COVID-19 की जांच के लिए IIT-खड़गपुर ने विकसित की एक घंटे के अंदर नतीजे देने वाली सस्ती जांच उपकरण
कोरोना से जंग (Photo Credits: Pixabay)

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (ITT)-खड़गपुर ने कोविड-19 की जांच के लिये कम लागत वाला एक उपकरण विकसित किया है, जो एक घंटे के अंदर जांच के नतीजे देगा. इसे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से भी प्रमाणन मिल गया है. आईआईटी-खड़गपुर (IIT-Kharagpur) के अधिकारियों के मुताबिक, ‘कोवीरैप’ एक घनाकार जांच उपकरण है, जो एक घंटे में नतीजे दे सकता है। यह दूर-दराज के और ग्रामीण इलाकों में कोरना वायरस संक्रमण की जांच के कार्य में तेजी लाने के लिये एक प्रभावी औजार साबित हो सकता है.

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा, ‘‘इस नवोन्मेष ने आम आदमी के लिये कोविड-19 की उच्च गुणवत्तायुक्त और सटीक नतीजे देने वाली जांच प्रणाली को जांच की करीब 500 रुपये की लागत के साथ वहनीय बना दिया है, जिसे (इस खर्च को) सरकारी सहायता के जरिये और भी घटाया जा सकता है। यह मशीन 10,000 रुपये से भी कम लागत पर विकसित की जा सकती है, इसमें न्यूनतम मूलभूत ढांचे की जरूरत होगी, जिस कारण यह प्रौद्योगिकी आम आदमी के लिये वहनीय होगी। नयी मशीन में जांच प्रक्रिया एक घंटे के अंदर पूरी हो जाएगी. यह भी पढ़े | बीजेपी विधायक Mahesh Negi के खिलाफ यौन शोषण का मामला, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जांच अधिकारियों से मांगा प्रोग्रेस रिपोर्ट.

उन्होंने कहा कि यह उपकरण ग्रामीण भारत में काफी संख्या में लोगों को लाभान्वित करेगा क्योंकि इस उपकरण को कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है और बहुत कम बिजली आपूर्ति के साथ इसे संचालित किया जा सकता है. कम प्रशिक्षित ग्रामीण युवा भी इसे संचालित कर सकते हैं. आईआईटी खड़गपुर के निदेशक वी. के. तिवारी के मुताबिक, ‘‘यह नवोन्मेष काफी हद तक पीसीआर-आधारित जांच की जगह लेने वाला है. संस्थान एक सीमा तक जांच किट का उत्पादन करेगा। लेकिन इसके पेटेंट लाइसेंस से मेडिकल प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये इसके वाणिज्यीकरण करने के अवसर को प्रोत्साहन मिलेगा.’’

‘कोवीरैप’ जांच के प्रमाणन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त विषाणु विज्ञानी ममता चावला सरकार ने कहा कि जांच के नतीजों की विस्तृत पड़ताल से यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ है कि यह उपकरण जांच के समान सिद्धांतों पर आधारित अन्य पद्धति की तुलना में अत्यधिक कम संख्या में विषाणुओं की मौजूदगी रहने पर भी उसका पता लगा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि संक्रमण के बहुत ही शुरूआती चरण में भी उसका पता लगाया जा सकता है.ममता ने आईसीएमआर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉलेरा एंड इंटेरिक डीज़ीज की ओर से पेटेंट परीक्षणों की निगरानी की है.

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