Holi 2019: मथुरा (Mathura) की ब्रजभूमि (Braj Bhoomi) पर होली (Holi) के विभिन्न रंग नजर आते हैं. हर रंग (Colors) की अपनी महिमा अपना महात्म्य होता है. इसी में एक रंग है ‘चतुर्वेदी समाज का डोला’ (Chaturvedi Samaj ka Dola) जिसे ‘होली डोला’ (Holi Dola) भी कहते हैं. यह शीर्षक सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा, लेकिन एक बार इस डोले की उमंग और उत्साह का हिस्सा बन गये तो इस दिव्य अनुभव को भुला पाना आसान नहीं होगा. आइये जानें क्या है चतुर्वेदी समाज का डोला...
वस्तुतः ब्रजमंडल के चतुर्वेदी समाज का यह ‘होली डोला’ (Holi Dola)सैकड़ों वर्ष पुरानी रंगारंग परंपरा है. जो किसी न किसी रूप में ब्रज और श्रीकृष्ण के महात्म्य से ही जुड़ी हुई है. यह ‘होली डोला’ (शोभा यात्रा) यमुना जी के सबसे प्राचीन विश्राम घाट से दोपहर के समय ठाकुर द्वारकाधीश के पूजा-अर्चना के साथ शुरु होती है. आमतौर पर इस शोभायात्रा की अध्यक्षता गोवर्धन पीठाधीश्वर श्रीकृष्णदास कंचन दास महाराज जी ही करते हैं. यह भी पढ़ें: Holi 2019: श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की याद ताजा कराती है गोकुल की ‘छड़ीमार होली’
शोभा यात्रा में सबसे आगे ऊंट पर सवार ढोल-नगाड़ा चलता है. इनके पीछे चौबिया पाड़ा क्षेत्र में विराजमान प्राचीन श्रीदशभुजी गणेश की झांकी, फिर श्रीद्वारिकाधीश महाराज की झांकी, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की झांकियां चलती हैं. ये सभी झांकियां अति दुर्लभ होने के कारण हर किसी को आकर्षित करती हैं. सभी झांकियों में कुछ न कुछ सामाजिक संदेश भी होते हैं. बैंड-बाजों और शहनाई की धुनों की पृष्ठभूमि के साथ मुख्य डोला में स्थापित श्रीराधा-कृष्ण का दर्शन कर श्रद्धालु मंत्र-मुग्ध रह जाते हैं.
डोला जैसे-जैसे आगे बढता है, भक्तों के ‘जय श्रीकृष्ण’ के उद्घोष से पूरा मथुरा गूंजायमान हो उठता है. उधर डोला में बैठे श्री गोवर्धन पीठाधीश्वर पूरे रास्ते श्रद्धालुओं पर अबीर, गुलाल और रंगों की बरसात करते चलते हैं. इस शोभा यात्रा में ब्रज के प्रमुख संत-महंतों के अलावा राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां भी शामिल होती हैं.
शोभायात्रा में पूरे रास्ते भजन, होली की चौपाइयों का पाठ होता रहता है और रह-रह कर ‘होली है’ की गूंज भी सुनाई देती है.चतुर्वेदी समाज का यह डोला ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाता है, शोभा यात्रा के साथ भारी संख्या में श्रद्धालु जुड़ते जाते हैं. देखते ही देखते ब्रज की सड़कें ही नहीं संपूर्ण मथुरा शहर अबीर-गुलाल में नहा उठता है. कहीं-कहीं पारंपरिक वेशभूषा में लड़के-लडकियों का समूह नृत्य-गीत के साथ अबीर-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़ते हैं. इसका एक अलग आकर्षण होता है. यह भी पढ़ें: Holi 2019: कृष्ण जन्मभूमि ब्रज में बलराम-राधा के बीच खेली गई होली से लोकप्रिय हुई देवर-भाभी की होली, कैसे जानिए
इस शोभा यात्रा में युवा, वृद्ध, बच्चे, महिलाएं सभी वर्ग और उम्र के लोग शामिल होते हैं, जिनकी पहचान केवल ‘होली के दीवानों’ के रूप में की जा सकती है. विश्राम घाट से शुरू हुई यह शोभायात्रा छत्ता बाजार, तिलकद्वार होली दरवाजा, कोतवाली रोड, भरतपुर गेट, घीया मंडी, चौक बाजार, स्वामी घाट होते हुए पुन: विश्राम घाट पर समाप्त होती है, जहां यात्रा समापन के पश्चात आरती होती है.