भारत सहित दुनिया भर में 2.5 करोड़ बच्चे कोविड के कारण जीवन रक्षक वैक्सीन से रहे वंचित
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

जिनेवा, 15 जुलाई : वर्ष 2021 में 2.5 करोड़ बच्चे जीवन रक्षक टीकाकरण से चूक गए, जिससे विनाशकारी बीमारियों का खतरा बढ़ गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ की शुक्रवार को जारी एक नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट में बच्चों के लिहाज से एक चिंताजनक आंकड़ा साझा करते हुए कहा गया है कि 2021 में कोविड के कारण 2.5 करोड़ बच्चे जीवन बचाने वाले टीकाकरण से वंचित रह गए, जिससे विनाशकारी, लेकिन रोकथाम योग्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह "लगभग 30 वर्षों में बचपन के टीकाकरण में सबसे बड़ी निरंतर गिरावट है."

2.5 करोड़ में से, 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे भारत, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया, फिलीपींस, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, ब्राजील, पाकिस्तान, अंगोला और म्यांमार जैसे सिर्फ 10 देशों में रहते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन देशों में भी शामिल है, जहां के बच्चे 2021 में डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (डीटीपी3) के खिलाफ टीके की एक भी खुराक नहीं ले पाए थे. डीटीपी3 टीकाकरण, जो कि देशों के भीतर और देशों में टीकाकरण कवरेज के लिए एक मार्कर की तरह है, 2019 और 2021 के बीच 5 प्रतिशत अंक गिरकर 81 प्रतिशत हो गया.

रिपोर्ट में कहा गया है, "2.5 करोड़ बच्चों में से 1.8 करोड़ को वर्ष के दौरान डीटीपी की एक भी खुराक नहीं मिली, जिनमें से अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जिनमें भारत, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया और फिलीपींस में इनकी सबसे अधिक संख्या है." इसके अलावा रिपोर्ट से पता चला है कि महामारी बच्चों के बीच बुनियादी टीकाकरण को प्रभावित कर रही है - 2020 में लगभग 2.3 करोड़ शिशु टीकाकरण से चूक गए जबकि 2019 में यह आंकड़ा 1.9 करोड़ था. कई कारकों (फैक्टर्स), जिनमें संघर्ष और नाजुक वातावरण में रहने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि और गलत सूचनाओं में वृद्धि शामिल हैं, ने गिरावट में योगदान दिया.

जीवन रक्षक वैक्सीन से वंचित रहने में कोविड-19 से संबंधित मुद्दों जैसे सेवा और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान या रोकथाम के उपायों के कारण सीमित टीकाकरण सेवा पहुंच और उपलब्धता ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाई. यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने एक बयान में कहा, "यह बाल स्वास्थ्य के लिए एक रेड अलर्ट है. हम एक पीढ़ी में बचपन के टीकाकरण में सबसे बड़ी निरंतर गिरावट देख रहे हैं." उन्होंने कहा, "जबकि पिछले साल कोविड-19 व्यवधानों और लॉकडाउन के परिणामस्वरूप एक महामारी हैंगओवर की उम्मीद थी, अब हम जो देख रहे हैं, वह निरंतर गिरावट है." यह भी पढ़ें : शनिवार को राष्ट्रपति उम्मीदवार के समर्थन पर विचार- विमर्श करेगी आम आदमी पार्टी

यह आशा की गई थी कि 2021 ठीक होने (रिकवरी) का वर्ष होगा, जिसके दौरान तनावपूर्ण स्थिति में जा चुके टीकाकरण कार्यक्रमों की फिर से रफ्तार के साथ शुरुआत होगी और 2020 में छूटे बच्चों के समूह का टीकाकरण किया जा सकेगा. इसके बजाय, डीटीपी3 कवरेज 2008 के बाद से अपने निम्नतम स्तर पर वापस लौट आई. यानी इसमें कुछ सुधार होने के बजाय यह और निम्न स्तर पर चला गया. इस दौरान बुनियादी टीकों के लिए कवरेज में अच्छी-खासी गिरावट देखी गई, जिससे वैश्विक लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए.

यही नहीं, इस दौरान विश्व स्तर पर, मानव पेपिलोमावायरस (एचपीवी) टीकों का एक चौथाई से अधिक कवरेज, जो 2019 में हासिल किया गया था, वह भी खो गया. महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए इसके गंभीर परिणाम हैं, क्योंकि एचपीवी टीके की पहली खुराक का वैश्विक कवरेज केवल 15 प्रतिशत है, जबकि पहले टीकों को 15 साल पहले लाइसेंस दिया गया था. रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "टीकाकरण की दरों में यह ऐतिहासिक गिरावट गंभीर तीव्र कुपोषण की तेजी से बढ़ती दरों की पृष्ठभूमि के खिलाफ हो रही है. एक कुपोषित बच्चे में पहले से ही कमजोर प्रतिरक्षा होती है और टीकाकरण छूटने का मतलब यह हो सकता है कि बचपन की आम बीमारियां जल्दी से उनके लिए घातक हो जाती हैं. भूख के संकट के साथ अभिसरण (कन्वर्जेस) रिपोर्ट में कहा गया है कि टीकाकरण की बढ़ती खाई से बच्चे के जीवित रहने को लेकर संकट की स्थिति पैदा होने का खतरा है."

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. ट्रेडोस एडनॉम घेब्रेयसस ने कहा, "कोविड-19 की योजना बनाना और उससे निपटना भी खसरा, निमोनिया और दस्त जैसी जानलेवा बीमारियों के टीकाकरण के साथ-साथ चलना चाहिए. इसमें या तो/या फिर का सवाल नहीं है, दोनों करना संभव है." हालांकि, कुछ देशों ने विशेष रूप से गिरावट को रोक दिया. युगांडा ने नियमित टीकाकरण कार्यक्रमों में उच्च स्तर की कवरेज को बनाए रखा, जबकि हेल्थ वर्कर्स सहित प्राथमिकता वाली आबादी की रक्षा के लिए एक लक्षित कोविड टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी तरह, पाकिस्तान उच्च स्तरीय सरकारी प्रतिबद्धता और महत्वपूर्ण कैच-अप टीकाकरण प्रयासों की बदौलत पूर्व-महामारी के स्तर पर लौट आया.