एयर कंडीशनिंग में क्रांति ला सकती है यह नई तकनीक
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ब्रिटेन में एक नई तकनीक पर काम किया जा रहा है जिसके जरिए ऐसे एसी बनाए जा सकेंगे जिनसे धरती को गर्म करने वाली ग्रीनहाउस गैसें नहीं निकलेंगी. इसे एयर कंडीशनिंग में क्रांति कहा जा रहा है.ब्रिटेन की एक प्रयोगशाला में एक नरम, मोम जैसे लेकिन ठोस, ठंडा करने वाले पदार्थ (रेफ्रिजरेंट) की जांच की जा रही है. कहा जा रहा है कि इसके अनोखे गुणों में एक ऐसी क्रांति की उम्मीद दिख रही है जिसके तहत ऐसे बिना ग्रीनहाउस गैसों के एयर कंडीशनिंग संभव हो सकेगी.

इस पदार्थ का तापमान में दबाव में 50 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर लाया जा सकता है और इस समय उपकरणों में इस्तेमाल किए जाने वाले ठंडा करने वाले ठोस पदार्थों की तरह यह पदार्थ लीक नहीं होता. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में मैटेरियल फिजिक्स के प्रोफेसर हाविएर मोया ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "ये ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाते नहीं हैं और साथ में संभावित रूप से ज्यादा कम बिजली में बेहतर प्रदर्शन भी दे सकते हैं."

कैसे हो रही है नए पदार्थ की तलाश

पूरी दुनिया में करीब दो अरब एसी इस्तेमाल में हैं और जैसे जैसे धरती और गर्म होती जा रही है इनकी संख्या बढ़ती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी (आईईए) का कहना है कि लीक और ऊर्जा की खपत के अलावा इनसे जुड़ा उत्सर्जन भी हर साल बढ़ता जा रहा है.

मोया बीते 15 सालों से इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में स्थित अपनी प्रयोगशाला में प्लास्टिक के इन क्रिस्टल्स के गुणों का अध्ययन कर रहे हैं. उनकी मेज पर एक बड़ी लाल और स्लेटी मशीन है जिसके ऊपर एक सिलिंडर लगा है. यह मशीन यह जांचती है कि दबाव पड़ने पर किसी पदार्थ का तापमान कैसे बदलता है.

लक्ष्य है पदार्थों की इस श्रेणी में सबसे अच्छे रेफ्रिजरेंट को पहचानना जिसका केमिकल उद्योग में पहले से ही इस्तेमाल हो रहा है और जिसे हासिल करना आसान हो, भले ही चुने जाने वाले क्रिस्टलों की पूरी संरचना गोपनीय रहे. यह घटना आंखों से नजर नहीं आती है लेकिन ये क्रिस्टल ऐसे कणों से बने होते हैं जो अपनी धुरी पर घूमते हैं.

जब पदार्थ को दबाया जाता है तो उसका घूमना रुक जाता है और ऊर्जा गर्मी के रूप में निकल जाती है. जब उसे छोड़ दिया जाता है तो पदार्थ आसपास के वातावरण को ठंडा कर देता है. इसे "बारोकैलरिक इफेक्ट" कहा जाता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में बिल्डिंग फिजिक्स के प्रोफेसर क्लिफ एल्वेल ने एएफपी को बताया, "हमें अंदेशा है कि अभी से लेकर 2050 के बीच में दुनियाभर में एयर कंडीशनिंग की मांग बहुत ज्यादा बढ़ेगी."

तीन साल में आ सकता है पहला उत्पाद

उनका मानना है कि बारोकैलरिक पदार्थों में गैस जितना या उससे ज्यादा प्रभावशाली होने की संभावना है. उन्होंने कहा, "लेकिन हम नई तकनीक के रूप में जिस चीज को भी लाते हैं उसे हमेशा मूल जरूरतों को तो पूरा करना ही होता है."

मोया ने अपनी रिसर्च के साथ साथ 2019 में "बारोकैल" नाम का एक स्टार्टअप शुरू किया जिससे उनके रिसर्च समूह की खोजों को वास्तविक उत्पादों में बदला जा सके. इसमें नौ लोग काम करते हैं और इसकी अपनी प्रयोगशाला है, जो इस समय एक पार्किंग लॉट में एक कटेंनर में चल रही है.

इस स्टार्टअप का पहला एयर कंडीशनर प्रोटोटाइप एक बड़े सूटकेस जितना बड़ा है. इसमें क्रिस्टल से भरे हुए चार सिलिंडर हैं और जब एक हाइड्रॉलिक सर्किट इन सिलिंडरों के अंदर दबाव को बढ़ाता या घटाता है तो यह काफी जोर से शोर करता है. लेकिन यह काम करता है. सिस्टम के साथ एक छोटा सा रेफ्रिजरेटर भी लगाया गया है और इसके अंदर सोडा के कैन हैं जो अच्छी तरह से ठंडे हैं.

ब्रेकथ्रू एनर्जी का कहना है कि दुनियाभर में कई टीमें इन पदार्थों का अध्ययन कर रही हैं लेकिन कैम्ब्रिज की टीम इस क्षेत्र में अगुआ है. संस्था का अनुमान है कि इन उपकरणों में पारंपरिक उपकरणों के मुकाबले उत्सर्जन को 75 प्रतिशत तक कम करने की संभावना है. बारोकैल के कमर्शियल डायरेक्टर फ्लोरियान शाबुस का कहना है कि कंपनी उम्मीद कर रही है कि बाजार में वह अपना पहला उत्पाद तीन साल में उतार सकेगी.