काम से भागने वाले बेरोजगारों से परेशान जर्मनी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में एक तरफ काम के लिए लोग ना मिलने की वजह से कंपनियां बंद हो रही हैं तो दूसरी तरफ बेरोजगारी बढ़ रही है. इन सबके बीच कुछ सुविधाभोगी लोग काम करने को तैयार नहीं हैं. सरकार अब उनकी सुविधा वापस लेने की तैयारी में है .जर्मनी की नई सरकार उन लोगों के खिलाफ जल्दी ही कार्रवाई शुरू करेगी जो सरकारी सुविधा पर पल रहे हैं और काम करने से इनकार करते हैं. जर्मनी की श्रम मंत्री बेर्बेल बास ने मंगलवार को यह बात कही. बर्लिन में जॉब सेंटर डे के मौके पर एक कार्यक्रम में बास ने कहा कि नई सरकार उन सुधारों को लागू करने की तैयारी में है जो गठबंधन समझौते में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि "बहुत तेजी से काम होगा लेकिन जल्दबाजी में नहीं."

नौकरी के अपॉइंटमेंट में नहीं पहुंचते लोग

मध्य वामपंथी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) की नेता बास ने कहा कि जर्मनी के जॉब सेंटर में आधे से ज्यादा अपॉइंटमेंट पर लोग नहीं पहुंचते हैं और यह आम बात हो गई है. जॉब सेंटर के सैकड़ों कर्मचारियों की भीड़ कार्यक्रम में पहुंची थी. उन लोगों से बास ने कहा, "मुझे लगता है कि इसे बदलने की जरूरत है. जॉब सेंटर में अपॉइंटमेंट पर लोगों को पहुंचना चाहिए, अगर वो ऐसा नहीं करते तो उसका एक अर्थपूर्ण नतीजा होना चाहिए. हम तेजी से एक ड्राफ्ट बिल पर काम कर रहे हैं."

जर्मनी में उत्तराधिकारी की कमी से बंद हो रही हैं कंपनियां

जर्मनी में जॉब सेंटर का मतलब है वह केंद्र जो बेरोजगार लोगों को नौकरी दिलाने और बेरोजगारी भत्ता देने का काम संभालता है. जॉब सेंटर में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो भत्ता लेने को तो तैयार हैं लेकिन नौकरियों के लिए इंटरव्यू के अपॉइंटमेंट में नहीं पहुंचते या फिर नौकरी करने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं. जर्मन अर्थव्यवस्था दोहरी मार झेल रही है. आर्थिक मंदी और दुनिया में चल रही भारी उथल पुथल के बीच जर्मन अर्थव्यवस्था भी मुश्किलें झेल रही है. यहां उद्योगों से एक साल में एक लाख नौकरियां खत्म हो गई हैं.

एसपीडी और चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी के बीच सरकार बनाने के लिए जो गठबंधन समझौता हुआ है उसमें बेरोजगारी के भत्तों में सुधार करने की भी बात है. समझौते में कहा गया है कि जो लोग काम करने के लिए फिट हैं और नौकरी करने से इनकार करते हैं उनका बेरोजगारी भत्ता छिन जाएगा.

जर्मनी में बेरोजगारी भत्ता

जर्मनी के निवासियों के पास अगर नौकरी ना हो तो सरकार उन्हें बेरोजगारी भत्ता देती है. नौकरी छिन जाने, नौकरी करने में अक्षम होने या फिर खर्च चलाने लायक आमदनी ना हो तो भी यह भत्ता मिलता है. आमतौर पर नौकरी करने वाले सभी लोगों के वेतन से हर महीने एक निश्चित रकम इस भत्ते के लिए बनाए फंड में जमा की जाती है. इसी पैसे से लोगों को यह सुविधा मिलती है.

12 महीने तक योगदान करने के बाद लोग इसके हकदार बन जाते हैं. नौकरी चली जाए तो भी अलग अलग परिस्थितियों में 6-30 महीने तक उन्हें इस फंड से पैसा मिल सकता है. आमतौर पर आखिरी वेतन का 60 फीसदी तक भत्ते के रूप में मिल सकता है. इसमें अधिकतम रकम की भी एक सीमा रखी गई है. जिन लोगों पर बच्चे की जिम्मेदारी है और उनकी आय से खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है उन्हें भी इस फंड से कुछ सहयोग मिलता है.

कितने लोग बेरोजगार हैं जर्मनी में

जर्मन सांख्यिकी विभाग के मुताबिक श्रम शक्ति से जुड़े ताजा सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अप्रैल 2025 में जर्मनी में बेरोजगार लोगों की कुल संख्या 16.6 लाख थी. यह अप्रैल 2024 की तुलना में 256,000 यानी करीब 18.2 प्रतिशत ज्यादा है. देश में कुल बेरोजगारी की दर 3.8 प्रतिशत है जो एक साल में करीब 0.6 फीसदी बढ़ी है.

वर्तमान में जर्मनी में करीब 634,500 नौकरियां मौजूद हैं जहां काम करने के लिए लोग नहीं हैं. विज्ञान, इंजीनियरिंग, हेल्थकेयर जैसे कई सेक्टरों में कुशल कामगारों की भारी कमी है. इस वजह से कंपनियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यह कमी कुशल कामगारों से लेकर, दक्ष और विशेषज्ञ तक के स्तर पर महसूस हो रही है. अकसर कंपनियां काम के लिए पर्याप्त रूप से योग्य लोगों के ना मिलने की वजह से अपना काम घटाने या फिर बंद करने पर विवश हो रही हैं. कंपनियों का बंद होना बेरोजगारी को और बढ़ा रहा है.

जर्मन सरकार पर एक तरफ इन कंपनियों की मुश्किल घटाने का दबाव है तो दूसरी तरफ बेरोजगारी भत्ते के बढ़ते बोझ को कम करने का. ऐसे में उन लोगों पर कार्रवाई की जा रही है जो काम करने के लिए फिट होने के बावजूद काम करने से इनकार करते हैं.