट’ एक खतरनाक साइबर फ्रॉड है, जिसमें ठग खुद को पुलिस अधिकारी, एनआईए अधिकारी, कस्टम अधिकारी या किसी सरकारी एजेंसी का प्रतिनिधि बताकर लोगों को डराते-धमकाते हैं. वे पीड़ित से वीडियो कॉल या ऑडियो कॉल पर संपर्क करते हैं और झूठा दावा करते हैं कि जैसे आपके नाम से कोई पार्सल पकड़ा गया है, उसमें ड्रग्स, नकली दस्तावेज या अवैध सामान मिला है या फिर आपके किसी परिवार के सदस्य पर आपराधिक केस है.
इसके बाद वे कहते हैं कि मामला बेहद गंभीर है और आपको गिरफ्तार किया जा रहा है, लेकिन अगर आप तुरंत जुर्माना या क्लियरेंस फीस भर दें, तो मामला बंद हो सकता है. ठग इतना भय पैदा कर देते हैं कि व्यक्ति उनके कहे अनुसार पैसे ट्रांसफर कर देता है.
स्क्रीन पर ‘डिजिटल अरेस्ट’ 24 घंटे कॉल पर दबाव
कई मामलों में पीड़ितों को लगातार वीडियो कॉल पर रखा जाता है और कहा जाता है कि जब तक "जांच पूरी" नहीं होती, उन्हें कॉल काटने की अनुमति नहीं है. पीड़ित घंटों या कभी-कभी पूरे दिन एक वर्चुअल “हिरासत” में फंसे रहते हैं.
ठग इस प्रक्रिया को विश्वसनीय दिखाने के लिए स्टूडियो सेटअप में नकली पुलिस थाने जैसा माहौल तैयार करते हैं और वर्दी तक पहनते हैं. देशभर में हजारों लोग इस तरीके से लाखों रुपये गंवा चुके हैं.
डिजिटल फ्रॉड देश की सबसे तेजी से बढ़ती साइबर क्राइम श्रेणी बन चुका है. अंतरराष्ट्रीय कॉल, फर्जी नंबर, नकली वेबसाइटें और गहरे साजिशी नेटवर्क ने इसे और भी खतरनाक बना दिया है.













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