Digital Yug & Bakrid 2025: डिजिटल युग में ऑनलाइन कुर्बानी! इस्लामी मान्यताओं पर कितना खरा उतर रही है? जानें इससे होने वाले लाभ एवं हानि?
बकरीद 2025 (Photo Credits: File Image)

Digital Yug & Bakrid 2025: ईद-उल-अजहा (Eid-al-Adha) यानी बकरीद (Bakrid) इस्लाम धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में एक है, जो हजरत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति निष्ठा और बलिदान की स्मृति में मनाया जाता है. इस दिन मुसलमान पशुओं की कुर्बानी करते हैं, और उसका मांस जरूरतमंदों, रिश्तेदारों और परिजनों में बांटते हैं, लेकिन तकनीक की प्रगति और विशेष रूप से कोरोना (Covid-19) महामारी के बाद से बकरीद पर्व मनाने के तरीकों में बदलाव के तहत कई लोग ऑनलाइन कुर्बानी की परंपरा का भी निर्वाह कर रहे है, जिसमें श्रद्धालु किसी वेबसाइट, ऐप या संस्था को कुर्बानी की राशि का भुगतान करते हैं. अमुक संस्था उसके नाम से पशु की कुर्बानी करता है और उसके आदेशानुसार अंकित पते पर मांस वितरण भी करती है. ईद-उल-अजहा (07 जून 2025) के अवसर पर कुर्बानी की इस पुरातन परंपरा को डिजिटल युग के आइने से देखेंगे कि यह इस्लामी परंपराओं पर कितना खरा उतर रही है. यह भी पढ़ें: Eid-ul-Adha 2025: बकरीद पर कुर्बानी का अर्थ पशु की बलि है अथवा आत्मबलिदान का प्रतीक? जानें इस पर्व का मूल संदेश क्या है?

ऑनलाइन कुर्बानी के फायदे:

सुविधा और समय की बचत: लोगों को बाजार जाकर पशु चुनने, लाने, पालने और कुर्बानी करने में खर्च होने वाले समय की बचत होती है. खासकर व्यस्त जीवन या शहरी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए यह एक सुविधाजनक विकल्प है.

स्वास्थ्य और स्वच्छता: COVID जैसी संक्रामक बीमारियों से सुरक्षा के लिए यह एक सुरक्षित तरीका साबित हुआ है. इसके तहत पशुओं की देखभाल और कुर्बानी प्रशिक्षित स्टाफ द्वारा तय मानकों के अनुसार होती है.

पारदर्शिता और प्रमाण: अधिकांश ऑनलाइन सेवाएं फोटो, वीडियो या ईमेल के माध्यम से प्रमाण देती हैं कि कुर्बानी वास्तव में की गई है.

गरीबों तक बेहतर पहुंच: कुछ संस्थाएं ऐसे इलाकों में मांस वितरित करती हैं जहां जरूरतमंदों को आमतौर पर कुर्बानी का मांस नहीं मिल पाता.

अंतरराष्ट्रीय कुर्बानी: कोई व्यक्ति विदेश में रहते हुए अपने देश या किसी अन्य जरूरतमंद क्षेत्र में कुर्बानी करवा सकता है.

ऑनलाइन कुर्बानी के नुकसान

भावनात्मक जुड़ाव की कमी: कुर्बानी के मूल उद्देश्य आत्मसमर्पण, त्याग और स्वयं करने की भावना कम हो सकती है, तथा बच्चों को इस्लामी शिक्षा और परंपरा से जुड़ने का मौका कम मिलता है.

भरोसे की समस्या: सभी ऑनलाइन सेवा प्रदाता भरोसेमंद नहीं होते. वैसे भी इन दिनों नकली वेबसाइटें धोखाधड़ी कर सकती हैं. पैसा लेकर कुर्बानी किए बिना ही गायब हो सकती हैं.

इस्लामी मानकों का पालन न होना: कुछ संस्थाएं शरई (इस्लामी) नियमों का ठीक से पालन नहीं करतीं, उदाहरणार्थ नीयत, समय, तरीका इत्यादि.

मांस का अनिश्चित वितरण: ग्राहक को यह जानने में कठिनाई हो सकती है कि मांस सही लोगों तक पहुंचा या नहीं.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर: परंपरागत पशु मंडी, कसाई और सहायक उद्योगों (चारा, सफाई, ढुलाई आदि) को नुकसान हो सकता है.

ऑनलाइन कुर्बानी तकनीक और सुविधाओं का एक आधुनिक रूप है, जो कई लोगों के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान करता है, खासकर शहरी, व्यस्त या प्रवासी समुदायों के लिए. लेकिन इसका चयन करते समय धार्मिक नियमों, भरोसेमंद सेवा प्रदाताओं और कुर्बानी की भावनाओं को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है. इसलिए, डिजिटल युग में बकरीद मनाते हुए आस्था और तकनीक के संतुलन की आवश्यकता है, ताकि परंपराओं का सम्मान करते हुए नए युग की सहूलियतों का भी लाभ उठा सकें.