
जेम्स वेब टेलिस्कोप ने पांच साल पहले नष्ट हो चुके एक ग्रह की मौत के हालात का पता लगाया है. जेम्स वेब की जांच में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं जिनकी अभी तक वैज्ञानिकों को जानकारी नहीं थी.मई 2020 में खगोल वैज्ञानिकों ने पहली बार एक ग्रह को उसी के सूरज का भोजन बनते देखा. उस समय उपलब्ध डाटा के मुताबिक वैज्ञानिकों को लगा कि ग्रह इसलिए नष्ट हुआ क्योंकि उसका तारा अपने जीवनकाल में थोड़ी देर से बढ़ा होगा और बढ़ कर एक विशाल लाल गोला बन गया होगा, जिसे वैज्ञानिक "रेड जायंट" कहते हैं.
लेकिन जेम्स वेब ने नई जानकारी जुटाई है जो संकेत दे रही है कि इस ग्रह की मौत शायद उस तरह से ना हुई हो, जैसा अभी तक माना जा रहा था. इसे एक तरह से उस ग्रह की मौत का पोस्टमार्टम कहा जा सकता है. इस नई जानकारी के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि तारे के ग्रह के पास जाने की जगह ग्रह ही तारे के पास चला गया था, जिसका नतीजा विनाशकारी हुआ.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस ग्रह की कक्षा धीरे धीरे छोटी होती गई और उसके बाद उसने एक तरह से अपनी मौत के मुंह में छलांग लगा दी. वेब ने ग्रह की मौत को डॉक्यूमेंट किया है और उसके मुताबिक अंत काफी नाटकीय था. वेब ने देखा कि ग्रह की मौत के बाद तारे के इर्द गिर्द गर्म गैस का एक छल्ला सा बन गया और उससे कम तापमान की धूल का एक बादल वहां छा गया.
यह रिपोर्ट "एस्ट्रोफिजिकल जर्नल" नाम की पत्रिका में छपी है. इसके मुख्य लेखक खगोल वैज्ञानिक रायन लाउ ने बताया, "हमें यह तो पता है कि जैसे जैसे वो ग्रह मरता गया वैसे वैसे तारे में से अच्छी खासी मात्रा में सामग्री बाहर निकली. घटना के बाद का सबूत यह बची हुई धूल है जो तारे में से निकली." लाउ अमेरिका के नैशनल साइंस फाउंडेशन की नोआरलैब के खगोल वैज्ञानिक हैं.
क्या हुआ उस ग्रह के साथ
यह तारा हमारी आकाशगंगा में ही है और अकीला नक्षत्र की दिशा में धरती से करीब 12,000 प्रकाश वर्ष दूर है. यह हमारे सूरज से थोड़ा कम लाल और कम रोशन है और द्रव्यमान के उसके करीब 70 प्रतिशत के ही बराबर है.''
जेम्स वेब ने खोजी एक नई आकाशगंगा
माना जा रहा है कि मृत ग्रह "हॉट जुपीटर्स" नाम की तारों की एक श्रेणी में से था, जिसमें ऐसे तारे शामिल हैं जो अपने सूरज के इर्द गिर्द एक तंग कक्षा में घूमने के कारण गैस के विशालकाय पिंड बन जाते हैं. रिपोर्ट के सह-लेखक मॉर्गन मैकलियोड ने बताया, "हमारा मानना है कि मुमकिन है कि वह एक विशालकाय ग्रह ही था जो कम से कम बृहस्पति से कुछ गुना बड़ा था, जिस वजह से उस तारे में इतना नाटकीय बदलाव हुआ."
मैकलियोड हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स में पोस्ट डॅक्टोरल फेलो हैं. बृहस्पति हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. खगोल विज्ञानके शोधकर्ताओं का मानना है कि उस ग्रह की कक्षा उसके तारे के साथ गुरुत्वाकर्षी परस्पर क्रिया की वजह से धीरे धीरे छोटी होती गई. उसके बाद क्या हुआ उन्होंने उसका अंदाजा लगाया.
मैकलियोड ने बताया, "उसके बाद उस ग्रह ने उस तारे के वायुमंडल को खरोंचना शुरू कर दिया और फिर वो तेजी से तारे में ही गिर गया. ग्रह अंदर की तरफ गिरा और जैसे जैसे तारे के और अंदर की तरफ गया वैसे वैसे गैस जैसी उसकी बाहरी परतें उतरती चली गईं. इस प्रक्रिया में वो गर्म हो गया और उससे गैस निकली जिसने उस रोशनी को जन्म दिया था जिसे हम देख पा रहे हैं. उसने उस गैस, धूल और कणों को भी जन्म दिया जो अब उस तारे के इर्द गिर्द फैले हैं."
क्या हमारा भी यही हाल होगा?
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि उन लम्हों में असल में क्या क्या हुआ होगा वो उस बारे में पक्के विश्वास के साथ नहीं कह सकते हैं. हमारे सौर मंडल का कोई भी ग्रह सूरज के इतने करीब नहीं है कि उनकी कक्षाएं धीरे धीरे नष्ट हो जाएं. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सूरज आगे चल कर उन्हें निगल नहीं जाएगा.
अनुमान है कि अब से करीब पांच अरब सालों बाद सूरज अपने "रेड जायंट" चरण की तरफ बढ़ेगा और मुमकिन है कि बुध और शुक्र को निगल जाएगा. हो सकता है वो धरती को भी निगल जाए. वेब के नए अध्ययन भूमंडलीय अंत के बारे में नए सुराग दे रहे हैं.
लाउ का कहना है, "हमारे अध्ययन संकेत दे रहे हैं कि ज्यादा संभावना इस बात की है कि ग्रहों का अंत उनके सूरज के रेड जायंट बन कर उन्हें निगलने की जगह उनके खुद ही सूरज की तरफ बढ़ते चले जाने की वजह से होगा. हालांकि ऐसा लगता है कि हमारा सौर मंडल तुलनात्मक रूप से ज्यादा स्थिर है, इसलिए हमें सिर्फ हमारे सूरज के रेड जायंट बन कर हमें निगल जाने की चिंता करनी है."