नयी दिल्ली, 29 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में पेड़ों की गणना की आवश्यकता पर शुक्रवार को जोर दिया और कहा कि वह ‘वृक्ष अधिकारी’ द्वारा किए जाने वाले काम की निगरानी के लिए एक प्राधिकरण बनाना चाहता है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के सख्त क्रियान्वयन के मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘वृक्षों की गणना के अलावा, जो आदेश हम पारित करने जा रहे हैं, (उसके तहत) हम एक प्राधिकरण भी बनाना चाहते हैं। वह प्राधिकरण यह सत्यापित करेगा कि वृक्ष अधिकारी ने उचित काम किया है या नहीं। किसी को दी गई अनुमति की निगरानी करनी होगी।’’
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वृक्षों के संरक्षण के प्रावधान वाले अधिनियम-1994 वृक्ष प्राधिकरण की स्थापना और कर्तव्यों तथा वृक्ष अधिकारी की नियुक्ति से संबंधित हैं।
पीठ सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति के बिना दिल्ली सरकार को पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं देने संबंधी अर्जी पर सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के दौरान पीठ ने मामले में उपस्थित वकीलों से सुझाव देने को कहा कि किस आधार पर प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए।
इसने कहा कि न केवल व्यक्तिगत विशेषज्ञों की आवश्यकता है, बल्कि इस प्रक्रिया में एक संस्था को भी शामिल किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा हमेशा से मानना है कि पर्यावरण के मामलों में कठोर आदेश दिए जाने चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों की सुरक्षा से संबंधित मामलों में उसके समक्ष उपस्थित होने वाले वकील बहुत सहयोगी रहे हैं और उन्होंने हमेशा न्यायालय के समक्ष निष्पक्ष रुख अपनाया है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा, "हम आभारी हैं। आप हमारे बेहतर भविष्य, हमारे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा कर रहे हैं।"
न्यायालय ने 1994 के अधिनियम के प्रावधानों के सख्त क्रियान्वयन से संबंधित मुद्दे को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया।
पीठ ने कहा, ‘‘पक्षों की ओर से उपस्थित होने वाले वकील इस मुद्दे पर हमसे बात कर सकें, इसके लिए हम निर्देश देते हैं कि याचिका 18 दिसंबर को सूचीबद्ध की जाए।"
मामले में पेश हुए वकीलों में से एक ने दिल्ली सरकार द्वारा पिछले दिनों जारी की गई अधिसूचनाओं का हवाला दिया, जिसमें किसी भी क्षेत्र या पेड़ों की किसी भी प्रजाति को 1994 के अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘अंतरिम रूप से इस शक्ति को कम किया जाना चाहिए। वे धारा 29 (अधिनियम की) के तहत अधिसूचनाएं जारी नहीं कर सकते।’’
अधिनियम की धारा 29 छूट के लिए सरकार की शक्ति से संबंधित है।
जहां एक अधिवक्ता ने लोगों में ‘‘काफी जागरूकता’’ आने का दावा किया, वहीं दूसरे ने जमीनी हकीकत पर दुख जताते हुए कहा कि ‘‘स्थिति जितनी पहले खराब थी उतनी ही आज भी’’ है। उन्होंने दावा किया कि यहां तक कि उच्चतम न्यायालय परिसर में ही दो पेड़ काटे गये थे।’’
उस अधिवक्ता ने कहा कि वन विभाग की हेल्पलाइन पर शिकायत करने पर कोई जवाब नहीं मिला।
पीठ ने कहा, ‘‘आप उस शिकायत को रिकॉर्ड पर लायें।’’
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कई अन्य आवेदनों पर विचार किया, जिनमें से एक में दावा किया गया था कि फुट-ओवर ब्रिज के निर्माण के लिए कई पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी गई थी।
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