Padmini Ekadashi Vrat 2020: प्रथम अश्विन (शुक्लपक्ष) मास की एकादशी को कहीं कमला तो कहीं पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) के नाम से पुकारा जाता है. पद्मिनी एकादशी मलमास माह पर निर्भर करता है, यानी तीन साल में एक बार ही आती है पद्मिनी यानी कमला एकादशी. इस व्रत के लिए कोई चंद्रमास निर्धारित नहीं है. इस वर्ष यानी 2020 में पद्मिनी एकादशी 27 सितंबर रविवार को पड़ रहा है. आइये जानें पद्मिनी एकादशी व्रत का महात्म्य, पूजा विधान एवं व्रत कथा.
पद्मिनी एकादशी का महत्व
मान्यता है कि पद्मिनी एकादशी भगवान का सर्वाधिक प्रिय एकादशी है. इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है. एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिलता है. इस व्रत में रात भर श्रीहरि की पूजा करते हुए सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए. अगले दिन स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए. इस व्रत एवं पूजन को विधि-विधान के साथ पूरा करने वाले का जन्म सफल होता है. वे इस लोक में अनेक सुखों को भोग कर अंत में भगवान विष्णु के परमधाम को जाते हैं.
पद्मिनी एकादशी की पूजा विधान
पद्मिनी एकादशी पर व्रत रखने वालों को आश्विन मास की दशमी की रात में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी की प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात सूर्य देव को जल चढ़ाने के पश्चात पद्मिनी एकादशी के व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके पश्चात घर के मंदिर के सामने एक चौकी पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़कें. इस पर भगवान श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित कर अक्षत, पीला पुष्प, तुलसी दल, दूध से बना मिष्ठान, रोली इत्यादि अर्पित कर इस मंत्र ओम नमोः भगवते वासुदेवाय अथवा ओम ब्रह्म बृहस्पताय नमः का जाप करें. संभव हो तो विष्णु पुराण का पाठ भी कर सकते हैं. इसके पश्चात श्रीहरि की आरती कर पूजा का समापन करें और प्रसाद का वितरण करें.
पूरे दिन उपवास रखते हुए सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व भगवान विष्णु और लक्ष्मी के साथ शिव-पार्वती जी की विधिवत पूजा करें. इस दिन पूजा का एक विधान यह भी है कि भगवान श्रीहरि को चार प्रहर में चार वस्तुएं चढ़ाएं, मसलन प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे में बेल, तीसरे में सीताफल और चौथे यानी अंतिम प्रहर में नारंगी और सुपारी चढ़ाएं. ऐसा करने से पहले प्रहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेध यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है.
द्वाद्वशी के दिन स्नान करने के पश्चात श्रीहरि की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन करायें और दक्षिणा देकर विदा करें. इसके बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए. ऐसी भी मान्यता है कि किसी वजह से अगर आप यह व्रत नहीं कर सके हों तो द्वाद्वशी की सुबह पूजा करने के बाद ब्राह्मण को दें तो भी व्रत का पूरा सुफल प्राप्त हो जाता है.
पौराणिक कथा
त्रेता युग में, एक महान शक्तिशाली राजा किताविर्य था, उसकी कई रानियां थीं, लेकिन कोई भी राजा को संतान प्रदान करने में सक्षम नहीं थीं. तमाम विलासिता और सुख-समृद्धि के बावजूद, संतानहीन होने का दुःख राजा और उसकी सभी रानियों को बहुत सालता था. अंततः संतान प्राप्ति की चाहत में राजा अपनी सबसे प्रिय रानी के साथ जंगल में जाकर तपस्या करने लगे. लेकिन वर्षों जप-तप करने के बावजूद जब उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई तब रानी ने माता अनुसूया से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा. माता अनुसुइया ने उन्हें शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत करने के लिए कहा, साथ ही माता ने उन्हें उपवास की प्रक्रिया भी बताई.
रानी ने उनके हर कथन का अक्षरश पालन करते हुए पद्मिनी एकादशी का व्रत किया. व्रत पूरा होने के बाद श्रीहरि स्वयं प्रकट हुए और उन्हें अपनी एक इच्छा प्रकट करने के लिए कहा. उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि यदि वह उसकी प्रार्थनाओं से खुश हो गए हैं तो वह उनके पति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दें, अब श्रीहरि ने राजा से इच्छा प्रकट करने को कहा. राजा ने एक ऐसे पुत्र की कामना की, जो तीनों आयामों में प्रतिष्ठित, बहु-प्रतिभाशाली हो और जिसे सिर्फ भगवान हरा सकें.
श्रीहरि ने उनकी इच्छा पूरी होने का आशीर्वाद दिया. बाद में, रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो, आगे चलकर कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से लोकप्रिय हुए. कालान्तर में यह बालक बहुत शक्तिशाली राजा बना, जिसने एक बार लंका के राजा रावण को भी बंदी बना लिया था.
शुभ तिथि एवं मुहूर्त
27 सितंबर, (रविवार) 2020
एकादशीः 27 सितंबर, प्रातः 06:12 बजे से 08.36 बजे तक (28 सितंबर)
पारणः प्रातः 06:12 से 08:36 बजे तक (28 सितंबर)