Premanand Maharaj Controversy: प्रेमानंद पर टिप्पणी से उपजा विवाद, स्वामी रामभद्राचार्य के बयान पर संतों ने जताया ऐतराज

मुंबई, 25 अगस्त : आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामभद्राचार्य (Swami Ramabhadracharya) द्वारा संत प्रेमानंद (Sant Premanand) पर की गई टिप्पणी को लेकर संत समाज में नाराजगी का माहौल है. इस बयान पर कई प्रमुख संतों ने कड़ा ऐतराज जताया है और इसे सनातन धर्म की एकता के लिए हानिकारक बताया है. संतों का कहना है कि ऐसी टिप्पणियां न केवल अनावश्यक विवाद को जन्म देती हैं, बल्कि समाज, खासकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने स्वामी रामभद्राचार्य की टिप्पणी पर कहा कि वह हमेशा विवादास्पद बयान देते रहते हैं, जो उनकी आदत बन गई है. उन्होंने कहा, "ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए. यदि विद्वता का पैमाना केवल श्लोक का अर्थ बताना है, तो हमारी सनातन परंपरा में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं ली, फिर भी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जैसे शिष्य दिए." स्वामी चिदंबरानंद ने बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके कार्यों, आचरण और स्वभाव से होती है, न कि केवल शास्त्रीय ज्ञान से. यह भी पढ़ें : Lalbaugcha Raja 2025: गणेश चतुर्थी से पहले सामने आई मुंबई के लालबाग के राजा की पहली झलक, देखें VIDEO

उन्होंने प्रेमानंद के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वह समाज को सरल जीवन का संदेश दे रहे हैं, जिसे महत्व देना चाहिए. रामभद्राचार्य से अनुरोध है कि वह ऐसी निरर्थक टिप्पणियों से बचें. वहीं, अखिल भारतीय संत समिति ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी गोपालाचार्य महाराज ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि सनातन धर्म हमेशा संतों के मार्गदर्शन में फला-फूला है, लेकिन जब एक संत दूसरे संत पर आक्षेप लगाता है, तो यह युवा पीढ़ी के मन में संदेह पैदा करता है.

उन्होंने कहा, "युवा संतों के प्रवचनों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में बदलाव लाते हैं. यदि संतों के बीच ही विघटन दिखेगा, तो इसका युवाओं पर दुष्प्रभाव पड़ेगा." उन्होंने सूरदास और मीराबाई जैसे संतों का उदाहरण देते हुए कहा कि कई महान संतों ने बिना औपचारिक शिक्षा के समाज का मार्गदर्शन किया. मीराबाई ने भगवान के प्रति समर्पण से सनातन धर्म को गौरवान्वित किया, फिर भी वह संस्कृत की विद्वान नहीं थीं. स्वामी गोपालाचार्य ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य का समाज में बड़ा योगदान है, लेकिन उन्हें ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए.

हालांकि, स्वामी रामभद्राचार्य के आरक्षण संबंधी विचारों को संत समाज ने समर्थन दिया है. स्वामी गोपालाचार्य ने कहा कि संत समाज का मानना है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए, न कि केवल जातिगत आधार पर. उन्होंने कहा, "जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, चाहे वह किसी भी जाति से हों, उन्हें संसाधन मिलने चाहिए. संपन्न लोगों को केवल जाति के आधार पर आरक्षण देना उचित नहीं है." वहीं आचार्य मधुसूदन महाराज ने कहा, "प्रेमानंद महाराज के बारे में रामभद्राचार्य महाराज की टिप्पणी कि वह विद्वान नहीं हैं, चमत्कारी नहीं हैं, और कुछ भी नहीं जानते हैं, पूरी तरह से निराधार और निंदनीय है."